Gonda : 88 किलो सिक्कों से तौले गए प्रोफेसर दीक्षित

सिसई रानीपुर के शताब्दी समारोह में ताजा की गईं पुरानी यादें

दो दिन तक चला सेमिनार, विभिन्न मुद्दों पर विद्वानों ने रखे अपने विचार

जानकी शरण द्विवेदी

गोंडा। सिसई रानीपुर गांव में शताब्दी आयोजन के अंतर्गत पूर्व प्रधानमंत्री पं. अटल बिहारी बाजपेयी की पावन स्मृति में ’अटल चबूतरा’ का लोकार्पण और मानस प्रेमी स्व. विश्वनाथ मिश्र की स्मृति में ’श्रीरामचरित मानस वाटिका’ का शिलान्यास कर शुभारंभ किया गया। इस अनूठी योजना के परिकल्पक इस गांव के निवासी प्रो. शैलेन्द्र नाथ मिश्र देवीपाटन मंडल मुख्यालय पर स्थित लाल बहादुर शास्त्री महाविद्यालय में हिंदी विभाग के अध्यक्ष और शोध केंद्र के निदेशक हैं। लोकार्पण के अवसर पर उन्होंने कहा कि यह अटल चबूतरा स्वस्थ लोकतांत्रिक प्रक्रिया एवं सुशासन का प्रतीक होगा। इसके साथ ही राष्ट्रध्वज, भारतीय संविधान के साथ समस्त राष्ट्रीय प्रतीकों को इस अटल चबूतरे पर स्थापित किया जाएगा। राष्ट्रीय प्रतीकों का यह अधिष्ठान अपने परिवेश सहित देश और समाज के सभी नागरिकों में राष्ट्रीय चेतना का प्रसार करेगा। उन्होंने जानकारी दी कि मानस वाटिका में रामायण और श्रीरामचरितमानस में वर्णित 182 पौधों-वृक्षों, 27 नक्षत्रों तथा नवग्रह वाटिका सहित पंचवटी के पौधों का रोपण कर एक अभिराम दर्शनीय वाटिका निर्मित की जाएगी, जो रामकथा के पर्यावरणीय पक्ष का जीवंत स्मारक होगी। सिसई रानीपुर के शताब्दी आयोजन में लाइसियम संस्था द्वारा लखनऊ विश्वविद्यालय लखनऊ के हिंदी विभाग में कृतकार्य आचार्य एवं अध्यक्ष प्रो. सूर्य प्रसाद दीक्षित को ’वैश्विक हिंदी के महानायक’ के रूप में समलंकृत करते हुए सिक्कोतोलन द्वारा अभिनंदन किया गया। 85 वर्षीय प्रोफेसर दीक्षित 88 किलो वजन के हैं। बताते चलें कि पचासी वर्षीय प्रो. सूर्य प्रसाद दीक्षित वाग्देवी माँ सरस्वती के वरद पुत्र हैं। उन्होंने छह दर्जन से अधिक पुस्तकों का लेखन और सहस्राधिक शोध पत्रों का लेखन किया है। ’खोज’ सहित कई शोध पत्रिकाओं के संपादन का सुदीर्घ अनुभव आपके पास है। सैकड़ों परियोजनाओं पर सफलतापूर्वक कार्य करते हुए आपने उसे संपन्न किया है। वर्तमान में पूरी दुनिया में उनके टक्कर का हिंदी विद्वान मिल पाना मुश्किल है। बीते दिनों फिजी में संपन्न हुए विश्व हिंदी सम्मेलन में उन्हें श्रेष्ठ विद्वान के रूप में सम्मानित किया गया है। इस अवसर पर प्रो. शैलेंद्र नाथ मिश्र के निवेदन एवं प्रस्ताव पर उन्होंने जीतेश पांडेय द्वारा तैयार संकलित सूची प्राप्त कर ’हिंदी एकीकृत परिभाषा कोश’ के संपादन का दायित्व भी स्वीकार किया।

सिसई रानीपुर में संपन्न हुए शताब्दी आयोजन में ’सिसई रानीपुर के सौ साल’ शीर्षक से एक स्मारिका भी लोकार्पित की गई। इस स्मारिका में स्वतंत्रता पूर्व गांव की सांस्कृतिक-राजनैतिक-सामाजिक परिस्थिति एवं स्वतंत्रता के उपरांत इस गांव की सामाजिक-राजनीतिक स्थिति प्रस्तुत की गई है। इस स्मारिका के संपादक एसएन शर्मा हैं। बभनान के निकट स्थित ऐतिहासिक स्थल सिसई रानीपुर का इतिहास बहुत गौरवशाली है। सौ साल पूर्व वर्ष 1922 में 30 और 31 मार्च को इस गाँव में कांग्रेस का एक अधिवेशन संपन्न हुआ था, जिसमें पं. जवाहरलाल नेहरु, मौलाना अबुल कलाम आजाद, पं. राम प्रसाद बिस्मिल, विचारानंद सरस्वती, छह वर्षीया इंदिरा गांधी, रघुपति सहाय फिराक गोरखपुरी सहित ढाई सौ स्वनामधन्य व्यक्तित्व शामिल हुए थे। ब्रिटिश राज की अनीति के विरुद्ध एकजुट इस अधिवेशन की मेजबानी सिसई रानीपुर गाँव के पं. दातादीन मिश्र ने की थी। स्वतन्त्रता प्राप्ति के उपरांत यूपी की पहली निर्वाचित विधानसभा में उतरौला दक्षिणी सीट से इसी गाँव के क्रांतिधर्मी परिवार के पं. अमृतनाथ मिश्र और इसी अनुक्रम में आगे चलकर देवेन्द्रनाथ मिश्र विधायक निर्वाचित हुए। यह गाँव 1922 में हुए इस ऐतिहासिक अधिवेशन का शताब्दी वर्ष मना रहा है। विमोचित स्मारिका में परिश्रमपूर्वक शोधकार्य करके एतत्संबंधित काफ़ी सामग्री संकलित की गई है। उम्मीद की जानी चाहिए कि यह स्मारिका गांव के इतिहास लेखन के लिए विद्वानों को प्रेरित करेगी। मिश्र बन्धुओं का यह परिवार कई मायने में विलक्षण है। इस अवसर पर विधि अधिकारी के पद से सेवानिवृत्त और कवि रूप में समादृत अवनींद्र नाथ मिश्र ’विनोद’, बहुआयामी प्रतिभा के धनी प्रो. शैलेन्द्र नाथ मिश्र, विनयानंद मिश्र ’अन्नू’ सहित परिवार और गाँव के सभी सदस्यों के अलावा गोंडा से काफी लोग उपस्थित रहे।
कार्यक्रम के प्रथम दिवस लाल बहादुर शास्त्री महाविद्यालय गोण्डा के शोध केंद्र, आईक्यूएसी और हिंदी विभाग और आचार्य नरेंद्र देव किसान स्ना. महाविद्यालय बभनान के हिंदी विभाग और आइक्यूएसी के संयुक्त तत्वावधान में एक दिवसीय क्रियात्मक शोध संगोष्ठी आयोजित की गई; जिसके दो अलग-अलग सत्रों का विषय था ’तुलसी जन्मभूमि विवाद : सर्वमान्य निर्णय के उपागम’ और ‘गांव का इतिहास लेखन : स्थिति, स्वरूप और संभावनाएँ।’ मुख्य अतिथि एवं वक्ता के रूप में हिंदी के प्रसिद्ध विद्वान गुरुमह प्रो. सूर्य प्रसाद दीक्षित ने तुलसीदास के जन्मभूमि संबंधी विवाद पर शोधपरक दृष्टि से विचार करते हुए बाह्य एवं अन्तःसाक्ष्य सहित सभी पक्षों को प्रस्तुत किया। ज्ञातव्य है कि इस विषय पर काफी पहले आचार्य प्रवर दीक्षित द्वारा लखनऊ विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के नेतृत्व में गोंडा, बांदा और एटा का स्थलीय सर्वेक्षण, निरीक्षण करते हुए तर्कसंगत निष्कर्ष तक पहुंचने का प्रयास किया गया था। एक निश्चित तिथि मुकर्रर कर विवादित तीनों स्थानों के प्रतिनिधि दस-दस विद्वानों को लखनऊ विश्वविद्यालय में आमंत्रित कर तीन न्यायमूर्तियों के समक्ष अपना पक्ष प्रस्तुत करने के लिए कहा था। परंतु पक्ष प्रस्तुति के क्रम में आए विद्वान सटीक साक्ष्य प्रस्तुत नहीं कर सके, परिणाम स्वरूप कोई नतीजा नहीं निकला और यह विवाद बना रहा। प्रोफेसर दीक्षित ने बीती सदी के अंतिम दशक में तुलसी जन्मभूमि संबंधी तर्कों, तथ्यों, सर्वेक्षणों, परिसंवादों के सार तत्त्व को समाहित करते हुए ’तुलसी जन्मभूमि’ शीर्षक से एक पुस्तक भी लिखी थी, जो इसके शोधक के लिए आधार पुस्तक के रूप में मान्य है। आचार्य नरेंद्र देव किसान महाविद्यालय बभनान के सुखधाम सभागार में आयोजित संगोष्ठी में विचार प्रस्तुत करते हुए आचार्य प्रवर दीक्षित ने कहा कि हमें निष्पक्ष होकर एक अनुसंधाता की तरह तुलसीदास की जन्मभूमि को तलाशने में जुटने की जरूरत है। इस अवसर पर दोनों महाविद्यालयों द्वारा आचार्य प्रवर दीक्षित जी का अभिनंदन भी किया गया। उद्घाटन सत्र में प्रसिद्ध कवि अवनींद्र नाथ मिश्र ’विनोद’ ने ऐसे विमर्शात्मक कार्यक्रम की महत्ता स्पष्ट की। विषय-प्रवर्तन करते हुए एलबीएस कॉलेज गोंडा के हिंदी विभागाध्यक्ष एवं शोध केंद्र के निदेशक प्रो. शैलेंद्र नाथ मिश्र ने क्रियात्मक शोध संगोष्ठी के उद्देश्य, संकल्पना और महत्त्व को रेखांकित किया। इस अवसर पर उन्होंने घोषणा की कि तुलसी जन्मभूमि के संबंध में विद्वानों के विचार-विमर्श और शोध संबंधी आलोड़न-विलोड़न के उपरांत इसके निर्णय हेतु माननीय उच्च न्यायालय के समक्ष जनहित याचिका दायर की जाएगी और सर्वमान्य निर्णय तक पहुंचने का संवैधानिक प्रयत्न किया जाएगा। इस मौके पर प्रोफेसर शैलेंद्र नाथ मिश्र द्वारा आचार्य नरेंद्र देव किसान पीजी कॉलेज के प्राचार्य प्रोफेसर धर्मेंद्र कुमार शुक्ल को भारत के संविधान की मूल सचित्र हस्तलिखित प्रति भेंट की गई और लोकतंत्र के उस महान आधार ग्रंथ को महाविद्यालय में पीठ बनाकर प्रदर्शित करने की अपील की। एएनडी किसान कॉलेज बभनान के प्राचार्य प्रो. धर्मेंद्र कुमार शुक्ल ने आगंतुक अभ्यागतों, अतिथियों समेत समस्त शोधार्थियों, विद्यार्थियों और प्राध्यापकों का स्वागत किया। इस अवसर पर बहराइच की डॉ. लतिका सिंह की पुस्तक ’समकालीन हिंदी कहानी : यथार्थ के अभिनव आयाम’ और उमाशंकर शुक्ल के ग़ज़ल संग्रह ’काजल काजल हुआ शहर’ का विमोचन किया गया। डॉ. राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय महाविद्यालय शिक्षक संघ के महामंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने समस्त प्राध्यापकों, शोधार्थियों, अतिथियों, अभ्यागतों के प्रति आभार व्यक्त किया। एलबीएस कॉलेज गोंडा के प्रभारी प्राचार्य प्रो. दीनानाथ तिवारी ने शोध संगोष्ठी के आयोजन की भूरि-भूरि प्रशंसा की। उद्घाटन सत्र का संचालन क्रियात्मक शोध संगोष्ठी के आयोजन सचिव प्रो. जयशंकर तिवारी, हिंदी विभाग, एलबीएस कॉलेज गोंडा ने किया।

’गांव का इतिहास लेखनः स्थिति स्वरूप एवं संभावनाएं’ विषयक संगोष्ठी की अध्यक्षता मुख्य अतिथि एवं वक्ता वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सूर्यपाल सिंह ने की। इस सत्र में एलबीएस कॉलेज गोंडा के अंग्रेजी विभागाध्यक्ष डॉ. वीसीएचएनके श्रीनिवास राव, भूगोल विभाग के सेवानिवृत्त प्राध्यापक डॉ मिथिलेश मिश्र, एएनडी किसान कॉलेज बभनान के समाजशास्त्र प्राध्यापक डॉ. आलोक त्रिपाठी, शोधार्थी अनुपमा सहित कई विशेषज्ञों ने अपने शोध पत्र का वाचन किया। डॉ. सुशील कुमार शुक्ल, सेवानिवृत्त प्राध्यापक, प्राचीन इतिहास विभाग ने ऑनलाइन माध्यम से गांव के इतिहास लेखन की महत्ता पर प्रकाश डाला। अध्यक्षीय उद्बोधन में विद्वान लेखक डॉ. सूर्यपाल सिंह ने कहा कि भारत की आत्मा गांवों में बसती है। हमें शहरों से गांव की ओर लौटना होगा। अगर गांव में अशिक्षित, अशक्त, ज्ञानहीन, तेजहीन लोग रहेंगे तो गांव का विकास कैसे होगा? इस मौके पर उन्होंने यह भी कहा कि दुनिया भर में फैले हुए भारतवंशी अपने मूल की ओर लौटते हैं, तब उन्हें संतोष, शांति और बहुत खुशी मिलती है। उन्होंने यह भी कहा कि इतिहास को केवल राजा-रानी की कहानी नहीं होना चाहिए। उसमें आम जनता का इतिहास होना चाहिए और यह तभी संभव है जब गांव का इतिहास कायदे से लिखा जाए। संगोष्ठी के संयोजक डॉ. सत्य प्रकाश शुक्ल, प्रभारी, हिंदी विभाग, बभनान डिग्री कॉलेज ने सब के प्रति आभार ज्ञापित किया। समापन सत्र का संचालन डॉ. प्रदीप पांडेय बी.एड. विभाग, डिग्री कॉलेज बभनान ने किया।
इस अवसर पर लाल बहादुर शास्त्री महाविद्यालय गोण्डा से प्रो. संजय कुमार पांडेय, गणित विभाग, प्रो. मंशाराम वर्मा, संस्कृत विभाग, डॉ. पुष्यमित्र मिश्र, रसायन विज्ञान विभाग, मनीष शर्मा, गणित विभाग, संतोष श्रीवास्तव, भौतिक विज्ञान विभाग, डॉ. वंदना भारतीय, अंग्रेजी विभाग, डॉ. रवि कांत ओझा, डॉ. मनोज मिश्र, डॉ. डी. एन. पांडेय, अंकित मौर्य, शोभित मौर्य सहित तीन दर्जन प्राध्यापक शामिल हुए। इसके अतिरिक्त बहराइच से नीरज पांडेय, बेलसर गोण्डा से डॉ. सर्वजीत मिश्र, पयागपुर से राजेश चौबे, उच्च न्यायालय से अधिवक्ता गणेश नाथ मिश्र, गोण्डा जनपद न्यायालय से अधिवक्ता राजेश मोकलपुरी, सुरेंद्र मिश्र, मौखिक इतिहास के विशेषज्ञ डॉ. ओंकार नाथ शुक्ल, डॉ. विष्णु शंकर तिवारी, लक्ष्मी नाथ पांडेय, चंद्र प्रकाश पांडेय सहित अनेक सुधीजन शोध संगोष्ठी में सम्मिलित हुए। आचार्य नरेंद्र देव किसान स्नातकोत्तर महाविद्यालय बभनान के प्राध्यापक डॉ अखिलेंद्र कुमार शुक्ल, डॉ. दिनेश कुमार, डॉ. नमित सिंह, डॉ. आलोक, डॉ. विपिन शुक्ल, डॉ. श्रवण शुक्ल सहित दर्जनों प्राध्यापक एवं शोधार्थियों तथा पीजी के विद्यार्थियों ने कार्यक्रम में सहभाग किया। एलबीएस कॉलेज गोंडा का शोध केंद्र, आइक्यूएसी और हिंदी विभाग दोनों महाविद्यालयों की प्रबंध समितियों एवं प्राचार्यों सहित सभी गणमान्य अतिथियों, आचार्यों, शोधार्थियों एवं शिक्षार्थियों के साथ आयोजन समिति के सभी सम्मान्य शिक्षक साथियों के प्रति हार्दिक आभार व्यक्त करता है।

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