UP News : पर्यावरण उजाड़ने को किसान विवश, खेतों में बाड़ लगाने को पेड़ों की दे रहे बलि
संजीव जूरैल
आगरा (हि.स.)। पर्यावरण की रक्षा और उसकी स्थिति में सुधार करने के लिए सरकार प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए खर्च करती है। लोगों को विचार गोष्ठियों व प्रचार-प्रसार के जरिए इसके प्रति जागरूक रही है, लेकिन ऐसे में पर्यावरण के सबसे बड़े रक्षक यानी किसानों को आवारा पशुओं की बढ़ती समस्या ने ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है कि वह पर्यावरण का भक्षक बनने को मजबूर हो गया है। उन्हें अपनी फसलों को बचाने के लिए खेतों के चारों ओर कटीले तारों की बाड़ लगानी पड़ रही है। इस कारण वह बड़े स्तर पर अपने लगाए हुए पेड़ों को मजबूरी में काट रहे हैं।
इसकी जानकारी के लिए शुक्रवार को किसानों के बीच जब हिन्दुस्थान समाचार के प्रतिनिधि पहुंचे तो देखा कि खेतों के लिए जाने वाले कच्चे रास्तों, खेतों की मेड़ों पर अधिकतर किसानों ने कटीले तारों की बाड़ लगाई है, जो पेड़ों से कटी हुई शाखाओं के माध्यम से लगी है। इसी तरह से लगभग 90 फीसदी किसान अपने खेतों को चारों ओर से घेरे हुए हैं, जिससे कि वह आवारा पशुओं से फसलों को बचा सकंे।
दरअसल गत दो वर्षों से आवारा पशुओं की संख्या में काफी वृद्धि हुई है। हालांकि सरकार ने आवारा गोवंश के लिए आश्रय स्थलों का निर्माण कराया है, जिनमें में अस्थाई और स्थाई गौशाला बनाई गई। बावजूद इसके बड़ी संख्या में आवारा गोवंश खेत खलिहान में घूम रहे हैं। जो भूख बुझाने के लिए फसलों को उजाड़ रहे हैं। किसानों के लिए फसलों की रक्षा करना इस समय मुश्किल का दौर हो गया है। लोगों को दिन-रात खेतों पर रहकर रखवाली करनी पड़ रही है, लेकिन बावजूद इसके आवारा पशु खेतों में नुकसान कर जाते हैं। किसान परेशान होकर खेत के चारों ओर कटीले तारों की बाड़ लगा रहे हैं, जो लकड़ियों के सहारे लगा रहे हैं। जिससे एक ओर किसानों की लागत और श्रम बढ़ रहा है, तो दूसरी ओर पर्यावरण को भी काफी नुकसान पहुंच रहा है। किसान मजबूर होकर पेड़ों की कटाई कर रहे हैं, अगर इसी तरह चलता रहा, तो यह पर्यावरण के लिए बहुत ही घातक सिद्ध होगा।
गांव मलूपुर के किसान यीशु चौधरी ने बताया कि विगत दो वर्षों से आवारा गोवंश की समस्या काफी बढ़ गई है, जो फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं। किसानों ने इससे निजात पाने के लिए खेतों के चारों ओर कटीले तारों की बाड़ लगा दी है, जो लकड़ियों के सहारे लगी है, इसके लिए किसानों को बड़े स्तर पर मजबूरी में अपनी छाया के लिए लगाए हुए पेड़ों को ही काटना पड़ रहा है।
किसान भोलाराम ने बताया कि हम जानते हैं कि पेड़ों के काटने से पर्यावरण की स्थिति बिगड़ेगी, लेकिन किसान क्या करें मजबूरी है। सरकार और प्रशासन आवारा पशुओं के लिए कोई ठोस इंतजाम करने में नाकाम रहा है। हमें रात-रात भर जगकर खेतों की रखवाली करनी पड़ रही है, क्योंकि भूखे आवारा पशु खेतों में घुस जाते हैं और काफी नुकसान करते हैं ऐसे में फसल ही ना बचे, तो हमारा जीवन यापन कैसे होगा।