जिला कारागार में विधिक साक्षरता शिविर का आयोजन

प्रदीप पांडेय

गोंडा।
उप्र राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण लखनऊ एवं जनपद न्यायाधीश ब्रजेन्द्र मणि त्रिपाठी के निर्देशानुसार जिला कारागार में विधिक साक्षरता शिविर का आयोजन नितिन श्रीवास्तव, अपर जिला जज/एफटीसी-द्वितीय/सचिव जिला विधिक सेवा प्राधिकरण की अध्यक्षता में किया गया। इस शिविर में सचिव द्वारा ‘विचाराधीन बन्दियों के शिकायतों के निराकरण‘ के बावत जानकारी देते हुए बताया गया कि जेल में निरूद्ध विचाराधीन बन्दियों के अधिकारों की बात प्रत्येक स्तर पर होती रही है। सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्तियों ने अपने कई निर्णयों में सजायाफ्ता और विचाराधीन कैदियों के अधिकारों के बारे में उल्लेख किया है। विचाराधीन कैदी या फिर सजायाफ्ता कैदी के अधिकार जेल में भी बने रहते हैं और कानून के हिसाब से ही उनके अधिकारों पर अंकुश लगाया जा सकता है। आपराधिक विधि के अन्तर्गत किसी भी व्यक्ति को तब तक दोषी नही माना जा सकता, जब तक कि न्यायालय आरोपी को दोषी नही मानता। जब भी किसी व्यक्ति के विरूद्ध कोई आरोप लगाया जाता है तो वह मात्र आरोपी होता है। ऐसे में उसे यह संवैधानिक अधिकार है कि उसे अपने बचाव का मौका मिले। इस सन्दर्भ में संविधान के अनुच्छेद-22 में मूल अधिकार है कि प्रत्येक आरोपी को बचाव का मौका दिया जाए। इसके तहत अदालत का कर्तव्य है कि जब भी कोई आरोपी अदालत में पेश हो तो वह उससे पूछे कि क्या उसे वकील चाहिए? वकील न होने पर अदालत आरोपी को सरकारी खर्चे से वकील मुहैया कराती है। विधिक साक्षरता शिविर में सचिव द्वारा निःशुल्क विधिक सहायता के सन्दर्भ में सांविधानिक उपबन्ध, दण्ड प्रक्रिया संहिता में वर्णित उपबन्ध और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिये गये अद्यतन निर्णयों पर भी विस्तृत रूप से जानकारी दिया गया। इस अवसर पर जिला कारागार के डिप्टी जेलर शैलेन्द्र त्रिपाठी सहित अन्य कर्मचारीगण उपस्थित रहे।

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