वाराणसी : घर—घर पूजे गये नागदेवता,बाढ़ ने छिनी त्यौहार की रौनक

वाराणसी (हि.स.)। सावन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि पर शुक्रवार को नागपंचमी पर्व परम्परानुसार मनाया जा रहा है। बाढ़ के चलते पर्व में रौनक नहीं दिखी। बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में जहां लोगों ने बस परम्परा का निर्वहन किया। वहीं, शहर के अन्य हिस्सों में लोगों ने पूरे उत्साह के साथ नागदेवता का पूजन किया। पर्व पर प्रतीक रूप से फोटो के जरिये नागों की पूजा कर उन्हें पंचामृत, घृत, कमल, दूध, लावा अर्पित किया गया। पर्व पर शिवालयों में पूजन अर्चन के लिए महिलाएं पूजा की थाली लेकर पहुंचती रही।

महिलाओं ने भगवान शिव व उनके गले में लिपटे नागराज को बेल पत्र, धतूरा, फूल, हल्दी चावल, दूध आदि चढ़ाकर विधि विधान से पूजा अर्चना की। पूजन अर्चन के बाद घरों में पकवान बनाकर नागदेवता और अपने पूर्वजों को भी भोग लगाया गया। इसके बाद परिवार के सदस्यों ने घर में बने पकवान को हंसी खुशी माहौल में प्रसाद स्वरूप ग्रहण किया। पर्व पर ही कई घरों में परिजनों,पुत्र के कालसर्प दोष की शांति के लिए नाग देवता सहित राहु-केतु ग्रह की पूजा की गयी। अलसुबह शहर की गलियों में छोटे गुरु का, बड़े गुरु का, नाग लो भई नाग लो की हाक भी सुनाई दी। छोटे-छोटे बच्चे नाग देवता का चित्र बेचने के लिए गलियों मोहल्ले में घूमते रहे। लोगों ने इन बच्चों से नाग देवता की तस्वीर खरीद कर पूजा पाठ की। पर्व पर शहर और ग्रामीण अंचल में दोपहर में आयोजित मल्लयुद्ध, दंगल, महुवर आदि का प्रदर्शन भी हुआ।

नगर के प्रमुख अखाड़ों रामसिंह, गयासेठ, पंडाजी का अखाड़ा, अखाड़ा मानमंदिर, बबुआ पांडेय अखाड़ा, अखाड़ा बड़ा गणेश, अखाड़ा जग्गू सेठ, अखाड़ा रामकुंड, लालकुटी व्यायामशाला, कालीबाड़ी, अखाड़ा गैबीनाथ, अखाड़ा तकिया में परम्परा का निर्वहन किया गया। नागपंचमी पर ही परंपरानुसार जैतपुरा स्थित नागकूप पर होने वाला शास्त्रार्थ वर्चुअल आयोजित किया गया। महिलाओं ने दर्शन पूजन भी कूप पर जाकर किया। अलसुबह से महिलाएं पूजा का थाल लेकर कूप पर पहुंचती रही। कूप में दूध घी और नैवेद्वय अर्पित कर परिवार को काल सर्प दोष से मुक्ति, उतम स्वास्थ्य की कामना की। काशी में मान्यता है कि नागपंचमी पर्व पर नागकूप की पूजा करने से घर में साप नहीं आते । काशी को मुक्ति का मार्ग कहा जाता है। बहती गंगा की लहरों के बीच सर्प दोष से मुक्ति पाने के लिए लोग ताबे, सोने चांदी के बने सर्प की पूजा कर विधि विधान से गंगा में विर्सजित कर काल सर्प दोष से मुक्ति की गुहार लगाते हैं।

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