लीची की बागवानी से ‘शाही’ जीवन जी रहे पुलिस अधिकारी राजाशंकर
-सेवानिवृत्ति के बाद राजाशंकर ने गांव को बनाया ठिकाना
बलिया(हि.स.)। लीची और बिहार का मुजफ्फरपुर एक दूसरे के पर्याय जैसे हैं। लेकिन जिले के निरूपुर निवासी सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी ने इस मिथक को तोड़ने के लिए अपने गांव में बागवानी शुरू की है। उनके बगीचे में तैयार शाही लीची अब मुंबई, दिल्ली और नासिक जा रही है।
दोनों भाई आज भी करते हैं एक ही थाली में भोजन
निरूपुर के राजाशंकर तिवारी 2013 में आरपीएफ के असिस्टेंट कमांडेंट पद से रिटायर हुए। दो भाई हैं लेकिन दोनों भाइयों की कोई संतान नहीं थी, लिहाजा एक बच्चे को गोद लिया जो अब 21 वर्ष का हो चुका है। दोनों भाई आज भी एक ही थाली में भोजन करते हैं। आमतौर पर बड़े पद पर रहकर सेवानिवृत्ति के बाद लोग शहरों का रुख करते हैं, लेकिन राजाशंकर तिवारी ने गांव को ठिकाना बनाया।
रिटायरमेंट के पहले ही राजाशंकर तिवारी ने गांव में बागवानी की प्लानिंग कर ली थी। 2002 की चकबन्दी के बाद चक बड़ा हुआ तो गांव के दोपही मौजे में अक्टूबर 2005 में चार बीघे में शाही लीची के 275 पेड़ लगवाया। इसके साथ ही पांच बीघे में आम के दो सौ पेड़ लगाए। गांव के आसपास के मजदूरों को बागवानी की देखरेख करने की जिम्मेदारी दी। 2013 में रिटायर हुए तो पूरी तरह से गांव को ही ठिकाना बनाया। रिटायरमेंट के बाद मुजफ्फरपुर जाकर लीची अनुसंधान केन्द्र में लीची के बागवानी के गुर सीखे।
बिहार के व्यापारी ने लीची के बाग को लिया कांट्रेक्ट पर
उन्होंने अपने लीची और आम के बगीचे में गेस्टहाउस बनाया है। जहां रह कर देखभाल करते हैं। उनके बाग में फिलहाल लीची के 232 पेड़ तैयार हैं। जबकि आम के भी दो सौ पेड़ पूरी तरह से तैयार हैं। 211 से अधिक लीची के पेड़ों में फल लगने शुरू हुए। पिछले साल तक इतने बड़े बाग में तैयार लीची और आम लोकल मार्केट में ही बिकती थी। जिस कारण मुनाफा कम होता था। हालांकि, इस बार भी पुरवा हवा कम बहने से आठ टन ही लीची तैयार हुई है, मगर मार्केटिंग के नुस्खों ने उनकी शाही लीची को चर्चा के केन्द्र में ला दिया है। यही वजह है कि बिहार के मुजफ्फरपुर से आए व्यापारी ने उनके लीची के बाग को कांट्रेक्ट पर ले लिया है। पिछले सप्ताह चेन्नई में बने कार्टन में पैक होकर लीची की एक-एक खेप मुम्बई व दिल्ली भेजी जा चुकी है। बुधवार को ट्रेन से लीची की एक खेप महाराष्ट्र के नासिक भेजी जा रही है।
बलिया की लीची वैसे ही प्रसिद्ध होगी, जैसे सत्तू
राजाशंकर तिवारी के बगीचे में इस बार आम की फसल भी अच्छी है। लंगड़ा, दशहरी और चौसा नस्ल के आम जून माह में पक कर तैयार होंगे। राजाशंकर तिवारी की कोशिश है कि बलिया में तैयार लीची वैसे ही प्रसिद्ध होगी, जैसे यहां का सत्तू है।
बलिया की लीची दुबई भेजने की तैयारी
सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी राजाशंकर तिवारी ने मेहनत कर परम्परा से हटकर लीची के बाग तो तैयार कर लिए हैं, लेकिन प्रशासन और राजनीतिक स्तर पर उदासीनता से थोड़े परेशान भी हैं। उन्होंने कहा कि हमारे यहां बातें अधिक होती हैं, धरातल पर काम कम। इससे हमें निराशा होती है। कहा कि अभी मेरे पास निर्यात करने के लिए लाइसेंस नहीं है। जिलाधिकारी रवींद्र कुमार ने निर्यात के लिए उत्साहित किया है। दुबई में लीची के व्यापारियों से बात हुई है। जल्द लाइसेंस मिला तो बलिया की लीची देश से बाहर जाएगी। इससे लोकल मार्केट में भी प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी। उन्होंने कहा कि देश में लीची के औने-पौने दाम मिल रहे हैं, जबकि वर्तमान में दुबई के मार्केट में अच्छा रेट है।
नौकरी में रहते हुए बागवानी की ओर आकर्षित हुए
72 वर्षीय राजाशंकर तिवारी ज्यादातर आरपीएफ मुख्यालय में ही रहे। जहां बागवानी में मन रमने लगा। उन्होंने बताया कि मैंने कहीं पढ़ा था कि एक पेड़ अपने पूरे जीवन में नब्बे लाख का आउटपुट देता है। तभी से मेरे मन में पेड़ों के प्रति झुकाव बढ़ गया। बचपन में हम पेड़ों की डालियों पर खेला करते थे। जिससे पेड़ों से लगाव रहता था। आज पेड़ कम हैं। बच्चे पेड़ों से दूर हो गए हैं। बढ़ती आबादी में प्रकृति के शोषण की प्रवृत्ति मानसिकता है।
नीतू/राजेश