Gonda News: बीमारी को न तो छिपाएं और न ही घबराएं, सही और सम्पूर्ण इलाज कराएं

गर्भावस्था के दौरान टीबी हो जाए, तो बरतें खास सतर्कता : डॉ अमित त्रिपाठी

संवाददाता

गोण्डा। गर्भावस्था के दौरान गर्भवती महिला को कई तरह की बीमारियों की चपेट में आने का जोखिम बना रहता है, जिसका असर भ्रूण पर भी पड़ सकता है। ऐसे में अगर किसी गर्भवती को ट्यूबरकुलोसिस (टीबी) यानि तपेदिक रोग हो जाए, तो यह चिंता का विषय बन सकता है। इससे बचने के लिए टीबी से जुड़ी जानकारी का होना जरूरी है। यह कहना है डॉ जिला महिला चिकित्सालय में तैनात स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ अमित त्रिपाठी का। डॉ अमित का कहना है कि गर्भावस्था में ट्यूबरकुलोसिस की जांच करने के लिए कई तरह के जांच की सलाह दी जाती है, जिनकी मदद से टीबी से जुड़ी स्पष्ट जानकारी मिल सकती है। अगर इन जांचों के बाद गर्भवती महिला में टीबी का पता चल जाता है, तो समय रहते इलाज शुरू कर देना चाहिए।

यह होती हैं जांचें :

एसिड फास्ट बेसिलस टेस्ट : यह जांच टीबी के शुरूआती लक्षण दिखाई देने पर किया जाता है । इससे बलगम में मौजूद टीबी के बैक्टीरिया का पता चलता है।
ट्यूबरकुलिन स्किन टेस्ट : टीबी की जांच करने के लिए दो तरह के स्किन टेस्ट कर सकते हैं। पहला टाइन टेस्ट और दूसरा मैनटॉक्स टेस्ट है। इन दोनों टेस्ट को बलगम की जांच के बाद किया जा सकता है।
ब्लड टेस्ट : गर्भावस्था में टीबी के बारे में जानने के लिए रक्त की जांच कराने की भी सलाह दे सकते हैं।
जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ मलिक आलमगीर बताते हैं कि ट्यूबरकुलोसिस बीमारी माइको बैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस नामक बैक्टीरिया से होती है, जो आमतौर पर लंग्स यानि फेफड़ों को नुकसान पहुंचाता है। इस रोग का असर धीरे-धीरे शरीर के अन्य हिस्सों पर भी नजर आ सकता है। गर्भावस्था के दौरान टीबी होने पर इसका तुरंत इलाज करवाना चाहिए। ऐसा न करने से टीबी का असर गर्भवती के साथ ही होने वाले शिशु पर भी पड़ सकता है। डॉ अमित त्रिपाठी बताते हैं कि गर्भावस्था के दौरान टीबी होने पर इससे शिशु को भी नुकसान हो सकता है, जो जन्म के बाद शिशु में दिखाई दे सकता है। उन्होंने बताया कि जन्म के समय शिशु का वजन कम होना, टीबी के कारण शिशु का समय से पहले जन्म, शिशु को जन्म के समय टीबी इंफेक्शन से संक्रमित होना तथा जन्मजात लिवर और श्वसन की समस्या इसके मुख्य कारण हो सकते हैं। नवजात पर होने वाले प्रभाव के बारे में जानकारी देते हुए डा. त्रिपाठी ने बताया कि गर्भनाल से टीबी इंफेक्शन होना, हेपेटोसप्लेनोमेगाली यानी लिवर और स्प्लीन संबंधी समस्या, श्वसन से जुड़ी परेशानी होना, टीबी के कारण नवजात शिशु को बुखार होना, लिम्फैडेनोपैथी यानी लिम्फ नोड्स में सूजन, रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होना शामिल हैं। उन्होंने कहा कि दो हफ्ते से ज्यादा खांसी होना, रात में पसीना आना, वजन कम होना, प्रेगनेंसी में सीने में दर्द या सांस की तकलीफ, गर्भावस्था में बुखार आना, बहुत थकान या बेचैनी होना गर्भावस्था के दौरान टीबी होने के लक्षण शामिल हैं।

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