यूपी विधानसभा चुनाव : भाजपा व सपा की ही सीधी लड़ाई, बाकी की धार कुंद

– विधानसभा चुनाव में भाजपा का हर जवाब दे रहे अखिलेश, लेकिन चक्रव्यूह में फंस जाने को हो रहे विवश

लखनऊ(हि.स.)। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, वैसे-वैसे राजनीतिक सरगर्मी भी बढ़ती जा रही है। इसके साथ ही यह पूरा चुनाव सिर्फ भाजपा और सपा के बीच सीधी टक्कर की ओर बढ़ रहा है। भाजपा पिछली बार के प्रदेश के आंकड़े को दोहराती हुई तो नजर नहीं आती लेकिन अभी सत्ता से उसके दूर होता नहीं दिखता। इसका कारण है भाजपा की व्यूह रचना, जिसमें बार-बार अखिलेश यादव फंस जा रहे हैं। अब आगे क्या होगा, यह तो आने वाला समय ही बताएगा लेकिन अभी तो यही अनुमान है कि भाजपा बनाम सपा तक ही यह चुनाव सिमट कर रह जाएगा। वहीं तीसरे और चौथे नम्बर के लिए बसपा और कांग्रेस के बीच घमासान होगा।

अभी पूरी भाजपा पूर्वांचल पर अपना पूरा दांव लगा रही है। उसकी कोशिश है कि इस बार वहां से सीटें निकाली जाएं, जहां पर पिछली बार लहर के बावजूद जीत नहीं पाये थे। इसी अभियान के तहत केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह का कार्यक्रम आजमगढ़ में रखा गया था, जहां मात्र एक सीट भाजपा जीत पाई थी। बलिया में भी भाजपा बहुत अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पायी थी। पूर्वांचल में बनारस ही ऐसी जगह रही, जहां की सभी सीटें भाजपा की झोली में गयी थीं।

यदि चुनावी परिदृश्य पर नजर दौड़ायें तो कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने कहा है कि कांग्रेस यूपी चुनाव अकेले ही लड़ेगी। सपा और बसपा ने भी एक-दूसरे के साथ गठबंधन की संभावनाओं से इनकार किया है। ऐसे में सबकी नजर या तो भाजपा के पक्ष में है या उसके विरोध करने वाले सपा के पक्ष में। यही कारण है कि अब धीरे-धीरे चुनावी ग्राफ साफ होता नजर आ रहा है। भाजपा इस चुनाव में बार-बार अखिलेश यादव को अपने पिच पर लाने के फिराक में है और वे कभी-कभार फंस भी जा रहे हैं। जैसे जिन्ना का मुद्दा उठाकर उन्होंने भाजपा को खेलने का मौका दे दिया।

भाजपा नम्बर वन की पार्टी

राजनीतिक विश्लेषक राजीव रंजन सिंह का कहना है कि प्रदेश में अब दो दलों के बीच सीधा मुकाबला है। मतदाता जानते हैं कि बसपा या कांग्रेस को वोट देने का मतलब नहीं है। भाजपा विरोधी ज्यादातर वोट सपा को मिलेंगे। यदि मुसलमानों का पुरा वोट बैंक सपा की ओर चला गया तो यहां गणित बदल भी सकती है, लेकिन अभी तक भाजपा ही नम्बर वन की पार्टी दिख रही है।

सिर्फ योगी को निशाना बनाकर विपक्ष बढ़ा रहा भाजपा का ग्राफ

कहा कि समाजवादी पार्टी के मुखिया फिलहाल सही रास्ते पर चल रहे हैं लेकिन सिर्फ योगी को निशाना बनाने का मतलब है कि योगी की ओर सहानुभूति लहर जा सकती है। राजनीति में जब सभी मिलकर एक व्यक्ति पर निशाना साधने लगते हैं, तो जनता अमूमन उस निशाना बने व्यक्ति की ओर ही झुक जाती है।

अब तक अखिलेश के सारे प्रयोग हो चुके हैं फ्लॉप

अखिलेश यादव अपने कार्यकाल से हमेशा प्रयोग ही करते आये हैं और एक भी प्रयोग सफल नहीं हुआ। चाहे वह बसपा के साथ गठबंधन हो या कांग्रेस के साथ, सभी फ्लॉप ही रहे। अब वे छोटी पार्टियों के साथ आ रहे हैं। यह चुनाव साबित करेंगे कि अपने पिता मुलायम सिंह यादव की सियासी विरासत को खत्म करने में अखिलेश यादव ‘दूसरे अजीत सिंह’ होंगे या नहीं। दिवंगत अजीत सिंह ने भी पार्टी की विचारधारा से समझौता कर अपने पिता की विरासत के साथ ऐसा ही किया था। यदि यह चुनाव अखिलेश यादव हार जाते हैं तो फिर भविष्य में इनके पनपे के आसार बहुत कम रह जाएंगे। पार्टी भी बिखर जाएगी।

नवम्बर में कांग्रेस, आप व बसपा की गतिविधियां पड़ी धीमी

नवंबर में देखें, तो कांग्रेस, बसपा या आप की तरफ से यूपी में शायद ही कोई गतिविधि हुई है। इस समय जमीन पर केवल भाजपा और सपा ही सक्रिय नजर आ रहे हैं। योगी आदित्यनाथ और अखिलेश यादव लगातार राज्य में बड़ी जनसभाएं कर रहे हैं। सपा प्रमुख ने 13 नवंबर से योगी के गढ़ गोरखपुर में समाजवादी विजय यात्रा की शुरुआत की। सीएम योगी अमित शाह के साथ अखिलेश यादव के क्षेत्र आजमगढ़ में रहे। भाजपा नवंबर में राज्य चार बड़ी यात्राओं पर विचार कर रही है।

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