सुल्तानपुर : कालिकन धाम पर माता के दर्शन से ही होती है मनोकामना पूरी

-अमृतकुंड पर ही महर्षि च्यवन ने देवी मां किया स्थापना 
सुल्तानपुर (हि.स.)। आस्था एवं विश्वास का केंद्र माता कालिकन धाम में हर सोमवार को माता के दर्शन मात्र से ही मन की मुरादे पूरी होती हैं। मुरादे पूरी होने के बाद श्रद्धालु कड़ाही चढ़ाते हैं। प्रसाद बांटते और भंडारे करते हैं। शारदीय व चैत्र नवरात्र में यहां प्रत्येक सोमवार को श्रद्धालुओं की भारी भीड़ लगती है। 
जिला मुख्यालय से अमेठी तहसील चालीस किमी दूर है। अमेठी तहसील से लगभग 15 किमी दूर संग्रामपुर ब्लाक के पास देवी कालिकन धाम है। धाम का वर्णन भागवत पुराण में भी मिलता है। मां कालिकन धाम का मंदिर प्राचीन काल से लोगों की आस्था का केंद्र बना है। पौराणिक मान्यता है कि सरयू व गंगा नदी के मध्य में स्थित कालिकन धाम महर्षि च्यवन ऋषि की तपोस्थली थी। उस समय यहां आनंदवन नामक घना व वीरान जंगल था। जंगल में ही महर्षि च्यवन ऋषि का आश्रम था। कहा जाता है कि महर्षि च्यवन ने सोमयज्ञ कराया तो यहां अमृत कुंड उत्पन्न हो गया, जिससे देवता चिंतित हो गए। अमृत कुंड की रक्षा के लिए देवताओं ने देवी शक्ति की आराधना किया तो देवी मां प्रसन्न हुई और अनुरोध के बाद अमृतकुंड की रक्षा के लिए तैैयार हो गईं। 
मुनियों का दर्शन करने इसी जंगल में ऋषि के आश्रम आये थे आयोध्या के राजा
मान्यता है की लगभग चार हजार साल पहले आयोध्या के राजा एक बार अपनी पुत्री सुकन्या के साथ महर्षि च्यवन की तपोस्थली में वन बिहार करने आए थे। तप में लीन महर्षि की आंखे दीपक के बिंब की तरह चमक रही थीं। जिसे सुकन्या ने हीरा-जवाहरात समझा और एक तिनके से उनकी आंख में छेद कर दिया। महर्षि की आंखों से रक्त की धार निकल पड़ी। मुनि क्रोधित हो गए। राजा की सेना में महामारी फैल गयी। अयोध्या नरेश के साथ आए सैनिक व हाथी-घोड़े बीमार पड़ गए। अयोध्या नरेश ने महर्षि से क्षमा-याचना की। उनकी सेवा के लिए अपनी पुत्री का विवाह महर्षि से कर वापस लौट गए। कुछ समय बाद वहां पहुंचे अश्विनी कुमार ने महर्षि से कहा कि वे उनकी आंखों की ज्योति वापस लौटा देंगे और युवा बना देंगे। बदले में महर्षि उन्हें अमृतपान कराएंगे। अश्वनी कुमार ने शर्त के अनुसार महर्षि की आंखें ठीक कर उन्हें युवा बना दिया। महर्षि के अनुरोध पर अयोध्या नरेश ने सोमयज्ञ कराया। जिसमें सभी देवता और वैद्य अश्विनी कुमार बुलाए गए। जिसमें अश्विनी कुमार को सोमपान कराए जाते देख कुपित इंद्र ने राजा को मारने के लिए वज्र उठा लिया। च्यवन ने स्तंभन मंत्र से इंद्र को जड़वत कर दिया और अमृत की रक्षा के लिए ऋषियों के आह्वान पर कुंड की शिलापट पर मां कालिका प्रगट हुई। आज उसी स्थान पर कालिकन धाम स्थापित है।
श्रद्धालु चढ़ाते हैं कढ़ाई, हलवा-पूड़ी का चढ़ता है प्रसाद
एक साल कोई पांच साल तक प्रत्येक सोमवार को माता का दर्शन करता। मनौती पूरी होने के बाद लोग वहीं पर जाकर हलवा-पूड़ी का प्रसाद बना कर खिलाते है। मंदिर के पुजारी श्री महाराज बताते हैं कि मां की आराधना से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। प्रत्येक दिन भोर में तीन से चार बजे तक व शाम को छह बजे से सात बजे आरती का समय है। जिसमें प्रतिभाग करने से देवी मां भक्तों पर कृपालु होती हैं। 

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