गोरखपुर। नारियल उत्पादन की बात आते ही आंखों के सामने गोवा और तमिलनाडु में समुद्री किनारों और वीरान में सीना तानकर खड़े नारियल के पौधों की तस्वीर उभर आती है। लेकिन अब नारियल उत्पादन में इन दोनों प्रदेशों की बादशाहत को पूर्वांचल से चुनौती मिलने वाली है। इसकी तैयारियां पूर्ण हो चुकी हैं।
पूर्वी उत्तर प्रदेश में नारियल उत्पादन की बेल्ट तैयार होगी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के विशेष प्रयास पर कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) बेलीपार ने 55 सौ नारियल के पौधों की नर्सरी तैयारी की है। नारियल के पौधों व फल के लिए अब तामिलनाडु व गोवा पर निर्भर नहीं रहना होगा। तैयारियां लगभग पूरी कर ली गईं हैं।
24 जिलों में भेजे जाएंगे नारियल के पौधे पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोरखपुर, महाराजगंज, देवरिया, सिद्धार्थनगर, बस्ती, संत कबीर नगर, कुशीनगर सहित 24 जिलों में नारियल की खेती कर उत्पादन को बढ़ावा देने का कार्य चल रहा है। इन सभी जिलों के कृषि विज्ञान केंद्रों (केवीके) को गोरखपुर के बेलीपार से ही नारियल के पौधे भेजे जाएंगे। वहां भी किसानों को नारियल का पौधा रोपने के लिए तैयार किया जाएगा।
वर्ष 2019 में ही शुरू हुए थे प्रयास
वर्ष 2019 मार्च में तत्कालीन केंद्रीय कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह गोरखपुर व आसपास के जिलों में नारियल उत्पादन की संभावना को देखते हुए केवीके बेलीपार को नारियल उत्पादन के लिए निर्देश दिया था। उसके बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इसे लेकर गंभीरता से लिया। विशेष प्रयास शुरू किए। फिर इस पर काम शुरू हो गया और जून 2019 में कोकोनट विकास बोर्ड पटना के माध्यम से यहां नारियल नर्सरी डाली गई तथा तमिलनाडु और गोवा को चुनौती देने की इबारत लिखी जाने लगी।
ऐसे होगी रोपाई– प्रति पौधा 01 घन मीटर का गड्ढा खोदें।- मिट्टी में गोबर की सड़ी खाद व कीटनाशक डालना न भूलें।- पौधरोपण के समय प्रति पौधा एक किलोग्राम नमक डालें। इसे गड्ढे में रोप गए पौधे के चारों तरफ डालें और उसका भराव करें।- उसके बाद पानी डालें। पौधा स्वस्थ, सुडौल और फलदार होगा।
07 सितंबर के बाद वितरित होंगे पौधेकृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार के वरिष्ठ वैज्ञानिक व अध्यक्ष डॉ. सतीश कुमार तोमर के मुताबिक 02 सितंबर यानी नारियल दिवस के मौके पर किसानों में इस पौधों का वितरण होना था, लेकिन अब इसका समय 07 सितंबर के बाद तय किया जाएगा। वजह, नारियल विकास बोर्ड की टीम 07 सितंबर को पौधों का निरीक्षण एवं सत्यापन करने आ रही है। इसके बाद ही पौधों का वितरण संभव है।
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