मथुरा के कुंभकारों को इस दीपावली पर अच्छी बिक्री की उम्मीद
-चीनी झालरों का भारत में बहिष्कार के चलते दिन-रात दीये व मिट्टी के बर्तन बनाने में जुटे हैं कुंभकार
मथुरा (हि.स.)। चीन के सामानों का भारत में प्रतिबंध लगा हुआ है, जिसके चलते इस बार दीपावली पर चाइनीज इलेक्ट्रोनिक झालरें बाजारों में उपलब्ध नहीं है और न ही लोग चीन का आइटम खरीदने के लिए इच्छुक है। जिसके चलते मथुरा में मिट्टी के दीये बनाने वाले कुंभकारों को इस बार दीपावली पर मिट्टी के दीये और बर्तन की अच्छी बिक्री होने की उम्मीद है। जिसको लेकर वह दिन-रात दीये बनाने में जुटे हुए हैं।
कोई मिट्टी गूंथने में लगा है तो किसी के हाथ चाक पर मिट्टी के दीये को आकार दे रहे हैं। किसी को अवा जलाने व पके हुए बर्तनों को व्यवस्थित रखने का जिम्मा सौंप रखा है। महिलाएं रंगों से दीये और बर्तनों को सजाने में जुटी हैं। मिट्टी गढ़कर उसे आकार देने वाले कुंभकार दीपावली के लिए दीये तैयार करने में लगे हैं।
इस बार दीये की बिक्री अच्छी होने की उम्मीद दिख रही है, क्योंकि चीन विरोधी माहौल होने से लोग चाइना की इलेक्ट्रॉनिक्स झालरें न खरीदने की मुहिम चला रहे हैं। जिससे मिट्टी के दीपकों की बिक्री बढ़ने की उम्मीद दिखाई दे रही है। हालांकि कुंभकार परंपरागत धंधे से विमुख होते जा रहे हैं। अब दीपावली पर मिट्टी के दीपक और बर्तन तैयार करना उनके लिए सीजनेबल धंधा बनकर रह गया है। यदि वे दूसरा धंधा नहीं करेंगे तो दो जून की रोटी जुटा पाना कठिन होता जा रहा है।
कुंभकारों का कहना है कि दीपावली व गर्मी के सीजन में ही मिट्टी से निर्मित बर्तनों की मांग होती है, अन्य दिनों में तो वह मजदूरी करके परिवार का पेट पालते हैं। दूर से मिट्टी लाना, महंगा ईधन खरीदकर इन्हे पकाने में जो खर्च आता है, उसकी तुलना में बिक्री न होने से आमदनी मेहनत के मुताबिक नहीं हो पाती है।
सुरीर के गांव रहने वाले कुंभकार खरग सिंह ने बताया कि मिट्टी लाने एवं दीये बनाने के धंधे पर आश्रित रहने से परिवार की गुजर-बसर मुश्किल है। जिससे दूसरों कामों में मजदूरी करनी पड़ती है। चाक कला को बचाने के लिए सरकार को मदद करनी चाहिए, जिससे मिट्टी गढ़ने की कला बची रहे। वहीं, कुंभकार ओमप्रकाश ने बताया कि मिट्टी से बने आइटमों से अब लोगों का रुझान कम हो गया है। लोग खानापूर्ति के लिए ही करवे एवं दीये खरीदते हैं। यही कारण है कि अब मिट्टी के आयटम कम मात्रा में बिकते हैं। उनके लिए यह धंधा सीजनल बन कर रह गया है।