75 जनपदों में लगाई जाएगी ‘न्यूमोकोकल वैक्सीन’
लखनऊ। कोरोना संक्रमण की चेन तोड़ने को लगातार कदम उठा रही सरकार नॉन कोविड केयर पर भी ध्यान दे रही है। खासतौर से बच्चों के नियमित टीकाकरण की व्यवस्था सुचारू रखने पर सरकार का जोर है, जिससे उन्हें गम्भीर बीमारियों से बचाया जा सके।
इसी कड़ी में बच्चों को निमोनिया से बचाने के लिए अब न्यूमोकोकल कॉन्जुगेट वैक्सीन (पीसीवी) का पूरे प्रदेश में इस्तेमाल होगा। यूं तो इसके टीकाकरण की शुरुआत वर्ष 2017 में हुई थी। लेकिन तब इसे कुछ जिलों में ही शुरू किया गया था। अब प्रदेश के सभी 75 जनपदों में बच्चों को नियमित टीकाकरण के तहत निमोनिया के वैक्सीन को भी शामिल किया गया है। एक वर्ष से कम आयु के बच्चों को यह टीका लगेगा और इसकी तीन डोज जरूरी है।
राज्य के अपर मुख्य सचिव चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अमित मोहन प्रसाद के मुताबिक न्यूमोकोकल वैक्सीन प्रदेश के सभी जनपदों में सरकारी अस्पतालों में नि:शुल्क उपलब्ध है। इसलिए नियमित टीकाकरण के दौरान लोग अपने बच्चों को इसे जरूर लगवाएं। उन्होंने बताया कि यह वैक्सीन मासूम बच्चों को निमोनिया से बचाव में सहायक है।
न्यूमोकोकल रोग में फेफड़ों में संक्रमण होता है, जिसे निमोनिया भी कहते हैं। यह मुख्य रूप से बैक्टीरिया स्ट्रेपटोकॉकल न्युमोनी के कारण होता है। इसके साथ निमोनिया दवाओं और अन्य बीमारियों के संक्रमण से भी हो सकता है। निमोनिया के कारण अपर फ्लू जैसे लक्षण महसूस होते हैं। यह लक्षण धीरे-धीरे या फिर तेजी से विकसित हो जाते हैं। इसका मुख्य लक्षण खांसी, कमजोरी और बच्चा थका हुआ महसूस करता है। बुखार के साथ पसीना और कंपकंपी होती है। सांस तेज चलती है या सांस लेने में कठिनाई होती है। इसके अलावा भूख भी नहीं लगती है। दुनिया भर के साथ ही भारत में भी इस रोग से शिशुओं की बड़ी संख्या में मौत होती है।
अब तक टीकाकरण में निमोनिया से बच्चों को बचाने के लिए कोई वैक्सीन नहीं थी। लेकिन अब, निमोनिया से शिशुओं की मौत पर रोक लगाने के लिए ही न्यूमोकोकल वैक्सीन बनी है। इसका टीकाकरण बच्चे के जन्म के 6वें, 10वें और 14वें सप्ताह में किया जाता है। उन्होंने बताया कि इसके साथ ही रोटावायरस की खुराक भी बच्चों को दी जा रही है। यह डायरिया से बचाव में सहायक होता है।
रोटा वायरस वह विषाणु है जिसकी वजह से आंतों का इनफेक्शन यानि गैस्ट्रोएंटेराइटिस होता है। इस इनफेक्शन से आंत की अंदरुनी परत को नुकसान पहुंचता है और इस वजह से शरीर भोजन से केवल थोड़े से या फिर कोई पोषक तत्व अवशोषित नहीं कर पाता। छोटे बच्चों को इसका खतरा सबसे अधिक होता है।
इसलिए टीकाकरण के तहत पोलियो से बचाव की तर्ज पर इसकी भी ओरल ड्राप पिलायी जाती है। बच्चे के जन्म के 6वें, 10वें और 14वें सप्ताह में इसको पिलाया जाता है। उन्होंने बताया कि पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में डायरिया मौत का बड़ा कारण होता है। इसलिए जरूरी है कि छोटे बच्चे को रोटावायरस वैक्सीन जरूर लगवाएं।