यूपी में ई-स्टैम्प की बिक्री पर कम कमीशन के खिलाफ याचिका पर फैसला सुरक्षित
प्रयागराज। ई-स्टैप की बिक्री में सामान्य स्टैम्प पेपर की तुलना में कम कमीशन दिए जाने के खिलाफ स्टैम्प वेंडरों की याचिका पर हाईकोर्ट ने अपना निर्णय सुरक्षित कर लिया है।
स्टैम्प वेंडरों का कहना है कि सामान्य स्टैम्प की तुलना में ई स्टैम्प बेचने पर उनको कम कमीशन मिलेगा। जिससे उनकी आमदनी कम होगी। यह एक प्रकार से असमानता है और संविधानिक प्रावधानों के वितपरीत है। यूपी स्टाम्प वेंडर एसोसिएशन की याचिका पर न्यायमूर्ति एसपी केसरवानी और न्यायमूर्ति अजय भनोट की पीठ सुनवाई कर रही है।
स्टैम्प वेंडरर्स की ओर से पक्ष रख रहे वरिष्ठ अधिवक्ता एनसी राजवंशी का कहना था कि सरकार का दायित्व है कि वह आर्थिक न्याय लोगों को उपलब्ध कराए और असमानता दूर करे। प्रदेश सरकार द्वारा ई स्टैम्प बेचने के लिए लागू नीति से स्टैम्प वेंडर्स को नुकसान होगा। उनको सामान्य स्टैम्प पेपर की तुलना में कम कमीशन प्राप्त होगा। इससे उनकी आमदनी में कमी आएगी। इससे संविधान के अनुचछेद 38 जो कि नीति निदेशक तत्व का एक हिस्सा है उसका उल्लंघन होगा।
याचिका के विरोध में सरकार की तरफ से अपर मुख्य स्थायी अधिवक्ता संजय गोस्वामी का कहना था कि ई स्टैम्प रूल 2013 में स्टैम्प वेंडर्स को ई स्टैम्प बेचने के लिए अधिकृत नहीं किया गया है। इनको बाद में संशाधित नियम 2019 में अधिकृत किया गया है। वर्तमान में सरकार के पास 17 हजार करोड़ रुपये से अधिक के स्टैम्प का स्टॉक है, जिसे बेचने में दो साल से अधिक का समय लगेगा। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता है कि ई-स्टाम्प बेचने से उनकी आमदनी में विपरीत प्रभाव पड़ेगा।
सरकारी अधिवक्ता का कहना था कि याचीगण के पास सिर्फ अपने लाइसेंस की शर्तों को लागू करवाने का अधिकार है। उन्होंने ई स्टैम्प अधिकृत बिक्री केंद्र के लिए आवेदन नहीं किया है। इसलिए ई स्टैम्प रूल के तहत नहीं आते हैं। कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद निर्णय सुरक्षित कर लिया है।