शारदीय नवरात्र : बारा देवी मंदिर में 12 अंकों का भी है महत्व

कानपुर (हि.स.)। नगर के दक्षिणी हिस्से जूही क्षेत्र में स्थित मां बारा देवी का मंदिर वैसे तो सम्पूर्ण महानगर की श्रद्धा का केंद्र स्थल है, वहीं नगर में दक्षिण क्षेत्रवासियों के लिए यह परमश्रद्धास्पद स्थान है। मां बारा देवी मंदिर के बारे में मान्यता है कि बर्रा गांव के लठूआ बाबा की बारह कन्याएं थीं। यह देवी सबसे बड़ी थीं। पिता के द्वारा इनका विवाह अर्रा गांव में तय कर दिया गया। बारात आई, बड़े ही धूमधाम के साथ द्वार चार एवं अगवानी संपन्न हुई। मंगल गीत गाए जा रहे थे। शादी के फेरे हो रहे थे। छह फेरे पड़ने के बाद पिता जी के अनुचित व्यवहार से कुपित होकर तप प्रभाव से पूरी बारात एवं जनात के साथ सभी बहनें पत्थर की हो गई। लगभग 400 वर्ष पूर्व कि यह घटना है।

इस स्थान पर एक नीम का पेड़ था। उस पेड़ के नीचे ही कालांतर में सात बहनें प्राप्त हुई। 5 बहनें बर्रा ग्राम में है। आगे चलकर देवीजी ने एक तेली परिवार को स्वप्न दिया। इसके बाद से ही उस भक्त ने यहां आकर मंदिर निर्माण प्रारम्भ करा दिया था। मां के इस मन्दिर में 12 अंकों का महत्व भी इसकी प्रसिद्धि की कहानी का परिचायक है। 
इसके गुम्बद की ऊंचाई 112 फिट व 12 द्वार के साथ 112 मेहराबों के बीच माता का दरबार बना है। 12 के नाम से यह प्रत्येक मान्यता मानी जाती है जोकि अत्यंत शुभ है। मां का विग्रह लगभग 3 फिट का है। मां का मुख दक्षिण की ओर है। मंदिर का मुख्य द्वार पूर्व में है मां बारा देवी के मंदिर से जुड़ा हुआ। एक संकटा माई का मंदिर है तो एक धर्मशाला इसी में एक दल्लान कोठरी है।
बाहर दक्षिण में बजरंगबली की मूर्ति है और उसके बगल में विश्वकर्मा मंदिर बना हुआ है। उसी में मां का गेट भी लगा हुआ है। उसी से लगा हुआ शंकर जी का मंदिर है। उत्तर में कुआं है। कुएं के बगल में पीपल का पेड़ है। पेड़ से लगा हुआ शंकर जी का मंदिर धर्मशाला के पीछे काली जी का मंदिर है। नवरात्र में माता जी में मायके अर्रा गांव से व बर्रा गांव से मां का चढ़ावा आता है। वहां भी मां के दरबार मे 112 गेट बने हुए है। शुक्रवार को नारियल की भेंट चढ़ाने आए माता भक्त की हर मुराद पूरी करती हैं तथा मंदिर के पीछे भाग में शक्ति पीठ में मन्नत की ईंट रखने की प्रथा चली आ रही है। वर्ष के दोनों नवरात्रों में मां के दरबार में अपार भीड़ होती है। अश्विन यानी क्वार नवरात्रि में यहां के जवारा निकलते हैं जो दशहरा तक चलते हैं।
यह जुलूस एशिया का सबसे बड़ा जलूस होता है। सप्तमी की रात्रि से भक्तजन दंडवत प्रणाम करते हुए आते हैं। बर्रा तथा आरा गांव से लोग पूजा हवन की सामग्री एवं श्रृंगार का सामान लेकर आते हैं। अष्टमी को सुबह 4 बजे पूजा करते हैं। बाद में दरवाजा खोला जाता है। अष्टमी रात्रि में 1 बजे तपेश्वरी मंदिर से पूजा लेकर यहां आते हैं। विधि विधान से पूजा करते हैं। नवमी को प्रातः 4 बजे मंदिर खुलता है। 

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