Gonda News: हर व्यक्ति में कालिया नाग के रूप में मौजूद है अहंकार-पं. राधेश्याम शास्त्री

श्री राम जानकी धर्मशाला में जुगल किशोर अग्रवाल की स्मृति में आयोजित कथा का पांचवां दिन

जानकी शरण द्विवेदी

गोण्डा। भगवान श्रीकृष्ण की हर लीला, हर कर्म अपने आप में कोई न कोई संदेश का छुपाए हुए है। अगर आपने संदेश को समझ लिया, तो मान लीजिए कि श्रीकृष्ण लीला को जान लिया। ऐसी ही एक लीला कालिया मर्दन की भी थी। प्रत्येक व्यक्ति के अंदर कालिया नाग के रूप में अहंकार मौजूद है। वह निरंतर फुंकार रहा है। ईश्वर की कृपा से जब उसका विनाश हो जाता है, जब मनुष्य का जीवन शुद्ध हो जाता है। उसे एक ध्येय दिखाई देने लगता है और उस ध्येय को प्राप्त करने की लगन जब जीव को लग जाती है तो उसके आचार, उच्चार और विचार में एकाग्रता आ जाती है। परिणाम स्वरूप हमारा जीवन एक दिव्यमय संगीत की भांति हो जाता है। यह बात वृन्दावन धाम के ख्यातिलब्ध कथाकार पंडित राधेश्याम शास्त्री ने स्व. जुगल किशोर अग्रवाल की पावन स्मृति में रानी बाजार स्थित श्रीराम जानकी मंदिर में चल रही सात दिवसीय भागवत कथा के पांचवें दिन श्रद्धालुओं को सम्बोधित करते हुए कही।

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श्रीकृष्ण बाल लीला और कालिया मर्दन की कथा सुनाते हुए व्यास पीठ ने कहा कि भगवान श्री कृष्ण और बलराम वृंदावन में गाय चराते हुए विविध प्रकार की लीला कर रहे हैं। एक दिन भगवान श्री कृष्ण अपने बाल सखाओ के साथ गाय चराते हुए यमुना के कालीदह पर जाते हैं। वहां एक ऐसा विशालकाय कुंड था जिसे कालिया कुंड के नाम से जाना जाता था जिसमें कालिया नाम का नागराज रहता था। उसके भयंकर विष के प्रभाव से सारा कुंड का जल विषैला रहता था। यहां तक कि इस कुंड के ऊपर से गुजरने वाले पक्षी भी उसके विष के प्रभाव से मृत्यु को प्राप्त हो जाते थे। इसके आसपास एक कदम के वृक्ष के अलावा कोई वृक्ष भी था। यह वृक्ष भी इसलिए खड़ा था क्योंकि एक बार भगवान गरुड़ उस कदम के वृक्ष पर बैठकर अमृत पान कर रहे थे। तो उसमें से एक बूंद वहां गिर गई थी। जब भगवान श्री कृष्ण अपनी गायों को जल पान कराने के लिए इस कुंड पर आए, तो सब के सब ग्वाल बाल और गाएं मूर्च्छित हो गईं। इसके बाद ने काली दह को कालिया नाग से खाली कराने को सोंचा। एक दिन भगवान श्री कृष्ण बाल सखाओं के साथ काली दह के पास आकर गेंद खेल खेलने लगते हैं। उस दिन भगवान बलदेव जी गाय चराने नहीं आए थे। भगवान श्री कृष्ण के हाथ से गेंद काली दह में चली जाती है। तब ग्वाल बाल कहने लगे कि कन्हैया हमारी गेंद इस कुंड में चली गई है। इसे कौन निकालेगा। इसके बाद कन्हैया उसी कदम के पेड़ पर चढ़ जाते हैं और अपनी कमर में अपने दुपट्टा बांधकर कुंड में छलांग लगा देते हैं। शोरगुल सुनकर कालिया नाग जाग जाता है। उसने देखा कि कोई श्याम सलोना बालक मेरे इस कुंड में आया है। वह अपने सभी फणों को फैलाकर श्री कृष्ण पर प्रहार करने के लिए टूट पड़ता है। भगवान श्रीकृष्ण भी पैंतरा बदल कर सौ फणां वाले कालिया नाग से लड़ने लगते हैं।

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पंडित राधेश्याम शास्त्री ने कहा कि भगवान श्री कृष्ण को काली दह में कूंदा हुआ देखकर सारे गोप ग्वाल विलाप करने लगते हैं। जब भगवान श्रीकृष्ण ने देखा कि मेरे वियोग में सभी गोप ग्वाल सहित मेरी मैया, बाबा नंद व मेरे बाल सखा व्याकुल हो रहे हैं तब उन्होंने अपने शरीर को फुलाया। इससे कालिया नाग का शरीर टूटने लगा और भगवान ठाकुर बाबा उसके फणां पर नृत्य करने लगे। कालिया नाग मूर्च्छित होने लगा। तब नाग की पत्नियां हाथ जोड़कर भगवान श्री कृष्ण के सामने नत मस्तक होकर स्तुति करने लगीं। भगवन्! आप हमारे स्वामी को क्षमा करें। हम आपके शरणागत हैं। इसमें हमारे स्वामी का दोष नहीं है। क्योंकि यह विष नाग जाति में आपने ही तो उत्पन्न किया है। भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि हे नाग पत्नियों! आप मेरी शरण में हो। इसलिए मैं तुम्हें अभयदान प्रदान करता हूं। लेकिन अब तुम इस कुंड में नहीं रहोगे। इसलिए अपने स्वामी को लेकर अभी यहां से रमणक दीप को चले जाओ। कालिया नाग हाथ जोड़कर कहने लगा, भगवन! अगर मैं यहां से रमणक दीप को जाऊंगा तो वहां मुझे भगवान गरुड़ अपना काल का ग्रास बना जाएंगे। भगवान बोले, हे नागराज! अब तुम्हें इसकी चिंता नहीं करनी चाहिए क्योंकि तुम्हारे फणां पर मेरे चरण कमलों के चिन्ह बन गए हैं। उन्हें देखकर गरुड़ तुम्हें कुछ भी नहीं कहेंगे। और फिर भगवान गरुड़ को बुलाकर नागराज को विश्वास दिलाकर वापस भेज दिया।

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इससे पूर्व पंडित गोपाल कृष्ण शास्त्री ने कथा की शुरुआत करते हुए कहा कि पूतना का अर्थ है जिसकी आकृति सुंदर हो किन्तु कृति खराब हो। उन्होंने कहा कि योगी जो भी काम करते हैं, आंख मूंदकर करते हैं, जबकि भोगी आंख खोल करके करते हैं। इसलिए हमें बिना किसी भेदभाव के आंख बंद करके अपनी संस्कृति की रक्षा के लिए कार्य करना चाहिए। चाणक्य ने भी कहा था कि किसी देश को गुलाम बनाना हो, तो पहले उसकी संस्कृति को नष्ट कर दो। उन्होंने कहा कि जहां प्रेम है, वहां अनिष्ठ की भावना है। इसीलिए वहां सुख, समृद्धि एवं सम्पत्ति का वास होता है। भक्ति का फल भी हमें भगवत कृपा से ही मिलता है। जिन्हें अहंकार होता, उन्हें भगवान कभी नहीं मिल सकते। धन में शराब से भी ज्यादा नशा होता है। धन होने के बाद भी घमण्ड न होना गुरु की कृपा का प्रभाव है। उन्होंने कहा कि सोने की परीक्षा आग में, तलवार की परीक्षा मैदान में और विद्वानों की परीक्षा भागवत में होती है। आचरण से ही हमारा सब कुछ बनता बिगड़ता है। जैसा आचरण होगा, वैसा ही भाग होगा। कथा के आयोजक अनुपम अग्रवाल ने बताया कि रोजाना तीन बजे से इस कथा का दिशा टीवी, यू-ट्यूब, फेसबुक पेज पर भी सीधे प्रसारण भी होता है। इस मौके पर स्व. अग्रवाल की धर्मपत्नी श्रीमती सरोज अग्रवाल, उनकी पुत्रबधू रश्मि अग्रवाल, अनिल मित्तल, राजेन्द्र प्रसाद गाडिया, पूर्व चेयरमैन राजीव रस्तोगी, केके श्रीवास्तव एडवोकेट, राजा बाबू गुप्ता, डा. एचडी अग्रवाल, अतुल अग्रवाल, संदीप अग्रवाल, रेनू अग्रवाल, अंशू अग्रवाल, अर्पिता अग्रवाल, मुकेश अग्रवाल पिण्टू, संजय अग्रवाल, विक्रम जी, कृष्णा गोयल आदि उपस्थित रहे।

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