शारदीय नवरात्रः नौवें दिन सिद्धिदात्री और महालक्ष्मी गौरी दरबार में आस्था की कतार

– कन्या पूजन कर माता के भक्तों ने किया नवरात्र व्रत का समापन

वाराणसी(हि.स.)। शारदीय नवरात्र के नौंवे और अन्तिम दिन मंगलवार को श्रद्धालुओं ने नौ दुर्गा के नौंवे स्वरूप गोलघर मैदागिन स्थित माता सिद्धिदात्री और लक्ष्मीकुंड स्थित महालक्ष्मी गौरी के दरबार में हाजिरी लगाई।

दोनों मंदिरों में भक्तगण तड़के ही दर्शन-पूजन के लिए पहुंचने लगे थे। विधि-विधान से दर्शन-पूजन के बाद श्रद्धालुओं ने मातारानी से घर परिवार और देश में सुख-शान्ति की अर्जी लगाई। नवमी तिथि पर आदि शक्ति सिद्धिदात्री के पूजन-अर्चन से ही नवरात्रि के व्रत को पूर्ण माना जाता है। देवी पुराण में भी माता के महत्व का वर्णन है। भागवत पुराण में भी लिखा है कि सिद्धि और मोक्ष देने वाली दुर्गा को सिद्धिदात्री कहा जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव ने भी इन्ही की कृपा से सिद्धियां प्राप्त की थीं और वे अर्धनारिश्वर कहलाये।

भगवान शिव को मिले आठ सिद्धियों में अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकम्य, ईशित्व और वशित्व शामिल हैं। मां सिद्धिदात्री महालक्ष्मी के समान कमल पर विराजमान हैं। मां के चार हाथ हैं। मां ने हाथों में शंख, गदा, कमल का फूल और च्रक धारण किया है। मां सिद्धिदात्री को माता सरस्वती का रूप भी माना जाता है। सिद्धिदात्री भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं और उन्हें यश, बल, धन प्रदान करती हैं। नौ गौरी के नौवें स्वरूप माता महालक्ष्मी की कृपा से वैभव और समृद्धि प्राप्त होती है। खान-पान का वैभव भी देवी से प्राप्त होता है। काशी में मान्यता है कि किसी भी नवमी की तिथि पर देवी के दर्शन का फल कई गुना बढ़ जाता है। देवी की कृपा होने पर व्यक्ति को धन की कमी नहीं होती।

नवरात्र व्रत के समापन पर लोगों ने विधि-विधान से कन्या पूजन कर उनसे आशीर्वाद लिया। श्रद्धालुओं ने मनोकामना पूर्ति और माता की कृपा पाने के लिए छोटी-छोटी कन्याओं, बालकों (बालभैरव) को भोजन कराकर उपहार और दक्षिणा भी दिया। कन्या पूजन से पहले कन्याओं के चरण धोकर उन्हें तिलक लगा फिर आसन पर बैठाया।

श्रीधर

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