राजनीतिक दल भी सितारों की चमक के दीवाने

डॉ. प्रभात ओझा

यह तो अमिताभ बच्चन ही बता सकते हैं कि हेमवती नंदन बहुगुणा जैसी हस्ती को पराजित करने के बावजूद उन्हें राजनीति रास क्यों नहीं आयी। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए चुनाव में इलाहाबाद से सांसद निर्वाचित अमिताभ बच्चन ने बहुत जल्द लोकसभा की सदस्यता छोड़ दी थी। इसके विपरीत सुनील दत्त जैसा उदाहरण भी है, जो बॉलीवुड के साथ राजनीति में भी खूब चमके और केंद्र में मंत्री तक रहे।

यह परंपरा आज बाबुल सुप्रियो तक आ गयी है। आज न सिर्फ बाबुल सुप्रियो बल्कि भाजपा और पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस की ओर से कई फिल्मी कलाकार विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं। कई सांसदों और एक केंद्रीय मंत्री तक को विधानसभा चुनाव लड़वाने को ममता के लोग भाजपा के पास उम्मीदावारों की कमी बता रहे हैं। चुनावी रणनीतिकार जरूर इसे निर्वाचितों की संख्या बढ़ाने का हथियार कह सकते हैं। आखिर ममता ने भी तो कई फिल्मी सितारों की एक बड़ी टीम को चुनाव मैदान में उतारा है। सच यह है कि राजनीतिक दलों को अपने प्रतिद्वंद्वियों को पटखनी देने में ये चमकते सितारे हथियार बने हैं। अलग बात है कि परदे पर कमाल करने वाले कलाकारों में से हर एक सफल नहीं रहा है।

पार्टियां फिल्मी सितारों को वहीं से लड़ा रही हैं, जहां प्रतिपक्षी दल के मुकाबले वह कमजोर हैं। पहला उदाहरण ममता की टीएमसी की ओर से उम्मीदवार सायोनी घोष का लेते हैं। तृणमूल कांग्रेस ने उन्हें आसनसोल से टिकट दिया है, जो केंद्रीय मंत्री और मशहूर गायक बाबुल सुप्रियो का गढ़ है। बाबुल इसी से संबंधित लोकसभा क्षेत्र से दो बार के सांसद हैं। अब खुद बाबुल सुप्रियो का उदाहरण सामने है, जिन्हें केंद्रीय मंत्री रहते हुए टॉलीगंज से भाजपा उम्मीदवार बनाया गया है। वे ममता के मंत्री और दिग्गज नेता अरूप बिश्वास को हराने के मकसद से मैदान में हैं। भाजपा की ही ओर से अभिनेत्री पायल सरकार कोलकाता की बेहला सीट से चुनाव लड़ रही हैं। यहां से कोलकाता के मेयर सोवन चटर्जी की पत्नी रत्ना मैदान में हैं।

अपने कई बड़े नेताओं के पार्टी छोड़कर भाजपा में शामिल होने से बौखलाई ममता बनर्जी ने भी ऐसे लोगों को विधानसभा चुनाव में घेरने की रणनीति बनायी है। इसी के तहत उत्तरी 24 परगना के बैरकपुर से फिल्म निर्देशक राज चक्रवर्ती को मैदान में उतारा गया। यह क्षेत्र अर्जुन सिंह का गढ़ माना जाता है, जो टीएमली छोड़ भाजपा में चले गए। ममता उन्हें सबक सिखाना चाहती हैं।

राज चक्रवर्ती और सयोनी घोष के अतिरिक्त तृणमूल की प्रत्याशी सूची में कौशानी मुखर्जी, सयंतिका बनर्जी और कंचन मल्लिक जैसी नामचीन हस्तियों को भी चुनाव मैदान में उतारा है। जो सितारे सीधे मैदान में नहीं हैं, उन्होंने दूसरों तरीकों से तरह-तरह का भरोसा दिया गया है। फिलहाल उन्हें पार्टी के लिए काम करने की सलाह दी गयी है। और तो और प्रचार के लिए प्रशिक्षण भी दिया गया। तृणमूल कांग्रेस ने अभी पिछले सप्ताह राज्यसभा सदस्य डेरेक ओब्रायन की देखरेख में इस कार्यशाला का आयोजन किया। करीब डेढ़ घंटे की कार्यशाला में रानीता दास, श्रीतमा भट्टाचार्य, सुदेशना रॉय, मनाली दे, सौरव दास सहित बांग्ला फिल्म जगत से जुड़े बहुत से लोग शामिल थे। बताया जाता है कि इन्हें एक पुस्तिका दी गया, जिसमें सरकार की उपलब्धियों के साथ वे बिंदु रखे गये हैं, जिनके सहारे भाजपा पर हमला किया जा सके। सलाह दी गयी है कि व्यक्तिगत हमले की जगह पुस्तिका में दिए बिंदुओं पर ही केंद्रित रहा जाय।

उम्मीदवार बनने और पार्टियों के लिए प्रचार करने की ललक सिर्फ भाजपा और तृणमूल समर्थक सितारों में ही नहीं है।अभी हाल में कोलकाता के ब्रिगेड परेड ग्राउंड में एक रैली हुई। रैली वामपंथी-कांग्रेस गठबंधन की थी। इस रैली के मंच पर अभिनेता सब्यसाची चक्रवर्ती, बडगा मोइत्रा, निर्देशक अनीक दत्ता और कमलेश्वर मुखर्जी जैसी कई फिल्मी हस्तियां मौजूद थीं। लगता है कि पश्चिम बंगाल का हर दल नेताओं के साथ अभिनेताओं पर भी भरोसा करने लगा है। इसी का परिणाम है कि कोई भी राजनीतिक दल सितारों के साथ का मोह नहीं छोड़ रहा है। इसके साथ ही फिल्मों के बाद इन सितारों को भी अपना भविष्य राजनीति में ही दिखाई दे रहा है।

(लेखक, हिन्दुस्थान समाचार के न्यूज एडिटर हैं।)

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