उप्र के वो तीन चुनाव, जब किसी दल ने 90 फीसदी से ज्यादा सीटें जीतकर चुनाव एकतरफा कर दिया

लखनऊ (हि.स.)। देश में 1952 में हुए पहले आम चुनाव में कांग्रेस उत्तर प्रदेश ही नहीं देश में सबसे बड़ा राजनीतिक दल था। उस जमाने में विपक्षी दलों का प्रचार-प्रसार सीमित क्षेत्रों तक फैला था। पूरे देश में कांग्रेस के पास ही नेता और संगठन था। ऐसे माहौल मे कांग्रेस ने देश और राज्यों पर राज किया। समय के साथ लोकतंत्र परिपक्व हुआ। विपक्षी दलों का विस्तार हुआ। नये दलों का गठन हुआ। विपक्ष देश और प्रदेश की राजनीति में मजबूत हुआ। इस परिवर्तन के बाद देश और प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस का एकछत्र राज खत्म हुआ।

उत्तर प्रदेश में वर्ष 1952 में हुए पहले संसदीय चुनाव में कांग्रेस ने 86 में से 81 सीटों पर जीत दर्ज की। उसके समक्ष जो विपक्ष था भी, वो कमजोर और बिखरा हुआ था। 1957 के आम चुनाव में कांग्रेस ने 70, 1962 में 62, 1967 में 47 और 1971 में 73 सीटों पर जीत दर्ज की। कांग्रेस 1952 वाला करिश्मा 1971 के आम चुनाव तक दोबारा दोहरा नहीं पाई। हालांकि इस अवधि में विपक्षी दल मजबूत हुए और उन्होंने कांग्रेस को देश और प्रदेश की राजनीति में चुनौती देनी शुरू कर दी। उप्र के संसदीय चुनाव में तीन चुनाव ऐसे हुए जिसमें जीतने वाले दल ने कुल सीटों में से 90 फीसदी से ज्यादा सीटें जीतकर, चुनाव एकतरफा कर दिया। इन तीन चुनावों में 1952 का पहला संसदीय चुनाव शामिल नहीं है।

इमरजेंसी ने बदल दी देश की सियासत

आपातकाल के बाद 1977 में भारत के छठे लोकसभा चुनाव हुए। इसके बाद जनसंघ, कांग्रेस (ओ), भारतीय लोकदल, सोशलिस्ट पार्टी ने एक होकर जनता पार्टी बनाई। इस आम चुनाव में जनता ने पहली गैरकांग्रेसी सरकार को चुनकर मानो इमरजेंसी के दौरान हुए सभी ‘जुल्मों’ का हिसाब ले लिया था। जनता ने कांग्रेस को हराकर सत्ता की चाबी जनता पार्टी के हाथों में दे दी। फिर कांग्रेस से ही अलग हुए 81 साल के मोरारजी देसाई को पहला गैरकांग्रेसी प्रधानमंत्री चुना गया।

1977 के चुनाव में लोकदल ने कांगेस को जीरो पर बोल्ड किया

1977 के आम चुनाव में कांग्रेस ने प्रदेश की सारी 85 सीटों पर प्रत्याशी उतारे। उप्र की जनता ने कांग्रेस को आईना दिखाने का काम किया। कांग्रेस जीरो पर बोल्ड हो गई। प्रदेश की सभी सीटों पर भारतीय लोकदल यानी बीएलडी के प्रत्याशी विजयी हुए। बीएलडी को 1953043 (68.07 फीसदी) मत हासिल हुए। बीएलडी का 68.07 फीसदी का रिकार्ड उप्र के संसदीय दल में आज तक कोई दल तोड़ नहीं सका है।

इस चुनाव में कांग्रेस सबसे बड़ी नेता पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और उनके पुत्र संयज गांधी को हार का मुंह देखना पड़ा। इंदिरा गांधी का भारतीय लोकदल के प्रत्याशी राज नारायण ने हराया। राजनारयण को 177719 (53.51 फीसदी) वोट मिले। तो वहीं इंदिरा गांधी के खाते में 122517 (36.89 फीसदी) वोट आए। गांधी परिवार की पुश्तैनी सीट से संजय गांधी हार गए। बीएलडी के प्रत्याशी रवींद्र प्रताप सिंह को 176410 (660.47 फीसदी) वोट पाकर विजयी बने। संजय गांधी को 100566 (34.47 फीसदी)वोट आए। बीएलडी की टिकट पर जीतने वालों में प्रमुख तौर पर नानाजी देशमुख (बलरामपुर), मुरली मनोहर जोशी (अल्मोड़ा), चौधरी चरण सिंह (बागपत), चंद्रशेखर (बलिया), राजनारायण (रायबरेली), हेमवती नंदन बहुगुणा (लखनऊ), जनेश्वर मिश्र (इलाहाबाद), कमला बहुगुणा (फूलपुर), रामजी लाल सुमन (फिरोजाबाद) और रशीद मसूद (सहारनपुर) थे।

1984 के चुनाव ने कांग्रेस ने विपक्ष को चारों खाने चित किया

1984 में आठवीं लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को देशभर में रिकॉर्ड तोड़ सीटें मिलीं। इंदिरा गांधी की हत्या से पैदा हुई हमदर्दी ने राजीव गांधी को सत्ता पर बैठाया। कांग्रेस ने 401 सीटों का प्रचंड बहुमत हासिल कर इतिहास रचा। भाजपा के लिए यह चुनाव पहला चुनाव था। 1980 में ही पार्टी का गठन हुआ था।

उप्र में कांग्रेस ने 85 में से 83 सीटों पर जीत हासिल की। कांग्रेस को 17391831 (51.03 फीसदी) वोट हासिल हुए। इस चुनाव में लोकदल ने 74 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे। 2 सीटोें पर उसे जीत हासिल हुए। उसके खाते में 7375612 (21.64 फीसदी) वोट आए। इस चुनाव में सीपीआई, जनता पार्टी और भाजपा सहित अन्य दलों का खाता भी नहीं खुला। इस चुनाव में राजीव गांधी ने अमेठी से जीत दर्ज की। राजीव गांधी को 365041 (83.67 फीसदी) वोट मिले। राजीव गांधी ने अपने दिवंगत छोटे भाई संजय गांधी की पत्नी मेनका गांधी को हराया था। मेनका गांधी निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर मैदान में थीं। मेनका को 50163 (11.50 फीसदी) वोट मिले थे। इस चुनाव में कांग्रेस को देशभर में प्रचण्ड बहुमत मिला था। केंद्र में राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी।

2014 में मोदी की आंधी में उड़ गया विपक्ष

उप्र में 1984 के चुनाव में कांग्रेस के प्रचण्ड प्रदर्शन जैसा नजारा लगभग 30 वर्ष बाद 2014 में देखने को मिला। 1984 के बाद 2009 तक हुए सात आम चुनाव में उप्र की राजनीति में भाजपा, सपा और बसपा का वर्चस्व कायम हुआ। लेकिन कोई भी दल इतनी सीटें नहीं जीत पाया कि जिससे ऐसा आभास हुआ हो कि प्रदेश की राजनीति में विपक्ष की राजनीतिक जमीन खिसक और सिमट चुकी है।

2014 में देशभर में चली मोदी की आंधी में उप्र में भाजपा ने ऐतिहासिक प्रदर्शन कर 1977 और 1984 के चुनाव नतीजों की यादें ताजा कर दीं। भाजपा ने 80 में से 71 सीटें जीती। उसके सहयोगी अपना दल के खाते में 2 सीटें आई। एनडीए के खाते में कुल जमा 73 सीटें आई। यानी एनडीए ने 91 फीसदी सीटों पर कब्जा जमाया। भाजपा के खाते में 34318854 (42.63 फीसदी) वोट आए।

मोदी की आंधी में बसपा और रालोद जीरो पर बोल्ड हुए तो वहीं कांग्रेस दो और सपा पांच सीटों पर सिमट गई। कांग्रेस और सपा को जिन सीटों पर जीत मिली, वो सीटें गांधी और यादव परिवार की पक्की सीटें मानी जाती रही हैं। भाजपा के प्रधानमंत्री पद के चेहरे नरेंद्र मोदी साल 2014 में वाराणसी से चुनाव जीते थे। लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 30 सालों का रिकॉर्ड तोड़कर देशभर में 283 सीटों पर जीत दर्ज की थी। 1984 में कांग्रेस के बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा पहली ऐसी पार्टी बनी थी जिसने अपने दम पर सरकार बनाने लायक सीटें जीती थीं। केंद्र में पहली बार गैर कांग्रेस पूर्ण बहुमत की भाजपा सरकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बनी।

डॉ. आशीष वशिष्ठ/मोहित

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