मणिकर्णिका चक्र पुष्करणी कुंड में श्रद्धालुओं ने दोपहरी में लगाई आस्था की डुबकी

—स्नान से अक्षय फल, चारों धाम के पुण्य का लाभ

—मां पार्वती का कर्ण कुंडल कुंड में गिरने से नाम मणिकर्णिका पड़ा

वाराणसी (हि.स.)। अक्षय तृतीया के दूसरे दिन बुधवार दोपहर में हजारों श्रद्धालुओं ने परम्परानुसार प्राचीन मणिकर्णिका चक्र पुष्करणी कुंड में आस्था की डुबकी लगाईं और मणिकर्णिका मां की अष्टधातु प्रतिमा का दर्शन पूजन किया। कोरोना के चलते पूरे दो साल बाद श्रद्धालुओं ने कुंड में डुबकी लगाई।

काशी में अक्षय तृतीया के दूसरे दिन मणिकर्णिका चक्र पुष्करणी कुंड में स्नान की परम्परा हैं । लोगों में विश्वास है कि इस पवित्र कुड में स्नान से अक्षय फल, चारों धाम के पुण्य का लाभ मिलता है। कुंड में स्नान करने से श्रद्धालुओं के पाप दूर होते हैं।

इसके पहले अक्षय तृतीया पर मंगलवार शाम मणिकर्णी माई की सवारी ब्रहमनाल स्थित नौकुल सरदार व तीर्थ पुरोहित जयेंद्रनाथ दुबे बब्बू महाराज के आवास से निकली। रात में मणिकर्णी माई की अष्टधातु वाली ढाई फीट ऊंची प्रतिमा तीर्थ कुंड में स्थित 10 फीट ऊंचे पीतल के आसन पर स्थापित की गई। देवी की फूलों व नए वस्त्रों से झांकी सजाई गई। प्रतिमा स्थापना के बाद विधि विधान से मां मणिकर्णी का पूजन अनुष्ठान किया और रात्रि जागरण भी हुआ।

इसके बाद बुधवार दोपहर में मां की अष्टधातु प्रतिमा को कुंड के जल से स्पर्श कराया गया। जनविश्वास है कि मणिकर्णिका मां के स्नान से तीर्थ कुंड का जल अगले एक वर्ष के लिए सिद्ध हो जाता है और इसी जल में स्नान करने से श्रद्धालुओं के सभी पाप दूर होते हैं।

मान्यता है कि भगवान शंकर ने काशी बसाने के बाद महादेव ने देवी पार्वती के स्नान के लिए इस कुंड को अपने सुदर्शन चक्र से स्थापित किया था। स्नान के दौरान मां पार्वती का कर्ण कुंडल कुंड में गिरने से नाम मणिकर्णिका पड़ा। मान्यता है कि मणिकर्णी माई की अष्टधातु की प्रतिमा प्राचीन समय में इसी कुंड से निकली थी। इसीलिए यहां पर अक्षय तृतीय पर स्नान का अधिक महत्व है।

श्रीधर

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