यूएन और स्टाकहोम से मिला लाभ नहीं ले पाये हम : डॉ अनिल जोशी

‘पर्यावरण में बढ़ते तापमान को लेकर चिन्ता और चिन्तन’ पर व्याख्यान
प्रयागराज (हि.स.)। आज मनुष्य चांद को तो छूना चाहता है। लेकिन, दुर्भाग्य है कि उन मुद्दों को नहीं छूना चाहता, जिनसे जीवन है। हवा, मिट्टी, जंगल एवं जल को देवतुल्य स्थान रखते तो आज यह हाल नहीं होता। आज हम विकास शब्द का प्रयोग हर जगह फैशन के रूप में करने लगे हैं लेकिन इस मंत्र का जो हमें यूएन और स्टाकहोम से मिला था लाभ न ले पाये। यह बात पिछले 25 वर्षा से पर्यावरण के क्षेत्र में कार्य कर रहे मुख्य वक्ता, पद्मभूषण डॉ. अनिल प्रकाश जोशी ने शुक्रवार को आर्य कन्या डिग्री कॉलेज के राजनीति विज्ञान विभाग द्वारा एक दिवसीय ‘पर्यावरण में बढ़ते तापमान को लेकर चिन्ता और चिन्तन’ विषय पर व्याख्यान में कही। उन्होंने माना कि कोरोना काल में इकोनॉमी (जीडीपी) पाताल में चली गयी। जीडीपी के साथ जीईपी के होने पर ही जान है तो जहान दोनों सम्भव है। उन्होने माना कि हमें अपनी आवश्यकताओं को भी सीमित करना पड़ेगा। क्योंकि प्रकृति हमारी जरूरतों को पूरा कर सकती है, लालच को नहीं। 
समाजशास्त्री डॉ. संजय तिवारी ने कहा कि पर्यावरण के सुरक्षा के लिए चिन्ता ही नहीं पर्यावरण के प्रयास जरूरी है। बढ़ते तापमान के कारण पृथ्वी पर अनेक बदलाव आ रहे हैं और अनेक प्रकार की बीमारियां फैल रही हैं। गरम हवाओं के थपेड़े जीवन के लिए घातक हो रहे हैं। विशेषकर पूर्वांचल और बुन्देलखण्ड में। उन्होंने बढ़ते तापमान को रोकने व वातानुकूलित (ए.सी) के कम उपयोग हो, के उपाय भी बताये। 
महाविद्यालय की प्राचार्या डॉ.रमा सिंह ने अतिथियों का स्वागत करते हुए ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते स्तरों से अवगत कराया, जिससे ग्लेशियरों के पिघलने और समुद्रों का स्तर बढ़ने जैसी खतरनाक घटनायें और बढ़ जायेंगी।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे अध्यक्ष शासी निकाय पंकज जायसवाल ने कहा धरती का तापमान निरन्तर बढ़ रहा हैं। विकसित देश अमेरिका, इंग्लैण्ड और चाइना रासायनिक उपकरणों का उपयोग कर रहे हैं। लेकिन, विकासशील देशों से यह उम्मीद करते हैं कि वह पर्यावरण की रक्षा करें। 
कार्यक्रम का संचालन डॉ. निलांजना जैन तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ.अनुपमा सिंह ने किया। डॉ.अवधेश कुमार, डॉ.कल्पना वर्मा, डॉ.ममता गुप्ता, डॉ.रेनू जैन, डॉ.इभा सिरोठिया, डॉ.ज्योति रानी जायसवाल ने कार्यक्रम में अपना सहयोग दिया।

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