150 पुरुषों से सम्बंध बनाने वाले ने प्रेमानंद महराज से किया था सवाल
प्रेमानंद महाराज जी, अपनी जिंदगी से अब मैं बहुत दुखी हूं, मुझे क्या करना चाहिए?
धर्म-कर्म डेस्क
वृंदावन के प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु प्रेमानंद महाराज ने हाल ही में समलैंगिकता जैसे संवेदनशील विषय पर अपने विचार साझा किए, जो समाज में जागरूकता और करुणा लाने के लिए सराहे जा रहे हैं। उनका यह संदेश सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है, जिसमें वे समलैंगिक संबंधों पर खुलकर बात करते नजर आ रहे हैं। दरअसल, एक सत्संग के दौरान, एक युवक ने प्रेमानंद महाराज से सवाल किया, ‘मुझे लड़कियों के बजाय लड़कों की तरफ आकर्षण महसूस होता है। अब तक 150 से अधिक पुरुषों से संबंध बना चुका हूं, और अब मैं बहुत दुखी हूं। मुझे क्या करना चाहिए?’
प्रेमानंद महाराज ने इस सवाल का जवाब अपनी गहरी आध्यात्मिक समझ, प्रेमपूर्ण अंदाज, और शास्त्रीय दृष्टिकोण से दिया। उनका जवाब न केवल उस व्यक्ति के लिए, बल्कि उन सभी लोगों के लिए प्रेरणादायक है जो अपने जीवन में सुख, शांति और उद्देश्य की तलाश में हैं। प्रेमानंद महाराज ने सबसे पहले व्यक्ति को आश्वस्त किया कि इस सवाल में छिपाने या शर्मिंदगी महसूस करने की कोई आवश्यकता नहीं है। उन्होंने कहा कि जैसे हम अपने शारीरिक रोगों को डॉक्टर के सामने बिना संकोच बताते हैं, वैसे ही आध्यात्मिक और मानसिक समस्याओं को संत या गुरु के सामने खुलकर रखना चाहिए।
यह दृष्टिकोण उनके करुणामय स्वभाव को दर्शाता है, जो हर व्यक्ति को बिना भेदभाव के स्वीकार करता है। उन्होंने व्यक्ति से कहा, ‘मुझे लगता है कि तुम पर ईश्वर की विशेष कृपा है। तुम्हारा स्त्रियों के प्रति स्वाभाविक आकर्षण नहीं है, और पुरुषों के प्रति तुम्हारी आसक्ति को यदि तुम भगवान की भक्ति में परिवर्तित कर दो, तो तुम महान आध्यात्मिक पुरुष बन सकते हो।’
प्रेमानंद महाराज ने इस बात पर जोर दिया कि साधना और आत्म-नियंत्रण के बिना कोई भी व्यक्ति सच्चा सुख प्राप्त नहीं कर सकता। उन्होंने व्यक्ति से पूछा, ‘इतने संबंधों के बाद तुम्हें क्या मिला?’ व्यक्ति ने जवाब दिया कि उसे केवल चिंता, भय और दुख ही प्राप्त हुआ। इस पर महाराज ने कहा कि यह अनुभव स्वयं यह दर्शाता है कि इंद्रिय सुख क्षणभंगुर और खोखला है। उन्होंने सुझाव दिया कि व्यक्ति को भगवान का नाम जपना शुरू करना चाहिए और अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण करना चाहिए। यह नियंत्रण न केवल उसे दुखों से मुक्ति दिलाएगा, बल्कि उसे एक उत्तम मनुष्य बनने का मार्ग भी दिखाएगा।
प्रेमानंद महाराज ने शास्त्रों का हवाला देते हुए समझाया कि पुरुष और स्त्री का योग सृष्टि को आगे बढ़ाने के लिए है, न कि केवल मनोरंजन या भोग-विलास के लिए। उन्होंने व्यभिचार को एक निकृष्ट आदत बताया, जो न केवल व्यक्ति को, बल्कि समाज को भी नष्ट करती है। उन्होंने कहा, ‘काम भोग केवल सृष्टिक्रम को बनाए रखने के लिए है। यदि इसे केवल विलासिता और मनोरंजन के लिए उपयोग किया जाए, तो यह धर्म के विरुद्ध है।’ यह कथन उनके दृष्टिकोण को स्पष्ट करता है कि शारीरिक सुख जीवन का अंतिम लक्ष्य नहीं है। इसके बजाय, मनुष्य का उद्देश्य आत्म-उन्नति और ईश्वर से जुड़ना है।
महाराज ने व्यक्ति को यह भी समझाया कि पूर्वजन्म के संस्कारों के कारण कुछ लोगों में विशिष्ट प्रवृत्तियां हो सकती हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वे उन प्रवृत्तियों के गुलाम बन जाएं। उन्होंने ब्रह्मचर्य को एक शक्तिशाली मार्ग बताया, जो व्यक्ति को आत्म-नियंत्रण और पवित्रता की ओर ले जाता है। उन्होंने कहा, ‘मलद्वार में आसक्ति या ऐसी प्रवृत्तियों में लिप्त होकर जीवन बर्बाद करना धर्म नहीं है। यह घृणास्पद और आत्म-विनाशकारी है।’ उनका यह कथन कठोर लग सकता है, लेकिन इसका उद्देश्य व्यक्ति को जागृत करना और उसे उच्चतर जीवन की ओर प्रेरित करना था।
उन्होंने यह भी बताया कि इंद्रिय सुख की लालसा हर जीव में स्वाभाविक रूप से मौजूद है, लेकिन इसका दुरुपयोग समाज में अराजकता और दुख का कारण बनता है। उन्होंने उदाहरण दिया कि जेलों में बंद आधे से अधिक लोग व्यभिचार या अनैतिक कृत्यों के कारण वहां हैं। इसका समाधान केवल आध्यात्मिकता में निहित है। उन्होंने व्यक्ति को संयम का मार्ग अपनाने और भगवान के प्रति समर्पण करने की सलाह दी। उन्होंने कहा, ‘संयम से रहो, गंदा आचरण छोड़ दो। इससे तुम्हें अपने आप से घृणा नहीं होगी, बल्कि आत्म-सम्मान और शांति मिलेगी।’
प्रेमानंद महाराज ने यह भी जोड़ा कि लाखों लोग ऐसी प्रवृत्तियों से जूझते हैं, लेकिन जो संयम और भक्ति के मार्ग पर चलते हैं, वे इन पर विजय प्राप्त कर लेते हैं। उन्होंने व्यक्ति को प्रेरित करते हुए कहा कि वह भी इस चुनौती को पार कर सकता है। उन्होंने भक्ति, जप, और सत्संग को अपनाने की सलाह दी, क्योंकि ये आत्मा को शुद्ध करते हैं और मन को शांति प्रदान करते हैं।
अंत में, प्रेमानंद महाराज का यह मार्गदर्शन हमें यह सिखाता है कि जीवन की हर चुनौती, चाहे वह कितनी भी जटिल क्यों न हो, आध्यात्मिकता के माध्यम से हल की जा सकती है। उनका जवाब न केवल उस व्यक्ति के लिए, बल्कि सभी के लिए एक प्रेरणा है कि हमें अपने जीवन को संयम, भक्ति, और धर्म के मार्ग पर ले जाना चाहिए। यह हमें यह भी याद दिलाता है कि सच्चा सुख बाहरी भोगों में नहीं, बल्कि आत्मा की शांति और ईश्वर के साथ एकाकार होने में है।
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