वरुणा की सूखी हलक, प्यास बुझाने को अंजुरी भर नहीं जल
पूर्वांचल के किसानों की लाइफ लाइन है वरुणा, बरसात में दिखती है गंगा
अथर्ववेद और ब्रह्मपुराण में मिलता है वरुणा नदी का उल्लेख
योगी सरकार डेनमार्क से वरुणा के कायाकल्प को किया है समझौता
भदोही (हि.स.)। पूर्वांचल के प्रयागराज, जौनपुर, भदोही और वाराणसी तक 202 किमी का सफऱ लहराते और बलखाते हुए तय करने वाली वरुणा में अंजुरी भर जल नहीं है। अषाढ़ की दोपहरी में नदी खुद प्यासी है और तलहटी में दरारें पड़ी हैं। यहां तक की जंगली जानवरों, पशु-पक्षियों की प्यास बुझाने तक के लिए पानी नहीं है। पानी की तलाश में जानवर गांवों तक पहुंचते हैं। जबकि बारिश के मौसम में इसी वरुणा की उफानती लहरें गंगा जैसी दिखती हैं।
वरुणा नदी का उल्लेख अथर्ववेद में भी पाया जाता है। इसे गंगा की उपनदी माना है। भगवान विश्वनाथ की जीवंत काशी वरुणा और अस्सी के बीच में बसी है। वाराणसी में यह अस्सी नदी में जाकर मिलती है। वरुणा और अस्सी मिलने की वजह से बनारस का नाम वाराणसी पड़ा। वाराणसी के उत्तर दिशा में नदी प्रवाहित होती है। अथर्ववेद में इस नदी का उल्लेख वरणावती नाम से है। समझा जाता है कि उसी का बिगड़ा रूप वरुणा है। ब्रह्मपुराण में भगवान शिव माता पार्वती से कहते हैं कि वरुणा और अस्सी दोनों नदियों के मध्य वाराणसी स्थित है। अग्नि पुराण में भी वरुणा एवं अस्सी नदियों का उल्लेख है।
वरुणा नदी का उद्गम स्थल प्रयागराज के फूलपुर में बताया जाता है। यह मैलहन नामक स्थान के इनऊझ ताल से निकली है। यह स्थान फूलपुर-बादशाहपुर-जौनपुर राजमार्ग पर स्थित है। इसे वरुणा नामक स्थान से जाना जाता है। यहां पर प्राचीन वरुणेश्वर महादेव का मंदिर स्थापित है। यह बेहद प्राचीन और विशाल है। यहां प्रसिद्ध मेला लगता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार प्राचीन काल में यहां बहुत बड़ा अकाल पड़ा था। जिसके बाद लोगों ने जल के देवता वरुण का आह्वान किया। वरुण भगवान प्रकट हुए और उन्होंने तीर चलाया। मान्यता है कि जिस जगह तीर गिरा वहीं से जल की धारा फूट पड़ी। जिसके बाद उस उद्गम स्थल का नाम वरुणा हो गया। कहा जाता है कि वरुणजी ने ही यहां स्थापित प्राचीन शिवलिंग की स्थापना कराई थी। जिसकी वजह से इस नाम को वरुणेश्वर महादेव के नाम से जानते हैं।
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने वरुणा नदी के उद्गम और अन्य स्थलों पर पर्यटन की संभावना तलाशने में जुटी है। नदी के कायाकल्प के लिए डेनमार्क से समझौता हुआ है। कुछ महीने पूर्व डेनमार्क की टीम वाराणसी, भदोही और वरुणा के उद्गम स्थल का दौरा किया था। समझौते के बाद वरुणा का कायाकल्प कितना हो पाएगा यह तो वक्त बताएगा। लेकिन वर्तमान समय में वरुणा की हालत बेहद खस्ता है। वाराणसी में जहां है शहर के नालों, फैक्ट्रियों का अपशिष्ट, केमिकल युक्त जल गिर रहा है। जिसकी वजह से पानी एकदम जहरीला और प्रदूषित हो गया है। भदोही में भी शहर के गंदे नाले और फैक्ट्रियों का पानी सीधे वरुणा में गिर रहा है।
भदोही में वरुणा के कायाकल्प के नाम पर ग्राम पंचायतों ने लाखों रुपए डकार लिए, लेकिन वरुणा का उद्धार नहीं हो पाया। सुरियावां और भदोही ब्लॉक में वरुणा की खुदाई के नाम पर करोड़ों रुपए बर्बाद हो गए फिर भी जेठ की दुपहरी में एक बूंद पानी नहीं है। मनरेगा जैसी योजना में लाखों रुपए का बजट बह गया। हरियाली प्रदान करने के लिए वृक्षारोपण के नाम पर भी खूब पैसे लूटे गए, लेकिन एक भी पेड़ दिखाई नहीं दे रहा है। भदोही जनपद के जिलाधिकारी गौरांग राठी से उम्मीद है कि वरुणा की खुदाई के नाम पर मनरेगा में जो धन की लूट हुई उसकी जांच होनी चाहिए। जिलाधिकारी को स्थलीय निरीक्षण कर वित्तीय घपले पर लगाम कसनी चाहिए। अगर काम हुआ है तो अच्छा नहीं तो जाँच में दोषी पाए जाने वाली ग्राम पंचायतों से पैसे की वसूली होनी होनी चाहिए। क्योंकि वरुणा की खुदाई की आड़ में मनरेगा से आनावश्यक बजट ख़ारिज होता है। नदी खुदाई के नाम पर रोक लगनी चाहिए।
वरुणा पूर्वांचल के प्रयागराज, जौनपुर, भदोही और वाराणसी के किसानों की लाइफ लाइन है। वारिस के में गंगा जैसी विकराल दिखती है, लेकिन जेठ में चुल्लू भर पानी नहीं रहता। भदोही और जौनपुर की सीमा को विभाजित करती है। भदोही में तो एक ही नदी को तीन-तीन बाद पार करना पड़ता है। वरुणा को अगर सतत जलवाहिनी बना कर सीधे नहरों से जोड़ दिया जाए तो यह किसानों के लिए बेहद लाभकारी साबित होगी। जहाँ आसपास इलाके का जलस्तर उठेगा वहीं खेती के लिए वरदान साबित होगी। वरुणा सिर्फ नदी नहीं है पूर्वांचल के इन जिलों की संस्कृति और संस्कार भी है। अब इसकी प्यास कब बुझेगी अपने आप में बड़ा सवाल है।
प्रभुनाथ