State News :चुगलखोर चुगला का मुंह जलाने के साथ सम्पन्न हो गया लोक उत्सव ‘सामा चकेवा’
बेगूसराय (हि.स.)। चुगलखोर चुगला का मुंह जलाने के साथ ही मिथिला की संस्कृति के उत्सव का पर्व सामा चकेवा सोमवार की देर रात पारंपरिक रीति रिवाज के साथ सम्पन्न हो गया। मिथिलांचल के घर-आंगनों में शाम से ही सामा-चकेवा के गीत गूंजने लगे थे। इस दौरान महिलाओं ने भावपूर्ण पारंपरिक गीतों के साथ सामा-चकेवा को विदाई दी। तमाम ग्रामीण इलाकों में महिलाओं ने देर रात तक मिट्टी से बने सामा-चकेवा के विदाई की रस्म पूरी की। परंपरानुसार सामा-चकेवा, सतभइया, वृंदावन, चुगला, ढोलिया-बजनिया, बन तितिर, पंडित और अन्य मूर्तियों के खिलौने वाले डाला को लेकर महिलाएं घरों से बाहर निकली तथा पटुआ से बने चुगला को जलाया और उसका मुंह झुलसाया। इसके बाद उन्हें सामूहिक रूप से विसर्जित किया गया। जिस तरह एक बेटी को ससुराल विदा करते समय उसके साथ नया जीवन शुरू करने के लिए आवश्यक वस्तुएं दी जाती है, उसी तरह से विसर्जन के समय सामा के साथ खाने-पीने की चीजें, कपड़े, बिछावन और दूसरी आवश्यक वस्तुएं दी गई।
इस दौरान महिलाओं ने विदाई और समदाउन भी गाया। विसर्जन के पूर्व भाई अपने घुटने से सामा चकेवा की मूर्ति तोड़ी उसके बाद बहन और भाई ने मिलकर केला के थम्ब को सजाकर नदी और पोखर में विसर्जित किया। पंडित आशुतोष झा ने बताया कि मिथिलांचल की पावन धरती पर अनेकों पर्व मनाए जाते हैं। लेकिन महान लोक संस्कृति से जुड़ी भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक यह उत्सव मात्र मिथिला में ही मनाए जाने की परंपरा रही है। हालांकि अब यह मिथिला से निकल कर देश के कोने-कोने और विदेश तक पहुंच गया है।
उन्होंने बताया कि पर्व-त्योहार सिर्फ खुशियां ही नहीं देती, बल्कि सामाजिक चेतना के साथ-साथ अच्छी सीख भी देते हैं। सामा-चकेवा आधुनिक समाज में चुगलखोरों को यह सीख देती है कि चुगलपनी करने का अंजाम वही होता है जो सामा-चकेवा के चुगला का हुआ। इस लोक उत्सव के दौरान रोज भाई के नाम से पारंपरिक गीत गाए जाते हैं। इसके बाद हर दिन चुगला को थोड़ा-थोड़ा जलाया जाता है, ताकि भाई बुरी नजर से बच सके। पूर्णिमा की रात सामा चकेवा की पूजा के बाद भाई को चूड़ा-गुड़ और लड्डू दिया गया। इसके बाद बहनों ने सामा और चकेवा को पीला वस्त्र पहना कर विदाई दी है।