हिट ऐंड रन…पहले व्यवस्था दुरुस्त हो, फिर सख्ती
ऋतुपर्ण दवे
यकीनन कानून में सुधार वक्त का तकाजा है। रही बात दुर्घटना करने वालों की पतासाजी की तो आजकल जगह-जगह सीसीटीवी लगे हैं। टोल नाके भी हैं। सबके साथ समन्वय बिठाकर भी आरोपित तक पहुंचा जा सकता है। जब बड़े-बड़े हाइवे और राजमार्गों पर अरबों रुपये खर्च होते सकते हैं तो क्या कुछ हजार और खर्च कर हर किलोमीटर पर सीसीटीवी नहीं जरूरी नहीं हो सकते? यकीनन तीसरी आंख और तकनीक की निगरानी से ड्राइवरों पर नकेल के साथ सुरक्षा भी दी जा सकती है, जिसका सभी पर मनोवैज्ञानिक असर पड़ेगा। जब व्यवस्था दुरुस्त हो जाएगी तो सख्त और प्रैक्टिकल कानूनों से भला कोई क्यों ऐतराज करेगा?
सुकून की बात है कि ट्रांसपोर्टर्स की देशव्यापी हड़ताल खत्म हो गई। इससे भी अच्छी बात यह रही कि सरकार को जल्द समझ आ गया कि मामला हाथ से निकलता दिख रहा है। इधर देशभर के तमाम ट्रांसपोर्टर संगठनों को ‘हिट ऐंड रन’ मामले में सजा के नए प्रावधानों को लेकर न केवल काफी भ्रम था बल्कि खासकर ड्राइवरों की चिंता वाजिब थी। हो सकता है कि एकाएक सरकार के बैकफुट पर आने की वजह सामने आ रहे आम चुनाव हों? लेकिन कानून के सबसे ज्यादा असर से डरे ड्राइवरों का डर और भविष्य कि चिंता भी नकारी नहीं जा सकती है। कम तनख्वाह, गरीबी गुजारा और साधारण रहन-सहन के चलते भारत के समकक्ष माने जाने वाले देशों के मुकाबले हमारे प्राइवेट ड्राइवरों की हैसियत एक मजदूर से ज्यादा नहीं है।
भारत में हर साल करीब साढ़े चार लाख सड़क दुर्घटनाओं में डेढ़ लाख मौतें होती हैं। जबकि हिट ऐंड रन से 25-30 हजार लोगों की जान चली जाती है। सच है कि दुर्घटना जानबूझकर कोई नहीं करता। लेकिन दुर्घटना के बाद ड्राइवर फरार हो जाते हैं, क्योंकि यदि रुकेगा तो आसपास इकट्ठी हुई भीड़ बिना गलती जाने खुद ही फैसला करने लगती है। अनेकों उदाहरण सामने हैं कि सड़क दुर्घटनाओं के बाद पकड़े गए ड्राइवर किस बुरी तरह पिटते हैं, उनकी मौत तक हो जाती है। कई बार लदा-लदाया वाहन समेत ड्राइवर को जिंता तक जला दिया जाता है। ऐसे सार्वजनिक कृत्य करने वालों के खिलाफ अकसर मामला तक दर्ज नहीं होता। ड्राइवर जान से हाथ धो बैठता है तो उसका परिवार अनाथ होकर दर-दर भटकने को मजबूर।।
यह सही है कि भारतीय न्याय दंड सहिंता में पहले हिट-एंड-रन जैसी घटनाओं खातिर कोई सीधा कानून नहीं था। जिसमें आरोपित पर आईपीसी को धारा 304 ए में अधिकतम दो साल की जेल या जुर्माने का प्रावधान रहा है। लेकिन नई भारतीय न्याय संहिता यानी बीएनएस जो ब्रिटिश-कालीन भारतीय दंड संहिता की जगह बना, उसमें यदि ड्राइवर से गंभीर सड़क दुर्घटना होती है और वह पुलिस या किसी अधिकारी को जानकारी दिए बिना चला जाता है, तो उसे दंडित किया जा सकेगा। इसमें 10 साल तक की जेल और 7 लाख रुपये तक जुर्माने का प्रावधान है।
लेकिन बड़ा सवाल कि आरोपित ड्राइवर की सुरक्षा की जिम्मेदारी किसकी होगी, भले ही टक्कर सामने वाले की गलती से हुई हो? वहीं दुपहिया वाहनचालकों के मामले तो अकसर सामने या साइड से आकर पीछे के चक्कों से दुर्घटनाग्रस्त होने के न जाने कितने मामले हैं। निश्चित रूप से हरेक में मौके पर आरोपित बड़ा वाहन वाला ही कहलाता है।
भारत में इस कानून में सुधार की दरकार जरूरी है। लेकिन सभी पहलुओं पर विचार के साथ। दुनिया भर के कानूनों को भी देखना होगा जहां ड्राइवर बनना एक सम्मानजनक पेशा है।लेकिन एक्सीडेंट के कारण कोई घायल होता है और उसे हॉस्पिटल ले जाया जाता है तो दोषी ड्राइवर को दो साल की जेल और 22 हजार रुपये तक जुर्माना वसूला जाएगा। कनाडा में ड्राइवर को पांच साल की जेल लेकिन एक्सीडेंट से मौत पर आजीवन कैद का प्रावधान है। गलत जानकारी देने पर जुर्माना बढ़ सकता है।
अमेरिका में अलग-अलग राज्यों के अलग-अलग नियम हैं। ब्रिटेन में ड्राइवर के मौके पर रहना या भाग जाना भी सजा तय करता है। यहां अनिश्चित जुर्माने के साथ 6 माह की जेल का प्रावधान है। सबसे कम सड़क दुर्घटनाएं जापान में होती हैं। वर्ष 2020 में से केवल 3416 लोगों को ही अपनी गंवानी पड़ी। लेकिन अमेरिका, जापान, नार्वे, स्विटजरलैंड जैसे विकसित देशों की तुलना हम बहुत पीछे हैं। यहां हिंट ऐंड रन से मौतों का आंकड़ा अत्याधिक है जिसकी वजह लापरवाही, गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार के साथ सड़क नियमों का पालन नहीं करना है। इसमें सीट बेल्ट, हेलमेट नहीं पहनना तथा ओवर स्पीडिंग है जो कैमरों से पकड़ी जा सकती है तो नशे में गाड़ी चलाने वालों की जांच टोल नाकों पर ऑटोमेटिक मशीनें लगाकर की जा सकती है, जो अगले पुलिस टीम, चौकी या उड़नदस्ते को संदेश भेज दे।
(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)