मुख्यमंत्री योगी ने गिद्ध संरक्षण-प्रजनन केंद्र का किया शिलान्यास, बताया थल की शुद्धि का बड़ा माध्यम
लखनऊ (हि.स.)। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बुधवार को गोरखपुर वन प्रभाग में फरेंदा रेंज के भारीबैसी में खुलने वाले जटायु (गिद्ध) संरक्षण एवं प्रजनन केंद्र का ऑनलाइन शिलान्यास किया।
मुख्यमंत्री ने भूमि पूजन के बाद प्रजनन और संरक्षण केंद्र का वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए शिलान्यास किया। वन्य प्राणी सप्ताह के समापन अवसर पर आयोजित इस कार्यक्रम में मुख्यमंत्री ने कहा कि कोरोना के बावजूद राज्य में प्रकृति, पर्यावरण के प्रति अपनी वचनबद्धता को आगे बढ़ाने का कार्य किया गया। जुलाई के प्रथम सप्ताह में वन विभाग के नेतृत्व में पूरे प्रदेश में रिकॉर्ड संख्या में पौधरोपणा का कार्यक्रम सम्पन्न किया गया। पौधरोपण का यह कार्यक्रम उन परिस्थितियों में किया गया, जहां कोरोना प्रोटोकॉल का भी पालन करना था।पर्यावरण संरक्षण के लिए एक चिंता लगातार पर्यावरणविद करते आए हैं। इसके मद्देनजर पिछले तीन वर्षों से लगातार रिकॉर्ड संख्या में पौधरोपण करने का काम वन विभाग ने प्रदेश और देश के अंदर बनाया है। वन विभाग की टीम पर्यावरण संरक्षण के लिए बेहतर कार्य कर रही है। इसके लिए सभी को बधाई।
उन्होंने कहा कि वन्य प्राणी सप्ताह के समापन के मौके पर आज महराजगंज में गिद्धों के संरक्षण यानी जटायु संरक्षण केंद्र का भी शुभारम्भ किया जा रहा है। वास्तव में जब हम वन्य प्राणी सप्ताह की बात करते हैं तो यह हमें भारत की अरण्य संस्कृति की ओर ले कर जाती है। अगर देखा जाए तो हमारे सबसे लोकप्रिय महाकाव्य रामायण में कैसे मनुष्य के अन्य प्राणियों के साथ संवाद और समन्वय से रामराज्य की स्थापना का मार्ग प्रशस्त हो सकता है, यह इस पवित्र ग्रंथ के माध्यम से हजारों वर्ष पहले भारत के ऋषि परम्परा ने हमें अपने परंपराओं संस्कारों के माध्यम से करके दिखाया है। मुख्यमंत्री ने कहा कि आज एक बार फिर से वन्य प्राणी सप्ताह का यह कार्यक्रम उन स्मृतियों को ताजा कर देता है।
जनपद महराजगंज में गिद्धों के संरक्षण का कार्य केंद्र वास्तव में एक अद्भुत प्रयास है। लखनऊ में कुकरैल हमारे यहां पहले से ही घड़ियालों का प्रजनन केंद्र है। यहां इस दिशा में बेहतर कार्य चल रहा है। इस तरह के प्रयास अपने आप में इस बात को साबित करते हैं कि आबादी के बढ़ने के साथ वन्यजीवों के संरक्षण की आवश्यकता भी महसूस हुई है। पर्यावरण का मतलब केवल मनुष्य नहीं हो सकता। इस धरती का एक-एक जीव हमारे एक सिस्टम को मजबूती प्रदान करता है और हमारा जीवन चक्र इन सब के साथ जुड़ा हुआ है। इसमें से एक भी कड़ी अगर कमजोर होती है तो हम अपने इको सिस्टम को कमजोर करते हैं। लेकिन, प्रत्येक के संरक्षण के माध्यम से प्रकृति और पर्यावरण को सुरक्षित करने का जो हमारा कार्यक्रम है, उसे आगे बढ़ाना होगा।
मुख्यमंत्री ने कहा कि गिद्ध के बारे में कहा जाता है कि प्रकृति पर्यावरण के शुद्धि करता है। जैसे जल की शुद्धि के लिए डॉलफिन का महत्व है, वैसे ही थल की शुद्धि का जो सबसे बड़ा माध्यम है, वह गिद्ध है। हमारी परम्परा में भगवान विष्णु को सृष्टि के पालक के रूप में माना जाता है और सृष्टि का पालन तभी होगा जब जब सृष्टि में पर्यावरण की सुरक्षा होगी शुद्धता रहेगी। मुख्यमंत्री ने कहा कि स्वच्छ भारत मिशन भी इसी भारत अभियान का हिस्सा है और गिद्ध उस शुद्धता का प्रतीक होते हैं। भगवान कृष्ण की सवारी ही गिद्ध मानी जाती है।
मुस्लिम देश इंडोनेशिया की बात करें तो उन्होंने अपनी एयरलाइंस का नाम ही गरुण के नाम पर रखा है। यानि यह अपने आप में इस बात को साबित करता है कि दुनिया ने भारत के प्रकृति संरक्षण के महत्व को स्वीकार किया है। लेकिन, हमने विकास की आपाधापी में अपने पौराणिक और ऐतिहासिक परम्परा से जुड़े इन प्रतीकों के साथ खिलवाड़ किया। ऐसे में महराजगंज में गिद्ध संरक्षण केंद्र भगवान विष्णु की परम्परा के वाहक के रूप में पर्यावरण की शुद्धि के रूप में कार्य करेगा। यह प्रकृति के संरक्षण के साथ ही क्षेत्र में पर्यटन की इको टूरिज्म की संभावनाओं को आगे बढ़ाने का भी कार्य करेगा।
भारीबैसी में जटायु संरक्षण केंद्र कुल पांच एकड़ में बनेगा। इसमें अनुसंधान केंद्र, प्रयोगशाला, आवासीय परिसर बनेगा। वन महकमे के मुताबिक 15 करोड़ रुपये के इस प्रोजेक्ट के लिए 82 लाख रुपये की प्रथम किस्त पहले ही मिल चुकी है। 15 वर्ष के इस प्रोजेक्ट में 40 जोड़े गिद्ध छोड़े जाएंगे।
महराजगंज जिले में दो वन प्रभाग स्थित हैं। सात रेंज जहां सोहगीबरवां प्रभाग में आते हैं, वहीं दो रेंज गोरखपुर वन प्रभाग में। गोरखपुर प्रभाग के फरेंदा वन क्षेत्र में स्थित भारीबैंसी में वन विभाग ने हरियाणा के पिंजौर की तर्ज पर जटायु संरक्षण केंद्र बनाने का निर्णय किया है। दशक भर से प्रकृति के नैसर्गिक स्वच्छकार गिद्धों की संख्या कम हुई है, ऐसे में इसे बढ़ावा देकर इनकी संख्या बढ़ाई जाने की पहल की जाएगी। इसके बन जाने से गिद्धों के प्रजनन की बेहतर व्यवस्था होगी, वहीं उनके अनुकूल माहौल भी विकसित होगा। भविष्य में गिद्धों को यहां बेहतर ढंग से संरक्षित किया जा सकेगा।