काफी समृद्ध है ‘शब्दसत्ता’ का अदम गोंडवी विशेषांक

डा. अजीत प्रियदर्शी

‘काजू भुने प्लेट में व्हिस्की गिलास में/उतरा है रामराज विधायक निवास में’ जैसे जिनके शेर जनता की ज़बान पर चढ़ गए, उन जनवादी ग़ज़लगो का नाम है अदम गोंडवी। आम आदमी की तकलीफ़ों को आवाज़ देने वाले और जनविरोधी व्यवस्था को अपनी ग़जलों, नज्मों, कविताओं में ताउम्र ललकारते रहने वाले अदम गोंडवी को याद करना सभी के लिए बहुत जरूरी है। गोमती नदी संरक्षण को लोक अभियान बनाकर अग्रसर समाजसेवी, साहित्यकार सुशील सीतापुरी द्वारा लखनऊ से निकलने वाली पत्रिका ‘शब्दसत्ता’ का अक्टूबर 2022 अंक ‘अदम गोंडवी विशेषांक’ के रूप में छपकर आया है। इस विशेषांक के अतिथि संपादक हैं वीरेन्द्र कुमार सिंह। विगत दिनों ‘कल के लिए’ और ‘सामर्थ्य’ आदि पत्रिकाओं ने अदम गोंडवी पर संग्रणीय अंक निकाले हैं। ‘शब्दसत्ता’ का यह विशेषांक उसी की अगली समृद्ध कड़ी है। जीवन सिंह, वशिष्ठ अनूप, कमलेश भट्ट कमल, प्रशांत कुमार, ईश मिश्र, हरेराम समीप, रमाशंकर सिंह, भूपेंद्र बिष्ट, जानकी शरण द्विवेदी और वीरेन्द्र कुमार सिंह के तलस्पर्शी और सारगर्भित आलेखों में अदम गोंडवी के ग़ज़लों के कथ्य,कहन एवं उनके तेवर को बखूबी उजागर किया गया है।
अजय कुमार, कौशल किशोर, अखिलेश मयंक, डा. डी.एम.मिश्र, जमुना प्रसाद उपाध्याय, दिलीप कुमार सिंह उर्फ दिलीप गोंडवी ने अपने संस्मरणों में अदम गोंडवी के व्यक्तित्व के ऐसे अनेक जाने-अनजाने पहलुओं-प्रसंगों को सामने रखा है, जिनसे उनकी संवेदनशीलता, गरीब-गुरबों के प्रति पक्षधरता तथा बेचौनी का पता चलता है। प्रसिद्ध पत्रकार प्रभात द्वारा वर्ष 2002 में ‘अप्रतिम’ पत्रिका के प्रवेशांक के लिए अदम गोंडवी से लिया गया साक्षात्कार भी यहां प्रकाशित किया गया है। इस आत्मीय बातचीत में अदम गोंडवी के जीवन संघर्ष और उनके कृति व्यक्तित्व के बारे में बहुत कुछ अच्छी जानकारी प्राप्त होती है। इस बातचीत में वे स्पष्ट रूप से कहते हैं, ’रोजी के लिए खेती और रचना के लिए अपने लोग और अपने इर्द-गिर्द का माहौल ही उनकी रचनाओं की खुराक है।’ अदम गोंडवी से डा. विजय बहादुर सिंह की लंबी बातचीत, जो ‘कल के लिए’ पत्रिका के अदम गोंडवी विशेषांक अंक 75-77 में प्रकाशित हुआ था, के एक अंश को यहाँ पुनः प्रकाशित किया गया है। उस बातचीत का यहाँ प्रकाशित अंश अदम के व्यक्तित्व-कृतित्व और उनकी रचना प्रक्रिया को समझने के लिए बहुत उपादेय है। इसमें अदम ने अपने व्यक्तित्व और कृतित्व पर पड़ने वाले प्रभावों की विस्तार से चर्चा की है। उन्होंने बताया है कि ग़ज़ल की तरह उनके रूझान का एक मात्र कारण अपने गांव के बगल के एक आश्रम के महंत रघुनाथ दास थे, जो उर्दू-फारसी के बहुत बडे़ विद्वान थे और वे खुद अच्छे ग़ज़लगो थे। उन्होंने बताया है कि ‘चमारों की गली’ कविता/नज्म, जो अपने गाँव की एक सच्ची घटना पर आधारित थी, उसमें उन्होंने गांव के ठाकुरों के खिलाफ लिखा, तो एक स्थानीय जागीरदार ने उनसे नाराज होकर कई बार परेशान किया और अनेक बार झूठे मुकदमों में फँसाने की कोशिश की। इस बातचीत में उन्होंने बताया, ‘हम जन संगठन में पहले आ गए और कविता हमने बाद में लिखना शुरू किया। तो इस तरह से संघर्ष से बिल्कुल जुड़े रहे।’
अदम गोंडवी के भतीजे दिलीप कुमार सिंह उर्फ दिलीप गोंडवी ने अदम गोंडवी के अंतिम दिनों के कठिन जीवनदशा, उनकी बीमारी, अर्थाभाव, आर्थिक मदद की छिटपुट पहल, देर से मिली सरकारी मदद, उनके निधन के बाद कर्ज में डूबा परिवार तथा रेहन पड़ी खेती को मुक्त कराने में प्रशासन की मदद आदि का यथार्थ वर्णन किया है। अर्थाभाव, उपेक्षा और अन्य तकलीफों का ही देखा-सुना, परखा वर्णन किया है हरिशंकर शाही ने अपने रिपोर्ताज में। हरिशंकर शाही ने यह रिपोर्ताज अदम गोंडवी के निधन (18 दिसंबर 2011) के एक साल बाद उनके गांव से लौट कर लिखा था। ‘द संडे इंडियन’ पत्रिका में प्रकाशित यह रिपोर्ताज यहां साभार प्रकाशित किया गया है। सामाजिक, प्रशासनिक उपेक्षा और बदहाल पारिवारिक हालात में उनके परिवार का एक सदस्य तकलीफ़ के साथ कहता है ‘अब न बने कोई जनकवि।’ इसे ही रिपोर्ताज का शीर्षक बनाया गया है। आम आदमी की गहरी बेचौनियों के उम्दा ग़ज़लगो अदम गोंडवी के व्यक्तित्व और कृतित्व से युवा पीढ़ी को परिचित कराने के महत् उद्देश्य से प्रकाशित यह विशेषांक अदम को कमोबेश जानने वालों के लिए भी पठनीय तथा संग्रहणीय है। लखनऊ से मुद्रित और प्रकाशित ‘शब्दसत्ता’ का यह अदम गोंडवी विशेषांक 150 पृष्ठों का है और इस बहुमूल्य विशेषांक की कीमत मात्र चालीस रुपये रखी गई है। इस विशेषांक को पढ़ने और अदम गोंडवी को गहराई से जानने-समझने के इच्छुक साहित्य प्रेमियों को ‘शब्दसत्ता’ त्रैमासिक पत्रिका के संपादक सुशील सीतापुरी से सम्पर्क करना चाहिए। सुशील जी से सम्पर्क करने और पत्रिका मँगाने के लिए उनके दो मोबाइल नंबर हैं: 9839160215, 8765295905
(लेखक डीएवी डिग्री कालेज लखनऊ में हिन्दी विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर हैं।)

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जानकी शरण द्विवेदी

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