उप्र : आम आदमी पार्टी की सदस्यता में जुटे कार्यकर्ताओं को नहीं मिल रहे लोग

लखनऊ(हि.स.)।  उत्तर प्रदेश में आम आदमी पार्टी के विधानसभा चुनाव 2022 में उतरने के ऐलान के बाद पार्टी की सदस्यता चल रही है। पार्टी के पुराने और जुझारु नेता इस समय नयी सदस्यता अभियान में लोगों को जोड़ने के लिए गली-मोहल्ले एवं वीआईपी कालोनियों में भटक रहे हैं, लेकिन उन्हें सदस्य बनाने के लिए लोग नहीं मिल पा रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में भी सदस्यता के कार्यक्रमों में कुर्सियां खाली मिल रही है। 

 आम आदमी पार्टी के नेता अमीना बेगम और उनके समर्थकों की तरफ से लखनऊ मध्य विधानसभा क्षेत्र में सदस्यता अभियान चलाया गया। सदस्यता के दौरान महिलाओं और नौजवानों को सदस्य भी बनाया गया, लेकिन जहां व्यापारियों, प्रबुद्ध वर्ग के लोगों को जोड़ने के लिए आप कार्यकर्ताओं ने प्रयास किया तो वे विफल हुए। अमीनाबाद के व्यापारियों ने आम आदमी पार्टी की सदस्यता लेने से इंकार कर दिया। 
  व्यापारी नेता सुरेश छबलानी ने कहा कि आम आदमी पार्टी का उत्तर प्रदेश की राजनीति में उदय हो रहा है। उनके नेताओं को यहां संगठन मजबूत करने में समय लगेगा। फिलहाल उत्तर प्रदेश की राजनीति में सबसे बड़ी पार्टी के रुप में भाजपा, सपा और बसपा ही दिख रही है। व्यापारी किसी भ्रम में नहीं आयेगा। 
 राजाजीपुरम में आम आदमी पार्टी की सदस्यता करा रहे चंदन ने कहा कि उनके मित्रों और कुछ नजदीकी के अलावा अन्य लोगों को सदस्य बनाने में कठनाईयों का सामना करना पड़ रहा है। लोगों की बातें भी सुननी पड़ रही है। अभी तक मुस्लिम वर्ग में आम आदमी पार्टी ने सबसे ज्यादा सदस्य बनाये हैं। 
बीते दिनों बक्शी का तालाब विधानसभा क्षेत्र में गांव सीवा में आप का सदस्यता कार्यक्रम आयोजित हुआ था। इसमें पार्टी की नीतियों को समझाकर ग्रामीण लोगों को सदस्यता दिलायी जानी थी। जब मौके पर आये वक्ताओं ने सरकार मॉडल, निशुल्क बिजली, शिक्षा, स्वास्थ्य, पानी, निशुल्क बस यात्रा पर अपनी बातों को रखा। इस कार्यक्रम के दौरान सामने रखी पूरी कुर्सियां भी नहीं भर पायी, वहीं सदस्यता लेने वालो की संख्या दहाई का अंक नहीं पार कर सकी। 
बता दें कि आप के प्रदेश प्रभारी और राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने बीते दिनों लखनऊ में मिर्जापुर जिले की निवासी अभिनेत्री पायस को पार्टी की सदस्यता दिलाई थी। लखनऊ के प्रदेश कार्यालय पर संजय सिंह निरंतर चर्चित चेहरों को आप का सदस्य बना रहे है लेकिन उसमें लखनऊ के नाम बेहद कम हैं। 

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