UP News : बसपा सुप्रीमो के गुस्से से सपा को हो सकता है फायदा

लखनऊ (हि.स.)। राजनीति में कोई किसी का सगा नहीं होता और न ही कोई गठबंधन स्थायी होता है। उसमें भी यदि बसपा प्रमुख मायावती के हालिया बयान और पूर्व के गठबंधनों पर ध्यान दें तो कब किधर मुड़ जाएंगी कहा नहीं जा सकता। वैसे ही बसपा विधायक व सांसदों का भी हाल है। फिलहाल मायावती के बयान और भाजपा के साथ बढ़ती नजदीकी सपा के लिए फायदे का सौदा हो सकता है।

बसपा का हालिया बयान “सपा को हराने के लिए भाजपा का समर्थन करने से भी गुरेज नहीं, उसके तुरंत बाद राजनीति से सन्यास लेना पंसद करूंगी लेकिन भाजपा से गठबंधन नहीं करूंगी।’ चर्चा का विषय है। राजनीतिक समीक्षकों की मानें तो यह बयान और उससे पहले भी दो साल से कांग्रेस के प्रति आक्रामक रवैया मायावती को भाजपा की तरफ ले जा रहा है।

बसपा सुप्रीमो मायावती त्वरित और कड़ा निर्णय के लिए जानी जाती हैं। किसी के प्रति कब रूष्ट हो जाएंगी। यह भी जल्द कोई अनुमान नहीं लगा सकता। वैसे ही जब वे किसी के साथ जुड़ती हैं तो उनके लोगों को ही दूसरी पार्टियां अपने पाले में कर लेती हैं। यदि हाल का मामला देखें तो मायावती ने मध्यप्रदेश व राजस्थान में कांग्रेस को समर्थन किया लेकिन कुछ दिनों के बाद ही इनके विधायक ही कांग्रेस में मिल गये। इसके बाद से ही मायावती का रूख कांग्रेस के प्रति बदल गया। यदि वे कभी भाजपा को सुशासन की सीख देती हैं तो कांग्रेस भी सीख देना नहीं भूलतीं।

वैसे ही लोकसभा चुनाव में सपा के साथ मायावती ने गठबंधन किया। उस चुनाव में गठबंधन के दोनों धड़ों को काफी उम्मीदें थीं लेकिन मोदी लहर के आगे उनकी एक न चली। उसके बाद अभी अखिलेश यादव कुछ समझ पाते उससे पहले ही मायावती ने दिल्ली में जाकर गठबंधन तोड़ने की घोषणा कर दी और कई नसीहत भी दे दिये। उस समय अखिलेश यादव आजमगढ़ में थे। जब उनसे पत्रकारों ने सवाल किया तो वे कुछ भी जवाब नहीं दे पाये थे।

इस बीच अखिलेश यादव हमेसा बसपा के खिलाफ बोलने से बचते रहे लेकिन उन्होंने बिना गुरेज किये जब बसपा नेताओं को अपनी पार्टी की सदस्यता दिलाना शुरू किया तो मायावती आग बबूला हो गयीं। विधानसभा उप चुनाव के बीच ही उन्होंने सपा को हराने के लिए किसी हद तक जाने की घोषणा कर दी।

राजनीतिक विश्लेषक राजीव रंजन सिंह का कहना है कि उन्होंने सपा को हराने के लिए भाजपा से भी गुरेज न करने की घोषणा तो गुस्से में कर दी लेकिन उसके तुरंत बाद उन्हें आभास हुआ कि इस घोषणा से उनका कुछ वोट बैंक उनसे खिसक सकता है, उसके बाद उन्होंने बयान बदल दिया। आने वाले चुनाव में बसपा का गुस्सा सपा को फायदा पहुंचा सकता है।

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