UP News : एक तोला नमक बनाकर हुआ सत्याग्रह का आगाज
-ब्रिटिश कर्मचारी के पुत्र ने खरीदा था नमक-नमक सत्याग्रह की मिली थी रायबरेली को जिम्मेदारी
रायबरेली(हि.स.)। शहर में मुख्य चैराहे पर स्थित एक भवन में काफी गहमागहमी थी। बड़े बड़े नेताओं का वहां जमावड़ा था, बावजूद इसके एक अजब से खामोशी थी। अचानक एक बड़ा जुलूस उस भवन के पास रुकता है और नारेबाजी और जयकारों के बीच सभी नेता वहां पहुंचते है। वहां मौजूद लोंगो की मौजूदगी में एक तोला नमक बनाया जाता है।
इसके साथ ही संयुक्त प्रांत में एक ऐसे आंदोलन का आगाज होता है जिसने अंग्रेजों की नींव हिला दी थी। जी हां यह घटना है 8 अप्रैल 1930 की और स्थान है शहर का तिलक भवन। वहां मौजूद नेताओं में पंडित मोती लाल नेहर, रफी अहमद किदवई, विजय लक्ष्मी पंडित, इंदिरा गांधी सहित तत्कालीन कांग्रेस के नेता थे जिनकी मौजूदगी में नमक सत्याग्रह का आगाज हुआ था और इस सत्याग्रह की शुरूआत करने में अहम भूमिका निभाई थी मुंशी सत्यनारायण ने। मजेदार बात यह है कि इस नमक को वहां मौजूद मेहर चंद्र खत्री ने खरीदा था जिनके पिता लक्ष्मी नारायण ब्रिटिश कर्मचारी थे और डिप्टी कमिश्नर के चीफ रीडर के पद पर तैनात थे। हालांकि इस सत्याग्रह की औपचारिक शुरुआत होने से ब्रिटिश सरकार हतप्रभ थी और उसने तुरंत अपनी दमनकारी कार्रवाई भी शुरू कर दी। काफी संख्या में लोगों को गिरफ्तार किया गया और जेल में डाला गया। उनके न मिलने पर परिजनों पर जुल्म भी ढाए गए लेकिन इस आंदोलन ने पूरे देश मंे अपना असर दिखाया जिसकी पूरे संयुक्त प्रांत की कमान रायबरेली के हाथों में थी।
’नमक सत्याग्रह की मिली थी जिम्मेदारी’
संयुक्त प्रांत में इस आंदोलन के आगाज करने के लिए रायबरेली को चुना गया और इसके लिए रफी अहमद किदवई को डिक्टेटर नियुक्त किया गया। रफी अहमद किदवई के नेतृत्व में रायबरेली में आंदोलन को खड़ा करने की जिम्मेदारी कालाकांकर के राजा अवधेश सिंह को दी गई। सविनय अवज्ञा आंदोलन में प्रमुख नमक सत्याग्रह था जो कि रायबरेली में काफी सफल रहा। हालांकि इसके अलावा भी विदेशी कपड़ों के बहिष्कार, करबन्दी, सरकारी नौकरी व शिक्षा की उपाधियों का बहिष्कार सहित कई कार्यक्रमों के जरिये रायबरेली के लोगों ने अपनी संघर्ष क्षमता का लोहा मनवाया। 1 अप्रैल, 1930 को राजा अवधेश सिंह के नेतृत्व में एक बड़ा जुलूस रायबरेली की सड़कों पर दिखा। लोगों का हुजूम ब्रिटिश सरकार के लिए चिंता की बात हो गई। अब सतर्क होकर इस पर नजर रखी जाने लगी। नमक सत्याग्रह में पूरे जिले में गांव-गांव नमक बनाये जाने लगे थे। 6 अप्रैल को डलमऊ में रफी अहमद किदवई के नेतृत्व में डलमऊ में एक जत्था नमक बनाने को गया, हालांकि प्रशासन के दबाब में यह सम्भव नहीं हो सका। बावजूद इसके जिस तरह इस सत्याग्रह को लेकर लोगों का जोश उमड़ रहा था वह बेहद महत्वपूर्ण था। 8 अप्रैल को मोतीलाल नेहरू, कमला नेहरू व इंदिरा की मौजूदगी में बनाया गया और नीलाम किया गया। इसके बाद लालगंज, सरेनी, केवलपुर,पट्टी रहस कैथवल, रोहनियां आदि में नमक बनाकर सत्याग्रह किया गया।