UP News : राष्ट्रीय किशोर स्वाथ्य कार्यक्रम की ‘किशोरियों’ तक पहुंचने में खामियां उजागर
-साथिया के बारे में मात्र 2.6 प्रतिशत अविवाहित और 1.0 प्रतिशत लड़कों को जानकारी
-आशाओं से मात्र 0.3 प्रतिशत अविवाहित लड़कियों को सुरक्षित यौन व्यवहार का मिला ज्ञान-यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य के बेहतर परिणामों के लिए सक्रिय माहौल जरूरी
लखनऊ (हि.स.)। उचित सामाजिक वातावरण तथा सूचनाओं व सेवाओं संबंधी क्रियाओं को मजबूत करने से यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य परिणामों में काफी सुधार लाया जा सकता है। यह बात एक नए अध्ययन में सामने आयी है।
युवाओं से प्रभावी संवाद करने की क्षमता विकसित करना जरूरीवर्ष 2015-16 और 2018-19 में उत्तर प्रदेश के 10-19 वर्ष की आयु के दस हजार से अधिक किशोर-किशोरियों पर किये गए अध्ययन यूडीएवाईए (उदया) में किशोरों और युवा वयस्कों के जीवन को समझने का प्रयास किया गया। इसमें सामने आया कि सही उम्र में शादी करना, लड़कियों को उच्च शिक्षा दिलाना, स्कूली शिक्षा के दौरान किशोर-किशोरियों को गर्भनिरोधक विधियों की जानकारी देना, अविवाहित और विवाहित किशोर-किशोरियों तक फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं की पहुंच सुनिश्चित करने के साथ-साथ उनमें युवा लोगों से प्रभावी संवाद करने की क्षमता विकसित करना कुछ ऐसे उपाय हैं जिनसे किशोर-किशोरियों के यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य में सुधार लाया जा सकता है।
गर्भ निरोधक साधनों तक युवाओं की पहुंच बेहद जरूरीइसके साथ ही गर्भ निरोधक साधनों तक युवाओं की पहुंच सुनिश्चित करना तथा युवा जोड़ों और उनके परिवार के साथ युवा महिलाओं की गर्भनिरोधक जरूरतों, उनके अधिकारों और उपलब्ध विकल्पों के बारे में बातचीत करना भी जरूरी है।इस अध्ययन में सामने आया है कि प्रदेश में प्रजनन स्वास्थ्य से सम्बंधित जोखिमों, गर्भनिरोधकों की जानकारी व उपयोगिया तथा उनके उपयोग को प्रभावित करने वाले कारकों में बदलाव होता रहा है। यह निष्कर्ष कम उम्र के किशोर-किशोरियों (2015-16 में 10-14 वर्ष और अविवाहित), अधिक उम्र के किशोर-किशोरियों (2015-16 में 15-19 वर्ष और अविवाहित) और अधिक उम्र की विवाहित किशोरियों (2015-16 में 15–19 वर्ष) पर आधारित हैं।
फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं का सम्पर्क अब भी सीमितपॉपुलेशन काउंसिल के निदेशक डॉ. निरंजन सगुरति के अनुसार ‘उदया’ अध्ययन के निष्कर्ष बताते हैं कि स्कूल में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और शादी में देरी का महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य और उनके परिवार नियोजन सम्बन्धी निर्णयों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। साथ ही यह भी सामने आया है कि राष्ट्रीय किशोर स्वाथ्य कार्यक्रम जैसे सरकारी कार्यक्रमों की पहुंच तथा अधिक उम्र की अविवाहित या नव-विवाहित किशोरियों के साथ फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं का सम्पर्क अब भी सीमित है। डॉ. निरंजन के अनुसार असल में उनका पहला सम्पर्क विवाहित किशोरियों से सीधा प्रसव के दौरान या पहले बच्चे के जन्म के बाद होता है। इससे किशोरियों को परिवार नियोजन की उचित जानकारी नहीं मिल पाती जिससे कम उम्र में मां बनने, बार-बार गर्भधारण करने और बाल मृत्यु जैसी समस्याओं का सामना पड़ता है।
मात्र 3.3 प्रतिशत को मिली गर्भनिरोधकों के बारे में जानकारीअध्ययन में यह भी सामने आया है कि राष्ट्रीय किशोर स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत चलाये जा रहे पीयर एजुकेटर (साथिया) कार्यक्रम के बारे में भी बहुत कम युवा जागरूक थे। केवल 2.6 प्रतिशत अविवाहित (13-17 वर्ष) लड़कियों और 1.0 प्रतिशत लड़कों को ही इस कार्यक्रम की जानकारी थी। आशा वर्कर द्वारा केवल 12.5 प्रतिशत अविवाहित लड़कियों को किशोरावस्था के दौरान होने वाले शारीरिक बदलावों, 0.3 प्रतिशत को सुरक्षित यौन व्यवहार और एसटीआई, एचआईवी, एड्स तथा 3.3 प्रतिशत को गर्भनिरोधकों के बारे में जानकारी दी गई थी।
नतीजों में मिली कमियों को दूर करने पर जोर राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अपर मिशन निदेशक हीरा लाल अध्ययन के आंकड़ों को गंभीरता से लेते हुए कहते हैं कि इस रिसर्च के जो नतीजे हैं इनमें जो भी कमियां इंगित की गई हैं उनको दूर करके इससे बचा जा सकता है और इससे जुड़े सभी लोगों को इस दिशा में प्रयास करने होंगे।
यौन स्वास्थ्य को व्यावहारिक ज्ञान के रूप में साझा करना जरूरीसेंटर फॉर एक्सिलेंस की डॉ. सुजाता देव बताती हैं कि आवश्यक है प्रजनन और यौन स्वास्थ्य को किशोर–किशोरियों के साथ प्रारम्भ से व्यावहारिक ज्ञान के रूप में साझा किया जाए जिससे वे न सिर्फ शारीरिक विकास की अवधारणा को समझ सकें बल्कि उसके देखभाल सम्बन्धी तकनीकी पहलू से भी परिचित हो सकें।
किशोरावस्था में बेटे-बेटियों को ज्यादा जानकारी देने की जरूरतशिया इंटर कालेज के प्रिंसिपल सैयद हसन सईद के मुताबिक यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य की स्थिति को बेहतर करने के लिए किशोरावस्था में बेटे-बेटियों को ज्यादा से ज्यादा जानकारी देने की जरूरत है। अगर हम स्कूल-कालेजों में किशोर-किशोरियों को प्रजनन स्वास्थ्य से सम्बंधित जोखिमों, गर्भनिरोधकों की जानकारी व उपयोगिया के बारे में बताएंगे तो इससे उन बच्चों की जिंदगी भी बेहतर बनेगी और साथ ही देश का भविष्य भी बेहतर होगा। उन्होंने कहा कि सकारात्मक तौर पर देखा जाए तो शिक्षा के हर एक वर्ष में वृद्धि से युवा लड़कियों की यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य सम्बन्धी कार्यक्रमों के प्रति समझ और उनके बारे में खुलकर बात करने की क्षमता में भी वृद्धि होती है। आधारभूत शिक्षा का ज्ञान रखने वाली महिलाओं में कम बच्चे, गर्भपात की कम दर, गर्भनिरोधकों की बेहतर समझ और संस्थागत प्रसव अपनाने की ओर रुझान देखने को मिला है।