ष को कब ष तथा कब ख पढ़ते हैं?
नालेज डेस्क
पहले इस वर्ण की ध्वनि के बारे में कुछ जानकारी, तथा इस ध्वनि के रूपान्तरित होकर प्राकृत भाषाओं से होते हिन्दी तथा अन्य आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं में आने की कुछ जानकारी। ’ष’ संस्कृत में एक विशिष्ट ध्वनि है, जिसका प्राकृत भाषाओं तथा उनसे उत्पन्न आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं में समुचित उच्चारण नहीं हो पाता है। संस्कृत भाषा के ’ष’ का उच्चारण मूर्धन्य है, अर्थात इसके उच्चारण के लिए जीभ को पीछे की ओर घुमा कर ट-वर्ग के व्यञ्जनों के समान किया जाता है। और यही इसका शुद्ध उच्चारण है। यह भाषा-विज्ञान की दृष्टि में एक “अघोष मूर्धन्य संघर्षी“ वर्ण है। संस्कृत भाषा की यह ध्वनि ’श’ और ’ख़’ (’ख’ का संघर्षी स्वरूप) के मध्य की है, अतः प्राकृत भाषाओं में इसका दोनों ही ओर ह््रास हुआ है। प्राकृत में बहुधा सभी संघर्षी ध्वनियों (श, ष तथा स) का स के रूप में सरलीकरण हुआ है, तथा अन्य सभी वर्णों के भारतीय आर्य भाषाओं में संघर्षी ध्वनियों के स्थान पर स्पर्श्य रूप में ही उच्चारण करने की परम्परा रही है जिससे ’ख़’ के रूप में हुआ सरलीकरण ’ख’ के रूप में ही किया जाता रहा है। किन्तु, साधारणतया हिन्दी भाषियों को ’ष’ की ध्वनि बोलने में कठिनाई होती है, अतः इसका उच्चारण ’श’ अथवा अनेक लोग ’स’ की भाँति करते हैं।
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