लोस चुनाव : कृष्ण नगरी मथुरा में कौन पहनेगा जीत का मुकुट

लखनऊ (हि.स.)। उत्तर प्रदेश की पश्चिमी सीमा यमुना किनारे बसे मथुरा संसदीय क्षेत्र की पहचान भगवान श्रीकृष्ण की जन्मस्थली से है। मथुरा सीट से जुड़ा अजीबोगरीब तथ्य यह है कि यहां ज्यादातर बार बाहरी प्रत्याशियों ने विजय पताका फहराई है। साल 2024 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की नजर यहां पर चुनावी जीत की हैट्रिक लगाने पर होगी। इस सीट पर दूसरे चरण में 26 अप्रैल को वोट डाले जाएंगे।

मथुरा लोकसभा सीट का इतिहास

आजादी के बाद पहला चुनाव साल 1952 में हुआ और इस सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी कृष्ण चन्द्र ने जीत हासिल की। 1957 में हुए दूसरे चुनाव में इस सीट पर निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत दर्ज की। निर्दलीय के पक्ष में चली उस आंधी में भारतीय जनसंघ के तत्कालीन नेता और बाद में देश के प्रधानमंत्री बनें अटल बिहारी वाजपेयी भी चुनाव हार गए थ।। साल 1962 से 1977 तक लगातार तीन बार कांग्रेस का कब्जा रहा। आपातकाल के बाद हुए चुनाव में कांग्रेस हारी और भारतीय लोकदल ने जीत हासिल की। साल 1991 में इस सीट पर पहली बार भाजपा को जीत मिली। इसके बाद 1996, 1998 और 1999 में भी भाजपा का ही इस सीट पर कब्जा रहा। 2004 में कांग्रेस और 2009 राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) यहां से जीते। 2014 में मोदी लहर में भाजपा प्रत्याशी हेमा मालिनी ने जीत दर्ज की। 2019 में हेमालिनी ने दूसरी बार यहां जीत का परचम लहराया।

2019 आम चुनाव के नतीजे

2019 के आम चुनाव में भाजपा प्रत्याशी हेमा मालिनी ने रालोद प्रत्याशी कुंवर नरेन्द्र सिंह को 2 लाख 93 हजार 471 वोटों के भारी अंतर से हराया था। हेमा मालिनी को कुल 671,293 (60.79 फीसदी) वोट मिले थे तो वहीं रालोद के नरेंद्र सिंह को 377, 822 (34.21 फीसदी) वोट मिले थे। कांग्रेस के महेश पाठक 28 हजार 084 (2.54 फीसदी) वोटों के साथ तीसरे नंबर पर रहे थे। 2014 के चुनाव में भाजपा ने 3 लाख से ज्यादा वोटों के अंतर से ये सीट जीती थी।

किस पार्टी ने किसको बनाया उम्मीदवार

भाजपा ने मथुरा संसदीय सीट से एक बार फिर हेमा मालिनी पर भरोसा जताया है। इंडिया गठबंधन में मथुरा लोकसभा सीट कांग्रेस के खाते में है। कांग्रेस ने मुकेश धनगर को प्रत्याशी बनाया है। वहीं बसपा ने सुरेश सिंह को मैदान में उतारा है।

मथुरा सीट का जातीय समीकरण

मथुरा लोकसभा उत्तर प्रदेश की सीट नंबर-17 है। इस संसदीय क्षेत्र में मतदाताओं की संख्या 19 लाख 26 हजार 710 है। कुल मतदाताओं में पुरुष मतदाताओं की संख्या 10 लाख 30 हजार 749, महिला मतदाताओं की संख्या 8 लाख 95 हजार 896 है और ट्रांसजेंडर के कुल 65 मतदाता शामिल हैं। जाट मतदाता करीब साढ़े तीन लाख हैं। दूसरे नंबर पर ब्राह्मण वोटर लगभग तीन लाख के आसपास हैं। यहां ठाकुर लगभग 3 लाख, जाटव करीब डेढ़ लाख, मुस्लिम करीब डेढ़ लाख, वैश्य करीब एक लाख, यादव 70 हजार वोटर हैं। बाकी वोटर अन्य में शामिल हैं।

विधानसभा सीटों का हाल

मथुरा लोकसभा सीट में कुल पांच विधानसभा सीटें आती हैं। ये सीटें मथुरा जिले की छाता, मांट, गोवर्धन, मथुरा और बलदेव (सुरक्षित) हैं। सभी सीटों पर भाजपा का कब्जा है।

दलों की जीत का गणित और चुनौतियां

मथुरा लोकसभा सीट पर जाट मतदाताओं का अच्छा खासा प्रभाव माना जाता है। क्षेत्र में जाट मतदाताओं का कितना प्रभाव है वो इस बात से साफ है कि अभी तक यहां से चुने गए 17 सांसदों में से 14 जाट समुदाय से थे और यही वजह थी, कि जब तमिलनाडु से संबंध रखने वाली एक्ट्रेस हेमा मालिनी को यहां से उतारा गया। तो जाट वोटरों को लुभाने के लिए उन्हें अपने पति धर्मेंद्र के जाट होनी की दलील देनी पड़ी थी। जाट बाहुल्य इस सीट पर मुस्लिम मतदाता भी जीत में अहम भूमिका निभाते है। बसपा का कैडर वोट है। इंडिया गठबंधन जाट, यादव ओर मुस्लिम वोटों के सहारे है।

धर्म रक्षा संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष सौरभ गौड़ के अनुसार, मथुरा में मुकाबला एकतरफा है। भाजपा इस बार यहां बड़े अंतर से जीत का रिकार्ड बनाने की दिशा में बढ़ रही है। हां, अगर कांग्रेस कोई मजबूत कैंडिडेट मैदान में उतारती तो भाजपा को चुनौती मिल सकती थी।

मथुरा से कौन कब बना सांसद

1952 कृष्ण चन्द्र (कांग्रेस)

1957 राजा महेन्द्र प्रताप सिंह (निर्दलीय)

1962 चौधरी दिगम्बर सिंह (कांग्रेस)

1967 गिरिराज शरण सिंह (निर्दलीय)

1971 चकलेश्वर सिंह (कांग्रेस)

1977 मनीराम बागड़ी (भारतीय लोकदल)

1980 चौधरी दिगम्बर सिंह (जनता पार्टी सेक्युलर)

1984 मानवेन्द्र सिंह (कांग्रेस)

1989 मानवेन्द्र सिंह (जनता दल)

1991 सच्चिदानन्द हरि साक्षी (भाजपा)

1996 तेजवीर सिंह (भाजपा)

1998 तेजवीर सिंह (भाजपा),

1999 तेजवरी सिंह (भाजपा)

2004 मानवेन्द्र सिंह (कांग्रेस)

2009 जयंत चौधरी (रालोद)

2014 हेमामालिनी (भाजपा)

2019 हेमामालिनी (भाजपा)

डॉ. आशीष वशिष्ठ/बृजनंदन

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