(बॉलीवुड के अनकहे किस्से) वहीदा रहमान और गुरुदत्त की ‘वो’ मुलाकात

अजय कुमार शर्मा

वहीदा रहमान को हाल ही में दादा साहब फाल्के पुरस्कार से नवाजा गया है। वह गुरुदत्त की खोज थीं। उनकी पहली हिंदी फिल्म ‘सीआईडी’ थी। इसका निर्माण गुरुदत्त ने किया था। गुरुदत्त का वहीदा रहमान से मिलना एक संयोग था, लेकिन यह उनकी पारखी नजरों का ही कमाल था जिसने वहीदा रहमान में एक संवेदनशील अभिनेत्री को पहचाना और तराशा भी। गुरुदत्त की वहीदा से पहली मुलाकात अचानक हैदराबाद में हुई थी।

हुआ यह था कि गुरुदत्त के एक सहयोगी ने उन्हें एक हिट तेलुगु फिल्म के बारे में बताया था।उसका सुझाव था कि अगर इस फिल्म को हिंदी में भी बनाया जाए तो यह गुरुदत्त प्रोडक्शन के लिए भी अच्छा रहेगा। उन्होंने गुरुदत्त को यह फिल्म हैदराबाद आकर देखने के लिए कहा क्योंकि तब यह फिल्म वहां लगातार हाउसफुल चल रही थी। गुरुदत्त कार से हैदराबाद पहुंचने के लिए तैयार हो गए। कार में उनके साथ अबरार अल्वी और गुरु स्वामी भी थे। असल में उन्होंने पूरी रात यात्रा करके सुबह हैदराबाद पहुंचना तय किया था लेकिन हैदराबाद पहुंचते ही एक हादसा हो गया। ड्राइवर पूरी रात गाड़ी चलाने के कारण थका हुआ था जिस कारण कार अचानक एक भैंस से टकरा गई। किसी को चोट तो नहीं आई लेकिन कार काफी क्षतिग्रस्त हो गई। कार के मैकेनिक ने बताया कि इस गाड़ी को ठीक होने में कम से कम तीन दिन लगेंगे यानी जो यात्रा एक दिन फिल्म देखने के लिए तय की गई थी वह तीन दिन में पहुंच गई।

वहीदा रहमान बचपन से भरतनाट्यम सीखती थीं और पिता के अचानक देहांत होने के बाद स्टेज शो करने लगी थीं । तभी उनके पिता के एक करीबी मित्र फिल्म निर्माता रामकृष्ण प्रसाद ने अपनी तेलुगु फिल्म रोजुलु मरई में वहीदा को एक नृत्य गीत की पेशकश की थी जो उन्होंने स्वीकार किया था। इन दोनों की पहली मुलाकात कोई बहुत चकित कर देने वाली नहीं थी। क्योंकि वहीदा रहमान बहुत सादा कपड़ों में आई थीं और उन्होंने गुरुदत्त से बहुत ज्यादा बात भी नहीं की थी। उन्होंने ज्यादातर सवालों के जवाब हां या नहीं में दिए थे। इस बारे में वहीदा रहमान ने लिखा है कि जब मैं उनसे 1955 में पहली बार मिली तब तक तो गुरुदत्त ने उनकी फिल्म का डांस नंबर भी नहीं देखा था। मैंने उस मीटिंग को बहुत ज्यादा अहमियत नहीं दी और उसके बारे में भूल भी गई थी। तीन महीने बाद गुरुदत्त ने अपने एक मित्र मनुभाई पटेल को उन्हें यह बताने के लिए भेजा कि उन्हें स्क्रीन टेस्ट के लिए बंबई जाना है।

इस बारे में उन्होंने लिखा है कि मैं बहुत प्रसन्न थी, क्योंकि मैं हमेशा चाहती थी कि हिंदी फिल्मों में काम करूं। मैं जून 1955 में गुरुदत्त से उनके फेमस सिने बिल्डिंग के ऑफिस में मिली। उन्होंने मेरा स्क्रीन टेस्ट लिया और कहा, ‘आपसे तीन साल का कॉन्ट्रैक्ट होगा 1200 रुपये प्रतिमाह का।’ सीआईडी पहली फिल्म थी। इसे राज खोसला के निर्देशन में बनाया जा रहा था। पहले ही दिन अच्छी खासी तकरार हुई। राज खोसला ने उनका नाम बदलकर उनसे छोटा नाम रखने को कहा जिसे उन्होंने मानने से इनकार कर दिया। इतना ही नहीं उन्होंने अपनी मां द्वारा साइन करने से पहले कॉन्ट्रैक्ट में कोई बलगर ड्रेस न पहनने को लेकर भी एक पॉइंट कॉन्ट्रैक्ट में जुड़वाया। राज खोसला को एक नई अभिनेत्री की यह शर्त बहुत बुरी लगी लेकिन इस छोटी उम्र में वहीदा की यह खुद्दारी गुरुदत्त को पसंद आई। जब ‘सीआईडी’ आधी समाप्त हुई तब उन्हें ‘प्यासा’ फिल्म के लिए फाइनल किया गया और उसकी शूटिंग शुरू हुई। सीआईडी में उन्हें एक छोटा साइड रोल देकर ब्रेक दिया गया था लेकिन उन पर फिल्माया गया गाना-कहीं पर निगाहें कहीं पर निशाना… बहुत लोकप्रिय हुआ।

चलते-चलते

‘प्यासा’ का एक दृश्य है, जहां गुलाब (वहीदा रहमान) नायक विजय (गुरुदत्त) के प्रति पहली बार आसक्त होती है। इसे एक गाने, ‘आज सजन मोहे अंग लगा लो…’ से प्रदर्शित किया गया है। हीरो एक छत पर खड़ा है और गुलाब उसके पास जाना चाहती है लेकिन वह डरी हुई है। अपने एक संस्मरण में वहीदा ने लिखा है कि वह इस दृश्य में सही भाव नहीं ला पा रही थीं । गुरुदत्त ने उन्हें समझाने की काफी कोशिश की। इसमें कोई संवाद नहीं था केवल भाव से दिखाना था। भाव न आने पर उन्होंने उनको समझाते हुए कहा कि आप सबसे ज्यादा किसे प्यार करती हैं जब उन्होंने बताया कि पिता, तो उन्होंने कहा कल्पना करिए कि अब पिता आपके जीवन में नहीं है लेकिन आप उनसे प्यार करती हैं पर क्योंकि अब वह नहीं हैं तो उनसे मिलने में आपको जो संकोच होगा वही संकोच मुझे चाहिए। मैंने वैसा ही सोचा और सच में यह दृश्य फिल्म के सबसे यादगार दृश्यों में से एक बना।

(लेखक, वरिष्ठ कला-संस्कृति समीक्षक हैं।)

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