सीएसए में मानकों के विपरीत अपनों के बीच भरे गये पद

कानपुर (हि.स.)। उत्तर प्रदेश के प्रमुख कृषि विश्वविद्यालय चन्द्रशेखर आजाद कृषि प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (सीएसए) में मानकों के विपरीत पदों पर भर्तियां हुईं। इन सभी पदों पर अपने लोगों को स्थापित किया गया और प्रति माह लाखों रुपये की चपत शासन को लगायी जा रही है। कृषि शिक्षा मंत्री और वित्त मंत्री ने पत्राचार कर इन पदों पर हुई भर्तियों को लेकर पत्राचार कर जवाब मांगा, पर वर्तमान कुलपति भी पूर्व कुलपति की भांति कार्य को आगे ही बढ़ा रहे हैं। 
चन्द्रशेखर आजाद कृषि प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कानपुर के पूर्व कुलपति शमशाद अहमद के कार्यकाल में विश्वविद्यालय में बिना मानक के सहायक प्राध्यापक, केवीके और केजीके पदों पर भर्तियां अपनों के बीच की गयी थी। इन सभी पदों पर चयनित लोगों को वेतन भी दिया जा रहा है। इन भर्तियों को लेकर तत्कालीन अर्थ नियंत्रक धीरेन्द्र तिवारी ने शासन को पत्राचार किया था। तिवारी के पत्राचार को वित्त मंत्री सुरेश खन्ना और कृषि शिक्षा मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने संज्ञान में लिया और अपर सचिव कृषि शिक्षा देवेन्द्र चतुर्वेदी ने विश्वविद्यालय को पत्र लिखा। जिसमें साफ लिखा गया कि शोध सहायकों को बिना शासन की अनुमति के सहायक प्राध्यापक पदनाम तथा केवीके व केजीके के वैज्ञानिकों को हेडक्वाटर में लाकर पदनाम व वेतन क्यों और कैसे दिया जा रहा है। इसके बावजूद विश्वविद्यालय प्रशासन प्रतिमाह शासन को लाखों की चपत बराबर लगाया जा रहा है। तिवारी ने अपने पत्र में लिखा था कि शासन के रोक लगाने के बावजूद तत्कालीन कुलपति शमशाद अहमद ने गलत रास्तों में चलकर विश्वविद्यालय अधिकारियों से साठ-गांठ कर, स्पष्ट शासनादेश के बाद भी 1981 के बाद कई शोध सहायको को कार्यों पर अस्थाई तौर पर रखा। यही नहीं विश्वविद्यालय के अधिकारियों से गठजोड़ कर, तथ्यों को गुमराह कर कोर्ट से एजीपी 6000 प्राप्त कर  लिया। कोर्ट के आदेशनुसार इन को केवल एक बार ही एजीपी देय है इसके बाद ऑडिट आपत्ति के बाद भी 7000-8000-9000 कर दिया गया। गोलमाल तो यह रहा कि कुछ एजीपी 90000पहले और 8000 बाद में दिया गया। मामला यहीं नहीं रुका, पत्र के अनुसार सीएसए में 2001 केजीके खोले गए जिसके लिए विषय विज्ञान विशेषज्ञ तथा प्रोग्राम कॉर्डिनेटर भर्ती किए गए, जिनको बाद में बिना प्रबंध मंडल व शासन की मंजूरी के मुख्यालय में बुला शिक्षकों की भांति एजीपी व स्केल दिए गए और प्रोग्राम कॉर्डिनेटर को सह प्राध्यापक और केवीके पर चयनित विषय वस्तु विशेषज्ञ को सहायक प्राध्यापक के बराबर का स्केल दिया जाने लगा, जबकि केवीके के लिए वेतन और प्रोमोशन का नियम यूजीसी वेतमान देय नहीं है। इसी क्रम में आगे बात करें तो केवीके तथा शोध सहायकों को लेकर वर्तमान कुलपति का रवैया और भी भिन्न है। यह शोध सहायकों को पूर्व कुलपतियों के शिक्षक ना मानने के बावजूद भी सहायक प्राध्यापक पद नाम एवं केबीके कर्मियों को कैस के अंतर्गत लाभ देने पर तुले हुए हैं। वर्तमान में अधिष्ठाता के पद पर कार्यरत डॉ डीआर सिंह, पूर्व डैम डॉ मुनीश कुमार न्यायालय में हलफनामा देकर कह चुके हैं यह लोग (शोध सहायक) शिक्षक नहीं है और शासन भी शिक्षकों की स्पष्ट परिभाषा दे चुका है। वहीं कृषि मंत्री, अपर सचिव कृषि शिक्षा तथा कमिश्नर के पत्रों के बावजूद वर्तमान कुलपति उन पत्रों पर कोई कार्रवाई न कर अपने को सबके ऊपर मानते हुए अनियमित तरीके से कार्य जारी रखे हुए हैं, देखते हैं प्रशासन की आंखे कब खुलती हैं और शिक्षा के मंदिर में सही कार्य होना प्रारंभ होंगे। इस संबंध में कुलपति डा. डीआर सिंह से बातचीत करने का प्रयास किया गया पर संपर्क नहीं हो सका। 

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