अयोध्या में भूमि पूजन के बाद बोले भागवत
राष्ट्र को आत्मनिर्भर बनाने का संकल्प लेने का क्षण
संवाददाता
अयोध्या। रामजन्मभूमि में विराजमान रामलला के भूमि पूजन में आए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि आज आनंद का क्षण है। बहुत प्रकार से आनंद हैं। एक संकल्प लिया था। मुझे याद है सरसंघ चालक बाला साहब देवरस ने कदम आगे बढ़ने पर कहा था कि बहुत कठिन लग कर काम करना पड़ेगा। बीस-तीस साल करना पड़ेगा, तब कहीं जाकर सफलता मिलेगी। उन्होंने कहा कि तीस साल में संकल्प पूर्ति का आनंद मिल रहा है। रामजन्मभूमि आंदोलन में सैकड़ों लोगों ने बलिदान दिया है। ऐसे भी हैं, जो यहां आ नहीं सके। आडवाणी जी घर पर बैठे देख रहे होंगे। मंदिर आंदोलन के अग्रणी रहे जो आ सकते हैं, उनमें से कई बुलाए नहीं जा सके। कोरोना महामारी के चलते ऐसा हुआ।
उन्होंने कहा कि पूरे देश में देख रहा हूं, आनंद की लहर है। सदियों की आस पूरी होने का आनंद। सबसे बड़ा आनंद है कि भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए जिस विश्वास की जरूरत थी, उसका आरंभ हो रहा है। उन्होंने कहा कि जिस देश के लोगों का विश्व में सबसे सज्जनता का व्यवहार होता है, स्वभाव और अपने कर्तव्य का निर्वहन, दुविधा में भी रास्ते निकालते हुए, जितना हो सके सबको साथ लेकर चलते हुए उसका अवसर आज यहां बन रहा है। सबका कल्याण करने वाले भारत के निर्माण का आज शुभारंभ हो रहा है। अशोक सिंघल जी आज होते तो कितना अच्छा होता, रामकृष्ण परम हंस दास जी होते तो क्या होता। जो हैं, नहीं हैं वे भी आनंद को उठा रहे हैं। यहां के एक-एक कण में आनंद उठा रहे हैं। एक उत्साह है। हम कर सकते हैं। जीवन जीने की शिक्षा देनी है। उसकी तैयारी करने का संकल्प करने का भी आज दिन है।
उन्होंने मानस की चौपाई ’सियाराम मय सब जग जानी’ उद्धृत करते हुए कहा कि प्रभु राम के चरित्र से देखेंगे। सारा पुरुषार्थ, विश्वास हमारी रग-रग में है। सब राम के हैं और सबमें राम हैं। यहां अब भव्य मंदिर बनेगा। उन्होंने श्रीमदभागवत गीता के श्लोक ’एतद्देशप्रसूतस्य सकाशादग्रजन्मनः, स्वं स्वं चरित्रे शिक्षरेन पृथिव्यां सर्वमानवाः ’ का वाचन करते हुए कहा कि मन की अयोध्या को सजाना संवारना है। प्रभु राम जिस धर्म के विग्रह माने जाते हैं, वह सबको अपना मानने वाला धर्म है। संपूर्ण विश्व को सुख-शांति देने वाला भारत हम खड़ा कर सकें, इसलिए मन को ही अयोध्या बनाना है। इस मंदिर से पहले मन-मंदिर की अयोध्या को बनाना है। हमारा ह््रदय भी राम का बसेरा होना चाहिए। दुनिया की माया कैसी भी हो, सब प्रकार के व्यवहार करने के लिए समर्थ, संपूर्ण जगत को अपनाने वाला इस देश का व्यक्ति व समाज गढ़ने का काम करता है। यह मंदिर जो सगुण साकार प्रतीक है यह सदा प्रेरणा देता रहेगा और यह सिर्फ एक मूर्ति बनाने का काम नहीं है।