Bahraich News : कोरोना की कहानी, कोरोना योद्धा की जुबानी

दवा से कम और मनोबल से ज़्यादा ठीक होती है बीमारी

संवाददाता

बहराइच। आज भी दिन की शुरुआत रोज की तरह ही हुई थी। फर्क सिर्फ इतना था कि शाम को आयी मेडिकल रिपोर्ट के अनुसार मैं कोरोना पॉज़िटिव था। इस बात ने मुझे अंदर से झकझोर दिया। मेरे इंचार्ज ने फोन कर मुझे बताया कि आप अपने कमरे मे ही रहें, बाहर न निकलें। मेरे जेहन मे कई अनिश्चित सवाल थे। तभी मुझे एंबुलेंस की आवाज सुनाई दी और रात आठ बजे मुझे कोविड हॉस्पिटल चित्तौरा में भर्ती कर दिया गया। यह कहानी रिसिया थाने मे कार्यरत उत्तर प्रदेश पुलिस के आरक्षह अनुज कुमार (बदला हुआ नाम) की है। महज 10 दिनों में इन्होंने कोरोना से जंग जीत ली। इस दौरान उन्हें जो महसूस हुआ, उसके बारे में बताते हुये कहते हैं कि मुझे दो तीन दिन से बुखार और पैरों मे दर्द था। इसके लिए मैंने खुद जाकर जांच करवायी। तीन दिन बाद रिपोर्ट आयी तो मैं संक्रमित था। पहले तो मुझे बड़ा अजीब लगा कि मुझे संक्रमण कैसे हो गया? मैं डर गया था। मेरे जेहन में एक बात लगातार चल रही थी कि पता नहीं अब क्या हो, क्योंकि इस बीमारी का तो कोई इलाज भी नहीं है। लेकिन मेरा डर उस समय कुछ कम हो गया, जब अस्पताल में मुझे एक नेक सलाह दी गयी कि आप घबराएं नहीं, हौसला रखें। सब ठीक हो जाएगा और आप सुरक्षित घर वापस जाएंगे। मेरा हौसला बढ़ाने के लिए मुझे यह भी बताया गया कि हमसे पहले कई कोरोना संक्रमित मरीज यहां से ठीक होकर सुरक्षित घर वापस गए हैं।
कोविड हॉस्पिटल मे रहने के दौरान स्वास्थ्य कर्मियों के साथ-साथ मेरे परिवार के लोगों ने भी हौसला बढ़ाया। इस अस्पताल में रहते हुये मुझे एक बात समझ में आ गयी कि इस बीमारी को जीतने का सबसे अच्छा तरीका है कि आप निश्चिंत हो जाएं, थोड़ी भी चिंता न करें बल्कि आप यह महसूस करें जैसे कुछ हुआ ही नहीं है। और इस दौरान यदि आपको कोई परेशानी होती तो आपका इलाज किया जाता है अन्यथा की स्थिति में आप आराम से खाना पीना खाइये और मस्त रहिए। घर वापसी के सवाल पर उन्हांने बताया कि 10 से 12 दिन बाद एक और जांच की जाती है जिसकी रिपोर्ट ज़्यादातर निगेटिव ही आती है। इसके बाद आप सुरक्षित अपने घर आ जाते हैं। मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ सुरेश सिंह ने बताया कि जब भी कभी आपके आसपास के किसी व्यक्ति या पड़ोसी को क्वारोटाइन या आइसोलेशन के लिए ले जाया जा रहा हो, तो उसकी वीडियोग्राफी करके उसे आपराध बोध जैसा अनुभव कराने का प्रयास न करें बल्कि अपने घर के दरवाजे से, बालकनी से या छत से आवाज लगाकर, हाथ उठाकर, हाथ हिलाकर उनका उत्साह बढ़ाएं और कहें कि आप जल्द ही ठीक होकर हमारे बीच में फिर से पहले जैसी जिंदगी शुरू करेंगे। उनके जल्द ठीक होकर घर वापसी के लिए शुभकामनाएं दें। जिससे वह अंदर से मज़बूत होकर सबके साथ फिर से जुड़ें। ऐसा करने से उन्हें अच्छा लगेगा साथ ही आपको भी शांति प्राप्त होगी क्योंकि इस स्थान पर हम में से कोई भी हो सकता है। बीमारी दवा से कम और मनोबल से ज़्यादा ठीक होती है।

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