Gonda News:पूरे विश्व की सबसे बड़ी भाषा है हिंदी-डॉ सुनील

संवाददाता

गोण्डा। ‘पूर्वोत्तर भारत में साहित्य और लोकजीवन’ विषय पर राष्ट्रीय संगोष्ठी के ऑनलाइन आयोजन मे मुख्य अतिथि पद से बोलते हुए केंद्रीय हिंदी संस्थान अहमदाबाद के केंद्र निदेशक डॉ सुनील कुमार ने कहा कि पूर्वोत्तर भारत की साहित्यिक-सांस्कृतिक विरासत और लोकसम्पदा अपने मूल रूप में जीवित रहते हुए अनूठी है। वहां के आमजन हिंदी बोलना पढ़ना और समझना चाहते हैं, क्योंकि हिंदी सम्पर्क की भाषा है, रोजगार की भाषा है। उन्होंने कहा कि हिंदी भाषा भारत में कहीं भी अग्राह्य नहीं है। दुनिया के 177 देशों में हिंदी पढ़ाई जाती है। एक अरब से अधिक लोग हिंदी को समझ व बोल लेते हैं। इस दृष्टि से हिंदी विश्व की सबसे बड़ी भाषा है जबकि मातृभाषा के रूप में वह दूसरे स्थान पर है।
शिक्षाविद और साहित्यकार डॉ रघुनाथ पाण्डेय के संयोजन-संचालन में संपन्न राष्ट्रीय संगोष्ठी में विशिष्ट अतिथि के रुप में बोलते हुए केंद्रीय हिंदी निदेशालय के सहायक निदेशक डॉ दीपक कुमार पांडेय ने कहा कि पूर्वोत्तर भारत में हिंदी लोकप्रिय हो रही है। यहां के कुछ प्रदेशों में हिंदी संपर्क भाषा का स्थान ले रही है। कई साहित्यकार हिंदी मे अच्छा लिख रहे हैं और बहुत सारे हिन्दी सेवी इसके विस्तार में लगे हुए हैं। यहां भविष्य हिंदी का है। गुवाहाटी केन्द्र के निदेशक डॉ राजवीर सिंह ने इस राष्ट्रीय संगोष्ठी तथा हिंदी के लिए किए जा रहे प्रयासों के सफल होने के प्रति अपनी शुभकामना व्यक्त की। राजभाषा विभाग के पूर्व अधिकारी शांति कुमार स्याल ने कहा कि पूर्वोत्तर भारत की सांस्कृतिक संपदा महाभारत काल की घटनाओं और पात्रों से आबद्ध है। यहां के रहन-सहन और रीति रिवाज में भौतिकता का प्रवेश अभी नहीं हुआ है। अकादमी के सचिव डॉ अकेला भाई की अध्यक्षता और चेयरमैन डॉ विमल बजाज के संरक्षण में संपन्न संगोष्ठी में डॉ कोयल विश्वास, डॉ जोराम यालाम नाबाम, डॉ पार्वती गोसाई, मोर्जुम लोई, रश्मि किरण, उषा किरण, वंदना पांडेय, अंचल सक्सेना, शिल्पी वर्मा, अंकित पांडेय आदि ने पूर्वोत्तर भारत के साहित्य और लोक जीवन से संबंधित अपने शोधपत्र का वाचन किया। डॉ राम धीरज शुक्ला, डॉ पंडित बन्ने, डॉ प्रिया सक्सेना, डॉ मोहम्मद रियाज, डॉ वीरेंद्र सिंह, डॉ मनोहर भंडारे, डॉ मुरलीधर अच्युत, डॉ प्रणु शुक्ल, शिव शंकर बोहरा, मनास्मृता, तनुजा नेओग, मदालसा मणि, अरविंद कुमार, सुमि शर्मा, नीरज कुमारी, दीपाली सोढी, रजाक शाह सहित अनेक विद्वान प्रोफेसर और शोधार्थियों ने प्रतिभाग किया। हैदराबाद के संपादक डॉ प्रदीप कुमार ने समापन उद्बोधन में पूर्वोत्तर के राज्यों में अकादमी द्वारा हिंदी के विस्तार के लिए किए जा रहे प्रयासों की सराहना की और कहा कि देश में हर कोने मैं हिंदी को बोलने और समझने वाले लोग मिलते हैं। बस, जरूरत है कि हिंदी के लोग ही हिन्दी की उपेक्षा न करें। सह संयोजक डॉ दिलीप अवस्थी ने धन्यवाद ज्ञापित किया।

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