आदि से आज तक : हमेशा रही है आयुर्वेद की महत्ता
हेल्थ डेस्क
प्राचीन भारत की चिकित्सा पद्धतियाँ और परंपराएँ हजारों वर्षों में विकसित हुईं। इनका उल्लेख वेदों, उपनिषदों, संहिताओं और ऐतिहासिक ग्रंथों में मिलता है। इनमें कई सिद्धांत ऐसे हैं, जिन्हें आधुनिक मेडिकल साइंस अब मान्यता देने लगा है। आयुर्वेद, योग और प्राकृतिक चिकित्सा जैसे विषयों पर आज वैश्विक स्तर पर शोध हो रहे हैं। प्राचीन भारतीय चिकित्सा विज्ञान का प्रभाव आज भी दुनिया में देखा जा सकता है। आयुर्वेद और सुश्रुत संहिता में सर्जरी के विस्तृत विवरण मिलते हैं। इनमें प्लास्टिक सर्जरी, मोतियाबिंद ऑपरेशन जैसी तकनीकों का उल्लेख है। योग ने शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए अनगिनत आसनों और ध्यान विधियों को जन्म दिया। विभिन्न चिकित्सा ग्रंथों में रोगों की पहचान और उपचार के सिद्धांत बताए गए हैं, जो आधुनिक चिकित्सा प्रणाली को भी प्रेरित कर रहे हैं। वेदों में चिकित्सा विज्ञान का व्यापक उल्लेख मिलता हैः
ऋग्वेदः हवन, औषधियों और आयुर्विज्ञान संबंधी मंत्रों का उल्लेख।
यजुर्वेदः शरीर की संरचना और ऊर्जा संतुलन का ज्ञान।
अथर्ववेदः मंत्र चिकित्सा और जड़ी-बूटियों से उपचार के विस्तृत विवरण।
सूर्य चिकित्सा पद्धतिः सूर्य की किरणों से पीलिया जैसी बीमारियों का इलाज।
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वैदिक काल में चिकित्सा ज्ञान गुरु-शिष्य परंपरा के माध्यम से मौखिक रूप में प्रसारित होता था। ऋग्वेद में प्राकृतिक साधनों से स्वास्थ्य प्राप्ति के महत्व को दर्शाया गया है। आज वैज्ञानिक भी माइंडफुल मेडिटेशन और प्राकृतिक जीवनशैली को स्वास्थ्य के लिए आवश्यक मानते हैं। उदाहरण के लिए, 4000 वर्ष पूर्व अथर्ववेद में नीम के एंटी-बैक्टीरियल गुणों का उल्लेख किया गया था, जिसे 1985 में पश्चिमी वैज्ञानिकों ने पेटेंट करवाया।
आयुर्वेद और व्यक्तिगत चिकित्सा
आयुर्वेद के अनुसार, प्रत्येक व्यक्ति की शारीरिक प्रकृति वात, पित्त और कफ पर आधारित होती है। इन्हीं के संतुलन से स्वास्थ्य बना रहता है और असंतुलन होने पर बीमारियाँ जन्म लेती हैं। प्राचीन ग्रंथों में इसे रोगों के तीन प्रमुख कारणों – विष (यक्ष्मा), यातुधान और वात-पित्त-कफ से जोड़ा गया। आयुर्वेद की जड़ें अथर्ववेद (4000-3500 ईसा पूर्व) में मिलती हैं, जिसमें यज्ञ चिकित्सा, जल चिकित्सा, सूर्य किरण चिकित्सा और मानसिक चिकित्सा के सिद्धांत दिए गए हैं। आधुनिक विज्ञान भी अब माइंडफुल मेडिटेशन, धूप से विटामिन डी प्राप्त करना और प्राकृतिक चिकित्सा को स्वास्थ्य के लिए लाभकारी मानता है।
भारतीय चिकित्सा शिक्षा प्रणाली
भारत में प्राचीन काल से ही चिकित्सा शिक्षा संगठित रूप में दी जाती थी।
तक्षशिला विश्वविद्यालयः चिकित्सा, योग और सर्जरी की शिक्षा का प्रमुख केंद्र।
नालंदा विश्वविद्यालयः आयुर्वेद और बौद्ध चिकित्सा का अध्ययन केंद्र।
आचार्य चाणक्यः ’अर्थशास्त्र’ में जन स्वास्थ्य, महामारी नियंत्रण और चिकित्सा व्यवस्था का वर्णन।
आज विश्वभर में चिकित्सा शिक्षा प्रणाली विकसित हो चुकी है, लेकिन इसकी आधारशिला भारतीय विश्वविद्यालयों में ही रखी गई थी।
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आयुर्वेद की महत्ता
लगभग 3500 से 4000 वर्ष पुरानी प्रणाली। भगवान धन्वंतरि को आयुर्वेद का जनक माना जाता है। जड़ी-बूटियों से उपचार की वैज्ञानिक प्रणाली विकसित की गई। शरीर की प्राकृतिक प्रकृति (वात, पित्त, कफ) के आधार पर इलाज। ऋतु परिवर्तन और मौसमी बीमारियों का वैज्ञानिक वर्णन। आधुनिक चिकित्सा प्रणाली के कई सिद्धांत आयुर्वेद से मेल खाते हैं। उदाहरणस्वरूपः यूनानी चिकित्सक हिप्पोक्रेटस (2400 वर्ष पूर्व) ने बीमारियों को शरीर के तत्वों के असंतुलन से जोड़ा, जो आयुर्वेद में पहले ही वर्णित था। स्पेन के अबू अल कासिम अल-ज़हरावी (1089 साल पहले) को आधुनिक सर्जरी का जनक माना जाता है, जबकि सुश्रुत संहिता में पहले ही सर्जरी की तकनीकों का विस्तार से वर्णन किया गया था। एलोपैथी शब्द 1810 में जर्मन चिकित्सक सैमुअल हेनिमैन ने गढ़ा, जबकि आयुर्वेद में पहले ही विभिन्न चिकित्सा पद्धतियों का वर्णन था।
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