सस्ता और सुलभ साधन है साइकिल

रमेश सर्राफ धमोरा

तीन जून 2018 को पहली बार विश्व साइकिल दिवस मनाया गया था। तब से दुनिया में प्रतिवर्ष साइकिल दिवस मनाया जाता है। इस बार हम छठवां विश्व साइकिल दिवस मना रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ ने परिवहन के सामान्य, सस्ते, विश्वसनीय, स्वच्छ और पर्यावरण अनुकूल साधन के रूप में इसे बढ़ावा देने के लिए विश्व साइकिल दिवस को मनाने की घोषणा की थी। दो सौ साल पहले 12 जून 1817 को जर्मनी के मैनहेम में बैरन कार्ल वॉन ड्रैस ने दुनिया की पहली साइकिल पेश की थी। यह लकड़ी से बनी थी और इसमें पैडल, गियर या जंजीर नहीं थी। उसने खुद को पहले एक पैर से और फिर दूसरे पैर से धकेला। उन्होंने इसे लॉफमाशाइन (जर्मन में चलने वाली मशीन) कहा। अब तो जापान के फुकुकोआ शहर में छात्रों ने एक ऐसी साइकिल बनाई है जो हवा से चलती है। इसकी अधिकतम रफ्तार 64 किलोमीटर प्रति घंटा है। गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड ने इसे कंप्रेस्ड हवा से चलने वाली दुनिया में सबसे तेज साइकिल का सर्टिफिकेट दिया है।

बच्चे सबसे पहले साइकिल चलाना ही सीखते है। इसलिए बचपन में हम सभी ने साइकिल चलाई है। पहले के जमाने में जिसके पास साइकिल होती थी वह बहुत प्रतिष्ठित व्यक्ति माना जाता था। गांव के लोग जब कभी शहरों में जाते थे। तब लोगों को साइकिल चलाते हुए देखते थे और फिर वे खुद भी धीरे-धीरे साइकिल चलाना सीख जाते थे। पहले शहरों में किराए पर भी साइकिलें मिलती थी। देश की युवा पीढ़ी को अब साइकिल के बजाय मोटरसाइकिल ज्यादा अच्छी लगने लगी है।

अस्सी के दशक में शहरों में मोटरसाइकिल का शौक बढ़ रहा था। गांवों में भी इस मामले में बदलाव की शुरुआत हो चुकी थी। इसके बावजूद भारत में साइकिल की अहमियत खत्म नहीं हुई है। 1990 के बाद से साइकिलों की बिक्री में बढ़ोतरी आई है। लेकिन ग्रामीण इलाकों में इसकी बिक्री में गिरावट आई है। दरअसल 1990 से पहले जो भूमिका साइकिल की थी। उसकी जगह गांवों में मोटरसाइकिल ने ले ली है। इसके उपरांत भी साइकिल आज भी हमारे जीवन का अभिन्न अंग हैं।

देश में लॉकडाउन के दौरान दूसरे प्रदेशों में कमाने गए लाखों लोग साइकिल पर 1000-1500 किलोमीटर की दूरी तय कर अपने घर पहुंचे। संकट के समय साइकिल ही उनके घर पहुंचने का एकमात्र साधन बनी थी। लॉकडाउन के दौरान लाखों लोगों के घर पहुंचने का सबसे उपयोगी साधन बनने से लोगों को यह बात अच्छी तरह समझ में आ गयी की साइकिल आज भी आम लोगों का सबसे सस्ता व सुलभ साधन है।

तीन साल पहले विश्व साइकिल दिवस के दिन ही भारत की सबसे बड़ी साइकिल निर्माता कम्पनी एटलस बंद हो गई थी। प्रतिवर्ष 40 लाख साइकिल का उत्पादन करने वाली भारत की सबसे बड़ी व दुनिया की जानी मानी कम्पनी एटलस के बंद होने से साइकिल उद्योग को बड़ा धक्का लगा है। एटलस की फैक्टरी बंद होने से वहां काम करने वाले करीबन एक हजार लोग बेरोजगार हो गए। एटलस साइकिल कम्पनी की स्थापना 1951 में हुई थी। इसका कई विदेशी साइकिल निर्माता कंपनियों के साथ गठबंधन था। जिस कारण एटलस कम्पनी की साइकिल दुनिया भर की श्रेष्ठ साइकिलों में शुमार होती थी। अमेरिका के बड़े-बड़े डिपार्टमेंट स्टोर में भी एटलस की साइकिलें बेची जाती थी।

भारत में भी विकसित की जा रही ज्यादातर आधारभूत आधुनिक संरचनाएं मोटर-वाहनों को ही सुविधा प्रदान करने के लिए बन रही हैं। साइकिल जैसे पर्यावरण-हितैषी वाहन को नजरअंदाज किया जा रहा है। जबकि शहरी व ग्रामीण परिवहन में भी साइकिल का महत्वपूर्ण स्थान है। खासतौर से कम आय-वर्ग के लोगों के लिए साइकिल उनके जीविकोपार्जन का एक सस्ता, सुलभ और जरूरी साधन है। यह इसलिए भी कि भारत का कम आय-वर्ग के लोग अपनी कमाई से प्रतिदिन सौ-पचास रुपये परिवहन पर खर्च करने में सक्षम नहीं हैं।

बढ़ते प्रदूषण की वजह से दुनिया के बहुत से देशों में साइकिल चलाने को बढ़ावा दिया जा रहा है। नीदरलैंड की राजधानी एम्सटर्डम में सिर्फ साइकिल चलाने की ही अनुमति है। भारत में भी दिल्ली, मुंबई, पुणे, अहमदाबाद और चंडीगढ़ में सुरक्षित साइकिल लेन का निर्माण किया गया है। उत्तर प्रदेश में भी 200 किलोमीटर लम्बा एशिया का सबसे लंबा साइकिल हाइवे बना है। अभी देश में साइकिल चालकों के अनुपात में साइकिल रोड़ विकसित किए जाने की प्रबल आवश्यकता है। पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से देखा जाए तो दुनिया के देशों में साइकिल की वापसी को पर्यावरण की दृष्टि से एक शुभ संकेत माना जा सकता है।

(लेखक, हि. समाचार से संबद्ध हैं।)

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