अंतरिक्ष में इसरो के बढ़ते कदम
योगेश कुमार गोयल
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) अंतरिक्ष की दुनिया में निरन्तर कीर्तिमान स्थापित कर रहा है। पिछले कुछ वर्षों में इसरो के वैज्ञानिकों ने अंतरिक्ष में कई बड़े मुकाम हासिल किए हैं। अब इसरो ने पिछले दिनों कुल 5805 किलोग्राम वजनी 36 उपग्रह एक साथ लांच कर एक बार फिर नया इतिहास रच दिया। इसरो के बाहुबली कहे जाने वाले सबसे भारी भरकम प्रक्षेपण यान ‘एलएमवी3’ (लांच व्हीकल मार्क-3) ने ब्रिटिश कम्पनी के इन उपग्रहों को लेकर आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र से उड़ान भरी और इन उपग्रहों को लो अर्थ ऑर्बिट (एलईओ) पर लांच कर दिया। इसरो द्वारा इस रॉकेट मिशन कोड का नाम एलएमवी3-एम3/वनवेब इंडिया-2 मिशन रखा गया था।
रॉकेट लांच होने के 19 मिनट बाद ही उपग्रहों के अलग होने की प्रक्रिया शुरू हो गई थी और सभी 36 उपग्रह अलग-अलग चरणों में पृथक हो गए। लो अर्थ ऑर्बिट पृथ्वी की सबसे निचली कक्षा होती है और ब्रिटेन (यूके) स्थित नेटवर्क एक्सेस एसोसिएटेड लिमिटेड (वनवेब) के 36 उपग्रहों को अंतरिक्ष में स्थापित करने के बाद अब पृथ्वी की निचली कक्षा में उपग्रहों के समूह की पहली पीढ़ी पूरी हो गई है। इस सफल अभियान से दुनिया के प्रत्येक हिस्से में स्पेस आधार ब्रॉडबैंड इंटरनेट योजना में मदद मिलेगी।
वनवेब के मुताबिक इन उपग्रहों के जरिये वनवेब भारत सहित वैश्विक कवरेज देने में महत्वपूर्ण कदम उठा रहा है। वनवेब के उपग्रह प्रक्षेपणों के जरिये भारत के विभिन्न उपक्रमों के अलावा स्कूलों, गांवों, नगर निगमों, कस्बों सहित उन क्षेत्रों में भी सुरक्षित सम्पर्क की सुविधा उपलब्ध कराई जा सकेगी, जहां फिलहाल पहुंच बनाना मुश्किल है। तारामंडल में 648 अलग-अलग उपग्रह शामिल हैं, जिनमें से 588 सक्रिय उपग्रह 12 विमानों में समान रूप से अलग होकर पृथ्वी की सतह से करीब 1200 किलोमीटर की ऊंचाई पर संचालित होते हैं। अंतर-विमान टकराव को रोकने के लिए प्रत्येक विमान को ऊंचाई में 4 किलोमीटर से अलग किया जाता है। पेलोड एक बेंट-पाइप सिस्टम है, जो कू और के बैंड में काम करता है। फॉरवर्ड लिंक गेटवे से के-बैंड सिग्नल को उपग्रह के एंटीना के माध्यम से प्राप्त करता है। इसरो के मुताबिक वापसी लिंक उपग्रह के एंटीना के माध्यम से उपयोगकर्ता टर्मिनलों (यूटी) से केयू-बैंड सिग्नल प्राप्त करता है।
एलएमवी3 तीन चरणों वाला रॉकेट है, जिसमें पहले चरण में तरल ईंधन, ठोस ईंधन द्वारा संचालित दो स्ट्रैप-ऑन मोटर, तरल ईंधन द्वारा संचालित दूसरा और क्रायोजेनिक इंजन होता है। इसरो के इस भारी भरकम रॉकेट की क्षमता एलईओ तक 10 टन और जियो ट्रांसफर ऑर्बिट (जीटीओ) तक चार टन वजन ले जाने की है। इसरो के अध्यक्ष एस सोमनाथ के मुताबिक एलएमवी3 रॉकेट में गगनयान मिशन के लिए जरूरी लांचरों की ही भांति एस200 मोटर्स लगाए गए थे। एलवीएम3-एम3 रॉकेट में एस200 मोटर्स भी हैं, जिन्हें बढ़े हुए मार्जिन और विशेषताओं के साथ डिजाइन किया गया है और यह गगनयान कॉन्फिगरेशन के अनुकूल हैं। इसरो प्रमुख के अनुसार इस रॉकेट में और भी कई सुधार किए गए हैं, जिनका उद्देश्य इसे अन्य चरणों और प्रणालियों में भी मानव-रेटेड बनाना है।
इसरो की अगले साल जून में चंद्रयान-3 मिशन को चंद्रमा पर लांच करने की योजना को भी मूर्त रूप दिया जा रहा है, जिसके तहत गगनयान मिशन में तीन सदस्यों के एक दल को तीनदिवसीय मिशन के लिए 400 किलोमीटर की कक्षा में भेजा जाएगा। इस मिशन को 2024 की चौथी तिमाही में लांच करने का लक्ष्य रखा गया है। एस सोमनाथ का कहना है कि वह गगनयान मिशन की दिशा में हो रही प्रगति को देखकर काफी प्रसन्न हैं। भारत ने अपने ही बलबूते पर लंबे समय से अंतरिक्ष में अपनी पैठ बनाने में कई स्तरों पर बेहतरीन प्रयोगों और उसमें सफलता के जरिये स्वयं को एक मजबूत केन्द्र के रूप में विश्व के समक्ष साबित किया है।
भारत ने विश्व के अन्य देशों के मुकाबले विशेष रूप से विज्ञान के क्षेत्र में निरन्तर उच्चस्तरीय कार्यों के जरिये वाणिज्यिक उपग्रह प्रक्षेपण के बाजार में बेहतर और सुरक्षित विकल्प पूरी दुनिया को दिया है। यही कारण है कि वैश्विक स्तर पर अंतरिक्ष में प्रयोग करने के मामले में कई देशों और अतंरिक्ष कम्पनियों का भरोसा अब इसरो की वाणिज्यिक शाखा पर बढ़ रहा है।
इसरो ने वनवेब के 36 उपग्रहों के साथ एलवीएम-3 की नवीनतम उड़ान से जरिये अब जो उपलब्धि हासिल की है, उससे भी अंतरिक्षीय प्रयोगों के मामले में दुनिया की नजर में भारत की अहमियत एक बार फिर से स्थापित हुई है। एक तरफ जहां अमेरिका सहित कई देशों के अंतरिक्ष मिशनों को झटके लगते रहे हैं और उनका अंतरिक्ष कार्यक्रम पिछड़ रहा है, वहीं इसरो लगातार सफलता के मार्ग पर अग्रसर है। यही कारण है कि अपने उपग्रहों के अतंरिक्ष में प्रक्षेपण के लिए दुनिया अब बड़ी उम्मीदों से इसरो का रूख कर रही है।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)