महोबा में कोई नहीं मान रहा अपने को कमजोर

महोबा (हि.स.) । बुंदेलखंड की हृदयस्थली महोबा में नगरीय निकाय चुनाव के दूसरे चरण में 11 मई को मतदान होना है, जिसको लेकर सभी दलों के उम्मीदवार दिन रात एक किये हुये हैं। प्रचार के अंतिम दिन मंगलवार को चुनावी घमासान अपने चरम पर है। महोबा नगर पालिका की बात करें तो 70 साल पुरानी इस नगरपालिका में आज तक समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी अपना खाता नहीं खोल पाई। आज भी जनपद का मुख्यालय मूलभूत सुविधाओं से दूर है।

महोबा नगर पालिका की सदर सीट इस बार पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षित है, जबकि चरखारी नगर पालिका परिषद के चेयरमैन के लिए पिछड़ी जाति महिला के लिए आरक्षित हुई है। नगर पंचायत कबरई की सीट भी इस बार पिछड़ी जाति की महिला के लिए आरक्षित है। जिले की 5 निकायों में से सिर्फ नगर पंचायत कुलपहाड़ की सीट अनारक्षित है। महोबा नगर पालिका परिषद अध्यक्ष पद पर ज्यादातर निर्दलीय लोग ही अभी तक चुने गए हैं ।

नगर पालिका क्षेत्र में आने वाले तमाम मोहल्लों में पेयजल समस्या, गंदगी के अंबार हैं। मुख्यालय में लगातार बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार की माँग उठती रही है, जिस पर आम जन के अनुसार अभी तक कोई भी काम बेहतरी से अमल में नही लाया गया है ।

महोबा नगर पालिका में कब्जे को लेकर सत्ता दल सहित अन्य दल पूरी जोर आजमाइश में लगे हुए हैं। महोबा नगर पालिका का गठन 1953 में हुआ था जिसे पालिका का दर्जा मिले 70 वर्ष पूरे हो गए हैं। इस सीट पर न तो आज तक सपा की साइकिल चल सकी न ही बहुजन समाज पार्टी का हाथी दौड़ पाया। दोनों ही दल आज तक सफल नहीं हुये हैं।

इस बार यह सीट पिछड़े वर्ग के लिए आरक्षित है, जिसपर भारतीय जनता पार्टी ने बयोबृद्ध प्रत्याशी डाक्टर सन्तोष चौरसिया को मैदान में उतारा है। सन्तोष चौरसिया के साथ लगे भारतीय जनता पार्टी नेता व कार्यकर्ता अभी भी मोदी और योगी के नाम पर वोट देने की अपील करते नजर आ रहे हैं। राज्य स्तर पर केंद्र स्तर पर पार्टी की उपलब्धियों का लगातार बखान किया जा रहा है। लगातार स्टार प्रचारकों द्वारा रोड शो, रैली की गई है। वही मंत्रियों, प्रभारियों को बैठकों के माध्यम से जातीय समीकरण को अपने पाले में करने की कोशिश की जा रही है।

कांग्रेस ने पत्रकार गोरेलाल कुशवाहा को अपना उम्मीदवार बनाया है। वह भी साथियों के साथ लगातार लोगो के बीच जाकर अपनी पकड़ बनाने में लगे हैं। वहीं अपनी अपनी पार्टियों में अपने वजूद को दरकिनार करने के बाद निर्दलीय प्रत्याशी भी अपनी पुरानी पार्टी व अन्य पार्टी उम्मीदवारों के लिये परेशानी का सबब बन रहे हैं, क्योकि निर्दलीय उम्मीदवार अपने स्वयं के व्यक्तित्व व्यवहार, विचार पर क्षेत्रीय विस्तार का दावा कर रहे हैं। समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने पालिका को जीतने के लिए इस बार जातीय समीकरण के आधार पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं। दोनों ही दलों ने मुस्लिम उम्मीदवारों पर अपना दांव खेला है ।

अब आगामी 13 मई को ही चुनावी रिजल्ट के साथ मतदाताओं की आवाज खुल कर सामने आएगी ।

महेन्द्र द्विवेदी / आलोक शर्मा

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