अर्थव्यवस्था में डगमगाते चीन की फिर कोई चालाकी तो नहीं ?
ऋतुपर्ण दवे
दुनिया के पास अब तमाम वो कारण हैं जिससे यह मानने में कोई गुरेज नहीं कि चीन की अर्थव्यवस्था एक बार फिर बहुत बुरे दौर में है। कोरोना वायरस को लेकर पहले से दुनिया भर में शक की निगाहों से देखे जाने वाले चीन ने भी इस महामारी के चलते जबरदस्त मंदी का दौर देखा। लेकिन तब इसे ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया गया क्योंकि हर कहीं मांग और आपूर्ति की शृंखला धीमी पड़ गई थी। यह भी सच है उस समय बाजार से ज्यादा लोगों को जान की परवाह थी। इस कारण भी एक तरह से पूरी दुनिया ने ये समझौता कर लिया था कि पहले जान फिर जहान। लेकिन कोविड के धीमा पड़ते ही जब पूरी दुनिया अपनी बरबाद अर्थव्यवस्था को लेकर तमाम तरह के जतन में जुट गई तब चीन में ऐसा क्या हुआ कि पूरी अर्थव्यवस्था जबरदस्त डगमगाने लगी?
अर्थजगत के जानकारों का मानना है कि ऐसे हालात थोड़े और समय तक रहे तो चीन के आर्थिक विकास की दर और नीचे जा सकती है। चूंकि वहां खर्चों में पहले ही लगाम लगी है ऐसे में उत्पादन और घटा तो बेरोजगारी अपने चरम पर होगी। मामला केवल सप्लाई और डिमांड तक होता तो भी बात समझ आती। मौजूदा आर्थिक हालात इसी से समझ आते हैं कि चीनी रीयल एस्टेट कारोबार भी जबरदस्त मुश्किलों से घिरा है। सबसे बड़ी रीयल एस्टेट कंपनी एवरग्रैंड लगभग दिवालिया हो चुकी है। सरकार इसे ऑक्सीजन देकर किसी तरह जिन्दा रखे है और कोशिशें हैं कि फिर उठ खड़ी हो।
यह भारत के लिए फायदेमंद और नुकसानदेह दोनों हो सकता है। तेल में गिरावट होने पर भारत दुनिया से आपूर्ति में अपना हिस्सा बढ़ाकर ज्यादा मुनाफा कमा सकेगा। लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि चीन ही भारत का बड़ा बिजनेस पार्टनर है। न-न करते 2021-22 में उसके साथ 11.2 प्रतिशत साझेदारी रही जो करीब 116 अरब डॉलर के आसपास है। ऐसे में यदि चीन खर्चों में कटौती करेगा तो भारत से निर्यात घटेगा। वहीं, भारतीय बाजार थोक में चीन के सामान से पट जाएंगे। दवा, सोलर सेल व पार्ट्स, इलेक्ट्रिक वाहनों की बैटरियों पर हम चीन पर ही निर्भर हैं। इनका प्रभावित होना तय है।
अर्थव्यवस्था की बदहाली से पहले भी तमाम कारणों के चलते चीन दुनिया भर में शक की निगाहों से देखा जाता है। इसीलिए उंगलियां उसी पर उठ रही हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि अपने घरेलू बाजार पर ध्यान देने की रणनीति हो? तमाम उद्योग प्रधान देश सस्ते चीनी सामान के आगे अपना सामान नहीं बेच पाएं? ऐसा होने से प्रभावित देशों के निवेश में जबरदस्त कमी आएगी और बेरोजगारी भी बढ़ेगी। बाकी दुनिया समस्या से जूझेगी कि सस्ते चीनी सामान के आगे स्वदेशी और महंगी लागत से बने उनके सामान कैसे बिकेंगे? कहीं चीन की कुटिलता तो नहीं? अनेकों मामले में वह दुनिया की आंखों की किरकिरी पहले से ही है। अब वजह जो भी हो परन्तु सच्चाई यही है कि चीनी अर्थव्यवस्था अभी फिसलन पर जरूर है और संभावित नतीजे समझ से परे हैं।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)