Gonda News:जीते कोरोना की जंग भस्त्रिका प्राणायाम के संग

जानकी शरण द्विवेदी

गोण्डा। वैश्विक महामारी कोरोना से सुरक्षित रहने के लिए और अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिये योगाचार्य सुधांशु द्विवेदी ने भस्त्रिका प्राणायाम के बारे में जानकारी दी। उन्होंने कहा जो लोग बहुत व्यस्त हैं। कम से कम समय में योग करना चाहते हैं। वे साधक 5 से 10 मिनट सुबह-शाम भस्त्रिका प्राणायाम करके ही अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा सकते हैं। योगाचार्य ने कहा पहले यह जानना और समझना जरुरी है कि भस्त्रिका प्राणायाम हमें कोरोना वायरस से कैसे बचा सकता है? दरअसल कोरोना का संक्रमण उन लोगों को जल्दी अपना शिकार बना सकता है, जिनकी रोग-प्रतिरोधक क्षमता बहुत कमजोर होती है। आम तौर पर होने वाले संक्रमण में भी अगर किसी व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है, तो वह जल्दी बीमार हो जाता है। प्राणायाम के जरिए रोग-प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत किया जा सकता है। यही वजह है कि भस्त्रिका प्राणायाम आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली तंत्र को मजबूत बनाने में अत्यंत मददगार है। योगाचार्य ने बताया कि भस्त्रिका प्राणायाम के जरिए आप कोरोना वायरस से संक्रमित होने से बचे रहेंगे। भस्त्रिका प्रणायाम को करने से शरीर की समस्त मृत कोशिकाओं का पुनर्जन्म होता है। आपकी श्वसन क्रिया हमेशा सक्रिय होती है। साथ ही साथ आपकी रोग-प्रतिरोधक क्षमता भी मजबूत होती है, जिससे आप कोरोना वायरस के संक्रमण से एवं उससे होने वाले दुष्प्रभावों से आसानी से निजात पा सकते हैं।

भस्त्रिका प्राणायाम करने की विधि :

सबसे पहले आप योग मैट बिछाकर सुखासन, सिद्धासन या पद्मासन में बैठ जाएं। अब इस बात को ध्यान रखें कि इस प्राणायाम को करते समय आपका गला, रीढ़ की हड्डी और सिर बिलकुल सीधा रहे। अब यह सुनिश्चित करते हुए कि इस अभ्यास को करते समय आपका मुंह बिलकुल भी न खुले, दोनों नाक के छिद्रों से लंबी गहरी सांस लें। सांस अंदर लेने की प्रक्रिया में आपके फेफड़े पूरी तरह से फूलने चाहिएं। इसके बाद अब आपको एक झटके में दोनों नाक के छिद्रों के माध्यम से भरी हुई सांस को छोड़ना होगा। सांस छोड़ने की गति इतनी तीव्र हो कि झटके के साथ फेफड़े सिकुड़ जाने चाहिए। सांस लेने से लेकर छोड़ने तक भस्त्रिका प्राणायाम का एक चक्र पूरा होता है। जितनी देर में हम श्वांस को लेते हैं। उतनी ही देर में श्वास को छोड़ते हैं। शुरुआत में इस प्रक्रिया को धीमे-धीमे करें और इस प्रक्रिया के करीब 10 से 12 चक्र पूरे करें। अभ्यस्त हो जाने के बाद और धीमे से शुरुआत करने के बाद आप इसके चक्रों को पूरा करने की गति अपनी क्षमता के आधार पर बढ़ा सकते हैं। वहीं अभ्यास की प्रक्रिया को समाप्त करने के समय आपको ध्यान रखना होगा कि धीरे-धीरे चक्र पूरा करने की गति कम करते हुए ही इस अभ्यास को विराम देना चाहिए। भस्त्रिका प्राणायाम योग के अभ्यास के दौरान मुख्य रूप से सांस लेने की प्रक्रिया पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। इसलिए, यह श्वसन में मुख्य भूमिका निभाने वाले अंग फेफड़ों को मजबूती प्रदान करने का भी काम करता है। यही कारण है कि विशेषज्ञ इसे अस्थमा/दमा जैसी श्वसन समस्या में भी लाभकारी मानते हैं। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि श्वसन संबंधित सभी समस्याओं में भस्त्रिका प्राणायाम लाभकारी साबित हो सकते है।

हृदय की गति में सुधार :

जैसा कि लेख में पहले ही बता चुके हैं कि भस्त्रिका प्राणायाम योग तंत्रिका तंत्र में सुधार कर बढ़े हुए ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने में मदद करता है। वहीं दूसरी ओर इस संबंध में किए गए शोध में इस बात का भी जिक्र मिलता है। यह बढ़ी हुई हृदय की गति को सुधारने में भी सहायक साबित हो सकता है। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि बढ़ी हुई हृदय गति को नियंत्रित करने में भी भस्त्रिका प्राणायाम के लाभ हासिल किए जा सकते हैं।

ब्लड प्रेशर को करे नियंत्रित :

एनसीबीआई की वेबसाइट पर प्रकाशित नेपाल मेडिकल कॉलेज द्वारा किए गए एक शोध में पाया गया कि अगर धीमी श्वास गति के साथ भस्त्रिका प्राणायाम योग प्रक्रिया का अभ्यास किया जाता है, तो इसका सीधा असर व्यक्ति के ब्लड प्रेशर पर दिखाई देता है। साथ ही शोध में इस बात की पुष्टि भी की गई कि इस योगाभ्यास से तंत्रिका तंत्र में सुधार के साथ बढ़े हुए रक्तचाप को नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है। योगाचार्य ने अंत में कहा, वैसे तो सभी प्राणायाम हमारे आंतरिक अंगों को सक्रिय करते हैं, जिनका अछा अभ्यास है, वो नियमित रूप से सभी प्राणायाम को नियमित रूप से अपने सामर्थ के अनुसार करें, क्योंकि इस वैश्विक महामारी मे हमे खुद को आंतरिक रूप से स्वस्थ रखना है। तभी इस वैश्विक महामारी पर हमसभी विजय पा सकते हैं। इसलिए आप सभी भस्त्रिका प्राणायाम के साथ-साथ कपालभाति प्राणायाम,अनुलोम विलोम प्राणायाम, उज्जयी प्राणायाम, भ्रामरी प्राणायाम, उद्गीथ प्राणायाम और प्रणव ध्यान आदि का अभ्यास भी अवश्य करें। जो बच्चे हैं, वे नियमित रूप से प्राणायाम के साथ-साथ एडवांस् आसनों का भी अभ्यास करें। जो युवा हैं। वे इन सभी प्राणायामो के साथ साथ सूर्य-नमस्कार का अभ्यास भी अवश्य करें। जो बुजुर्ग हैं, वे प्राणायाम के साथ-साथ सूक्ष्म-व्यायाम का नियमित अभ्यास करें और स्वयं को मानसिक और शारीरिक रूप से स्वयं को पूर्णतया स्वस्थ एवं निरोगी रखें।

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