Gonda News:कई तरह की होती है टीबी, ऐसे पहचानें और कराएं इलाज
अधिकतर मामलों में टीबी फेफड़ों को करती है प्रभावित : डॉ एके उपाध्याय
जानकी शरण द्विवेदी
गोण्डा। टीबी यानी ट्यूबरकुलोसिस एक जानलेवा रोग है। इसे लोग क्षय रोग या तपेदिक के नाम से भी जानते हैं। यह आमतौर पर माइक्रोबैक्टीरियम ट्यूबर कुलोसिस जीवाणु की वजह से होती है और मुख्य रूप से फेफड़ों को प्रभावित करती है। आम तौर पर लोग समझते हैं कि टीबी सिर्फ एक ही तरह की होती है, लेकिन ऐसा नहीं है। टीबी कई तरह की होती है, यह कहना है जिला क्षय रोग अस्पताल के चेस्ट फिजिशियन डॉ एके उपाध्याय का। डॉ उपाध्याय के अनुसार, टीबी को उसके फैलने के तरीकों और प्रभावित अंगों के आधार पर विभाजित किया जाता है। अधिकतर मामलों में टीबी फेफड़ों को प्रभावित करता है और इस स्थिति में टीबी को फुफ्फुसीय टीबी या प्लमोनरी टीबी कहा जाता है। प्लमोनरी टीबी से प्रभावित व्यक्ति को लगातार तीन सप्ताह या उससे अधिक समय तक खांसी बनी रहती है। इसके अलावा उसे खूनी खाँसी, कफ जमना, छाती में दर्द व सांस लेने में भी दिक्कत का सामना करना पड़ता है। वहीं अगर टीबी फेफड़े के बाहर होता है, तो उसे एक्स्ट्रापल्मोनरी टीबी कहा जाता है। इस प्रकार की टीबी में हड्डियां, किडनी और लिम्फ नोड आदि प्रभावित होते हैं। कुछ मामलों में व्यक्ति को प्लमोनरी टीबी के साथ−साथ एक्स्ट्रापल्मोनरी टीबी भी हो सकती है। यह स्थिति तब उत्पन्न होती है, जब संक्रमण फेफड़ों से बाहर फैल जाता है और शरीर के अन्य अंगों को प्रभावित करने लगता है। इस प्रकार व्यक्ति फेफड़ों के टीबी के साथ−साथ अन्य अंगों के टीबी से भी ग्रस्त हो जाता है। यह स्थिति बेहद भयावह होती है और इस स्थित में रोगी की जान बचा पाना काफी कठिन हो जाता है। इसके अलावा टीबी को एक्टिव व लेटेंट टीबी के रूप में भी विभाजित किया जाता है। लेटेंट टीबी वह होता है, जिसमें बैक्टीरिया आपके शरीर में तो होता है, लेकिन वह सक्रिय नहीं होता। जिसके कारण ना तो आपको उसके लक्षणों का अहसास होता है और ना ही वह बीमारी फैलती है। हालांकि टीबी के ब्लड व स्किन टेस्ट में आपको टीबी के बारे में पता चल जाता है। जिन लोगों का इम्युन सिस्टम कमजोर होता है, उनकी लेटेंट टीबी आगे चलकर एक्टिव टीबी में भी बदल सकती हैं। वहीं, एक्टिव टीबी में बैक्टीरिया शरीर में फैलते हैं और आपको उसके लक्षणों का भी पता चलता है। इस स्थिति में रोगी को तुरंत इलाज की जरूरत होती है। एक्टिव टीबी होने पर रोगी को बिना किसी कारण वजन कम होना, भूख में कमी, बुखार, थकान, रात में पसीना आना जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। अगर एक्टिव टीबी का सही तरह से इलाज ना करवाया जाए, तो इससे रोगी की जान जाने का भी खतरा बना रहता है। जिला कार्यक्रम समन्वयक विवेक सरन का कहना है कि अधिक से अधिक लोगों तक क्षय रोग उन्मूलन के तहत उपलब्ध स्वास्थ्य सुविधाओं को पहुंचाना ही सरकार की प्राथमिकता है। यदि किसी व्यक्ति को दो हफ्तों से ज्यादा की खांसी, खांसते समय खून का आना, सीने में दर्द, बुखार, वजन का कम होने की शिकायत हो, तो वह तत्काल अपने बलगम की जांच कराए। जनपद में क्षय रोगियों की जांच एवं उपचार पूर्णतया निःशुल्क उपलब्ध है।
डॉ उपाध्याय के अनुसार, टी.बी. के निदान हेतु यह जरूरी है कि जीवाणु का पता लगाने के लिए लगातार तीन दिन तक कफ की जाँच करवाई जाए। क्षय रोगी को कम से कम छः महीने तक दवा लगातार लेनी चाहिए। कभी-कभी दवा को एक साल तक भी लेना पड़ सकता है। यह आवश्यक है कि केवल डॉक्टर की सलाह पर ही दवा लेना बंद किया जाए। वे रोगी, जो पूरी इलाज नहीं करवाते अथवा दवा अनियमित लेते हैं, उनके लिए रोग लाइलाज हो सकता है और यह जानलेवा भी हो सकता है। अपनी रुचि के अनुसार रोगी किसी प्रकार का भोजन ले सकते हैं। क्षयरोगी को बीड़ी, सिगरेट, हुक्का, तम्बाकु, शराब अथवा किसी भी नशीली वस्तु से परहेज करना चाहिए।
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