विद्युत वितरण निगमों के निजीकरण पर संघर्ष समिति ने उठाई तीखी आपत्ति
फर्जी दस्तावेजों से उजागर हुआ विद्युत वितरण निगमों के निजीकरण में भ्रष्टाचार
विद्युत वितरण निगमों के निजीकरण को लेकर संघर्ष समिति ने उठाए गंभीर सवाल
प्रधानमंत्री की 500 करोड़ की परियोजनाओं के बीच निजीकरण का औचित्य सवालों के घेरे में
प्रादेशिक डेस्क
लखनऊ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शुक्रवार को वाराणसी आगमन और 500 करोड़ रुपये से अधिक की विद्युत परियोजनाओं के शिलान्यास की तैयारी के बीच प्रदेश की विद्युत राजनीति में हलचल और तेज हो गई है। विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम समेत राज्य के सभी वितरण कंपनियों के निजीकरण को लेकर गहरी चिंता जताते हुए इस प्रक्रिया को तत्काल रद्द करने की मांग की है। समिति का कहना है कि जब स्वयं सरकार द्वारा इतनी विशाल धनराशि का निवेश विद्युत वितरण प्रणाली के सुधार में किया जा रहा है, तो फिर निजीकरण की आवश्यकता ही समाप्त हो जाती है। समिति ने आरोप लगाया कि निजीकरण की यह प्रक्रिया पारदर्शिता से कोसों दूर है और इसका उद्देश्य सिर्फ निजी कंपनियों को लाभ पहुंचाना है।
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संघर्ष समिति के संयोजक शैलेन्द्र दुबे ने लखनऊ में पत्रकारों से बातचीत में कहा कि आरडीएसएस योजना के तहत बिजली तंत्र में पहले ही पर्याप्त सुधार हुआ है। उन्होंने दावा किया कि एटीएंडसी हानियों में भी अब तक उल्लेखनीय कमी आई है, जिससे वितरण व्यवस्था मजबूत हुई है। इस परिप्रेक्ष्य में निजीकरण एक अवांछनीय और अव्यावहारिक निर्णय प्रतीत होता है। दुबे ने यह भी आरोप लगाया कि ट्रांजैक्शन कंसल्टेंट ग्रांट थॉर्टन ने निजीकरण के पक्ष में जो शपथ पत्र दाखिल किए हैं, वे पूर्णतः झूठे और फर्जी दस्तावेजों पर आधारित हैं। उनका कहना है कि इन दस्तावेजों की जांच होने पर घोटाले की जड़ें और गहरी साबित होंगी। इससे यह संदेह और प्रबल हो गया है कि पूरी प्रक्रिया भ्रष्टाचार से ग्रसित है। समिति का कहना है कि सरकार एक ओर तो सार्वजनिक धन से बिजली व्यवस्था को सशक्त कर रही है, दूसरी ओर उसी व्यवस्था को निजी कंपनियों के हवाले करने की तैयारी कर रही है। यह विरोधाभास अपने आप में गंभीर सवाल खड़ा करता है कि कहीं यह सब योजनाबद्ध तरीके से निजी घरानों को फायदा पहुंचाने के लिए तो नहीं किया जा रहा?
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संघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने यह भी खुलासा किया कि ऊर्जा निगमों में शीर्ष अधिकारियों की नियुक्ति में निजी कंपनियों का सीधा हस्तक्षेप है। समिति का कहना है कि पावर कॉर्पोरेशन प्रबंधन ने जानबूझकर कई ऐसे निदेशक नियुक्त किए हैं, जिनका सीधा संबंध निजी घरानों से है। यह हितों का टकराव तो है ही, साथ ही यह दर्शाता है कि सरकारी मशीनरी भी निजी हित साधने में संलिप्त हो चुकी है। इस बीच राजधानी लखनऊ में संघर्ष समिति की एक बैठक आयोजित हुई, जिसमें प्रदेशभर के सभी जिलों से आए पदाधिकारियों ने भाग लिया। बैठक में वर्तमान आंदोलन की समीक्षा करते हुए आगामी रणनीति को अंतिम रूप दिया गया। समिति ने साफ कर दिया है कि जब तक निजीकरण की प्रक्रिया पूर्णतः रद्द नहीं होती, उनका आंदोलन जारी रहेगा।
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समिति ने राज्य सरकार से मांग की है कि वह तत्काल प्रभाव से वितरण निगमों के निजीकरण की प्रक्रिया को रद्द करे और इस मामले में भ्रष्टाचार में शामिल अधिकारियों तथा परामर्शदाता एजेंसियों पर कठोर कार्रवाई सुनिश्चित करे। पारदर्शिता के नाम पर संचालित इस प्रक्रिया में जो घपले सामने आए हैं, उन्होंने निजीकरण के पूरे ढांचे की नीयत और नीति दोनों को कटघरे में ला खड़ा किया है। अब देखना यह होगा कि प्रधानमंत्री के वाराणसी दौरे और नई परियोजनाओं के शिलान्यास के बाद सरकार इस मांग को कितनी गंभीरता से लेती है या फिर यह आंदोलन प्रदेश भर में और विकराल रूप लेता है। संघर्ष समिति ने दो टूक कहा है कि यदि उनकी मांगों को नजरअंदाज किया गया, तो वे राज्यव्यापी हड़ताल और जन जागरण अभियान की ओर बढ़ेंगे।
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