‘सतुआन’: सूर्य पूरा करता है उत्तरायण परिक्रमा का आधा सफर
– सौर चक्र परिवर्तन का लोकपर्व है सतुआन, मेष राशि में प्रवेश करते हैं सूर्य
– पूर्वी उत्तर प्रदेश-बिहार में 14 अप्रैल को मनाया जायेगा सतुआन पर्व
– लोक संस्कृति में प्रकृति से जुड़ाव का संदेश देता है यह पर्व
गोरखपुर (हि.स.)। वैदिक ग्रंथों में वर्णित मेष संक्रांति पर्व को उत्तर भारत खासकार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में ‘सतुआन’ पर्व के रूप में मनाया जाता है। वैशाख महीने में मनाया जाने वाला यह पर्व 14 अप्रैल को है।
उत्तर भारत के मैदानी इलाकों में मनाये जाने वाले सतुआन पर्व को सामाजिक, अध्यात्मिक और भौगोलिक दृष्टि से भीषण ग्रीष्म ऋतु के आगमन का पर्व है। इस दिन सूर्यदेव राशि परिवर्तन कर मेष राशि में प्रवेश करते हैं। लोग अपने पूजा घर में मिट्टी या पीतल के घड़े में आम का पल्लो (पत्तियों का गुच्छा) रखकर घड़ा स्थापित कर पूजन अर्चन करने की तैयारी करते हैं। सत्तू, गुड़ और आम के टिकोरा से बनी चटनी को सत्तू के साथ प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं और प्रकृति के साथ खुद को जोड़ते हैं।
यह है महत्व
आचार्य पंडित सरोजकांत मिश्र बताते हैं कि इस पर्व में आठ घंटे तक पुण्यकाल होता है। मेष संक्रांति में चार घंटा पहले से चार घंटा बाद तक पितरों को तर्पण और पूजन-अर्चन का विधान है। यह वैशाख मास की प्रवृत्ति का दिन है। संक्रांति पर भगवान भाष्कर उत्तरायण की आधी परिक्रमा पूरा कर लेते हैं। दूसरे दिन यानी 15 अप्रैल को जूरी शीतला व्रत होता है। इसे बासी पर्व के नाम से भी जानते हैं। इस दिन बासी पानी को पेड़ पौधों में डालकर उन्हें तृप्त करने की व्यवस्था है। आम की चटनी और सत्तू को घोलकर पहले सूर्य देव को चढ़ाया जाता है और फिर उसे प्रसाद रूप में ग्रहण किया जाता है।
आचार्य सरोजकांत बताते हैं कि जब खेतों की मिट्टी सूखकर बिलकुल कड़ी हो जाती है और मनुष्य जब गर्मी से त्रस्त हो जाता है, तब ऐसे समय में सत्तू ही एक ऐसा खाद्य पदार्थ है, जो शीतलता देता है। हालांकि अब यह पर्व सिर्फ बड़े-बुजुर्गों की यादों में ही रह गया है। कुछ ही गाँवों या क्षेत्रों में इसे मनाया जा रहा है।
सुपर फ़ूड है सत्तू
आयुर्वेदाचार्य डा. प्रेमनारायण मिश्र बताते हैं कि चरक संहिता, अष्टांगहृदय संहिता, सुश्रुत संहिता के अलावा आयुर्वेद साहित्य में वर्णित ”सत्तू” एक सुपर फ़ूड है। यह मोट अनाज से तैयार होता है। यह भुने हुए जौ, मटर, चना, गेहूं जैसे मोटे अनाजों का मिश्रण है। वर्तमान में यह वर्ष मिलेट्स ईयर के रूप में मनाया जा रहा है। इसकी महत्ता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है।
यह है सलाह
आयुर्वेदाचार्य डा. प्रेमनारायण सलाह देते हुए कहते हैं कि सुपरफूड सत्तू सर्दियों के मौसम में भी हमारे आहार योजना में हमेशा बना रहना चाहिए। सर्दियों में सत्तू खाने का सबसे अच्छा तरीका पराठा है। यह शरीर को हाइड्रेट करता है। सुबह खाली पेट सत्तू पीने से शरीर को हाइड्रेट करने में मदद मिलती है। पानी की कमी को दूर करता है और शरीर में नमी जोड़े रखता है। 100 ग्राम सत्तू लगभग 20 ग्राम शाकाहारी प्रोटीन मिलता है। मांसपेशियों की वृद्धि और मरम्मत करता है। वजन प्रबंधन में सहायता करता है।
सत्तू उपयोग से ये बचें
डा. मिश्र का कहना है कि अधिक मात्रा में सत्तू का उपयोग हानिकारक भी हो सकता है। इसके साइड इफेक्ट्स भी हैं। गैस और ब्लोटिंग हो सकती है। जिन्हें गैस की समस्या है, वे कम मात्रा में सत्तू का सेवन करें। जिन्हें पित्ताशय की थैली और गुर्दे की पथरी है, उन्हें चने के सत्तू से बचना चाहिए।
डा. आमोदकांत