भारतीय ग्रंथों में होम्योपैथी के प्रमाण

डा. चन्द्र गोपाल पाण्डेय

आज (10 अप्रैल) होम्योपैथी के जनक डॉ क्रिस्चियन फ्रेडरिक सैमुअल हैनिमैन का जन्म दिवस है। होम्योपैथी 1796 में जर्मनी में अस्तित्व में आयी। इसी कारण होम्योपैथी को भारतीय चिकित्सा पद्धति में शामिल नहीं माना जाता है। लेकिन यह सत्य नहीं है। प्राचीन भारतीय ग्रंथों में होम्योपैथी का प्रकारांतर से अनेकशः वर्णन है। होम्योपैथी के प्रमुख सिद्धांतों में समरूपता या सादृश्यता का सिद्धान्त, जीवनी शक्ति का सिद्धान्त, औषधि की न्यूनतम मात्रा, शक्तिकृत औषधि और व्यक्तिपरक नुस्खा है। हिप्पोक्रेट्स को आधुनिक चिकित्सा का जनक कहा जाता है, परन्तु उनसे पूर्व भी भारतीय ग्रंथों में चिकित्सा के सिद्धांत न केवल निहित थे, बल्कि प्रयोग में भी थे। इनमें स्पष्ट रूप से सादृश्यता के सिद्धांतों का उल्लेख है। यह कहने में कोई संकोच नहीं कि महर्षि वेद व्यास सादृश्यता सिद्धांत के जनक थे। श्रीमद् भागवत महापुराण के प्रथम स्कंध पंचम अध्याय के 33वें श्लोक में नारद मुनि व्यास जी से कहते हैं :
‘आमयो यश्च भूतानां जायते येन सुव्रत। तदेव ह्यामा द्रव्यं न पुनाति चिकित्सितम।33।“ अर्थात “प्राणियों को जिस पदार्थ के सेवन से जो रोग हो जाता है, वही पदार्थ चिकित्सा विधि से प्रयोग करने पर क्या उस रोग को दूर नहीं करता?’ होम्योपैथिक दर्शन के अनुसार, ’किसी औषधि को पूर्णतः स्वस्थ व्यक्ति को दिए जाने पर उसमें जो-जो लक्षण प्रकट होते हैं, उन्हीं लक्षणों से मिलते जुलते लक्षणों से पीड़ित रोगी को यही औषधि दिए जाने पर रोगी स्वस्थ्य हो जाता है।’ यही होम्योपैथी का सादृश्यता नियम (ला आफ सिमिलिया) ‘समः समम् शमयति (सिमिलिया सिमिलिबस क्यूरेटर)’ है। अन्य पौराणिक ग्रंथों में भी यह नियम मिलता है। महाभारत के संभव पर्व का एक रोचक प्रसंग है। दुर्योधन ने भीमसेन को मार डालने की नीयत से कालकूट नामक जहर मिला भोजन खिलाया। विष के प्रभाव से अचेत होने पर उसने भीम को गंगा जी में डाल दिया। भीम जल के भीतर डूब कर नाग लोक में जा पहुंचे, जहां बहुत से महा विषधर नागों ने भीमसेन को खूब डसा। उनके डसे जाने से कालकूट विष का प्रभाव नष्ट हो गया। सर्पों के विष ने खाए हुए स्थावर विष को हर लिया। ‘ततोअस्य दश्य मानस्य तद विषम कालकूटं। हातम सर्प विषणव स्थावर जड़गमेन तु ।57।’ यहां भी होम्योपैथी के आधारभूत सिद्धांत समः समम् शमयति का दर्शन होता है। महाकवि कालिदास कृत ’अभिज्ञान शाकुंतलम’ का एक श्लोक “श्रुवेत हि पुरा लोके विषस्य विषमौषधम“ (विष के प्रभाव को दूर करने के लिए विष से ही औषधि बनाया जा सकता है) है। पंचतन्त्र में भी ‘कंटके नैव कण्टकम’ अर्थात कांटे से कांटा निकालने का उल्लेख है।
इस तरह स्पष्ट है पौराणिक काल से ही भारतीय चिकित्साविदो को सदृश्ययता के सिद्धांत की समझ थी। डॉ हैनिमैन का मानना है की शरीर के भीतर स्थूल शरीर के अतिरिक्त एक भौतिक जीवनी शक्ति है, जहां से स्वास्थ्य अथवा रोग प्रवाहित होता है। इस जीवनी शक्ति को उन्होंने वाइटल फोर्स का नाम दिया। वह कहते हैं कि रोग का सूत्रपात्र वाइटल फोर्स में होता है, जिसे हम किसी सूक्ष्मतम यंत्र से भी नहीं देख सकते। जिनका वाइटल फोर्स स्वस्थ होता है, वे गम्भीरतम संक्रमण से अप्रभावित रहते है और जिनका वाइटल फोर्स अस्वस्थ होता है, वे मामूली संक्रमण को भी झेल नहीं पाते, उसका बाहर स्थूल शरीर पर प्रकटन होता है। इस दृष्टि से जिसे हम रोग कहते हैं, वह रोग नहीं है, वह वाइटल फोर्स की अस्वस्थ हो जाने की भाषा है। भारतीय दर्शन में वाइटल फोर्स (जीवनी शक्ति) को ’सूक्ष्म शरीर’ कहा गया है, जिसमें जीवन ’आत्मा’ से प्रवाहित होता है। ’आर्गनन आफ़ मेडिसिन’ के 10वें एफरिज्म (सूक्ति) के फुटनोट में डॉ हैनिमैन ने लिखा है कि वाइटल फोर्स के अभाव में यह शरीर मृत हो जाता है और पुनः रासायनिक घटकों में विलीन हो जाता है। “योग वशिष्ठ “में श्री महादेव जी कहते हैं कि प्राण के शांत हो जाने पर यह देह पृथ्वी पर लकड़ी और ढेले की तरह गिर जाती है। जिस प्रकार घर, वहां रहने वाले के छोड़कर दूर चले जाने पर शून्य हो जाता है, उसी प्रकार प्राण से शून्य शरीर शव हो जाता है। होम्योपैथी में शक्तिकृत औषधि के सूक्ष्मतम मात्रा में रोगियों को दिए जाने की व्यवस्था है। किसी औषधि को अधिकाधिक शक्तिकृत करने से उसकी मूल मात्रा घटती जाती है, किंतु औषधीय क्षमता (मेडिसिनल पावर) में वृद्धि होती है। औषधियों के शक्तिकरण का संकेत भी भारतीय ग्रंथों में मिलता है।’ महा सुभाषित संग्रह’ में ’चन्दनम दधि ताम्बूलं मर्दनम गुणवर्धनम’ का उल्लेख यही संकेत देता है। गीता में सूक्ष्मता में शक्ति निहित होने का प्रसंग है। अध्याय तीन के 42वें श्लोक में कहा गया है-इन्द्रियां स्थूल शरीर से सूक्ष्म होने के कारण श्रेष्ठ हैं। इंद्रियों से मन अधिक सूक्ष्म है, इसलिए मन श्रेष्ठ है। मन से भी श्रेष्ठ बुद्धि है क्योंकि बुद्धि मन से भी सूक्ष्म है और जो बुद्धि से भी परम सूक्ष्म और श्रेष्ठ है, वह आत्मा है।
’इन्द्रियाणि परान्याहु-रिनिद्रयेभ्यः पर मनः। मनस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धेः परतस्तु सः।’
होम्योपैथी के सभी आधारभूत सिद्धांत हमारे पौराणिक धर्म ग्रंथों में पहले से हैं। डॉ हैनिमैन को इस बात का श्रेय जाता है कि उनके अति वैज्ञानिक मष्तिष्क ने इसे स्थापित चिकित्सा पद्धति का रूप दिया। भारत में आज होम्योपैथी की बहुत बड़ी स्वीकार्यता है और छिटपुट विरोध भी। सुखद बात यह है कि इसको राजाश्रय प्राप्त है, विरोध अन्य पद्धति के कुछ ईर्ष्यालु चिकित्सकों की ओर से है न कि बृहत्तर समाज से। कोरोना काल में जब चारों ओर हाहाकार मचा था, उस समय भी होम्योपैथिक औषधियों को देने से रोकने का असफ़ल प्रयास हुआ। केरल राज्य से यह विवाद माननीय सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंचा, जहां माननीय न्यायालय ने अपने आदेश दिनांक 15 दिसम्बर 2020 में स्पष्ट किया कि आयुष मंत्रालय की एडवाइजरी व गाइड लाइन दिनांक 6.3.2020 के अनुसार होम्योपैथिक दवा दी जाय, लेकिन कोई होम्योपैथ कोविड 19 को उपचारित करने का दावा नहीं कर सकता। माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया ऐलोपैथी सहित अन्य विधा में यह दावा (क्लेम) नही है। फिर भी कोरोना की विरुद्ध लड़ाई में देर से और आधे मन से होम्योपैथी को शामिल किया जाना अवश्य चिंताजनक रहा है जबकि अनेक लोग इसके सेवन से ही ठीक हुए। रोग ठीक होने के बाद पूरी तरह स्वस्थ होने में इसकी दवाओं ने मदद की बल्कि इसे रोग प्रतिरोधी दवा के रूप में भी इस्तेमाल किया गया। होम्योपैथिक डायलूशन पर भी प्रश्न चिन्ह लगे लेकिन नैनो साइंटिस्टां के जबाब से ऐसे लोगों को चुप होना पड़ा। उनके अनुसार होम्योपैथिक दवाएं नैनो पार्टिकल्स के रूप में हाई पोटेंसी तक के डायलूशन में मौजूद हैं। आयुर्विज्ञान के नीतिकारों को भारतीय दर्शन व अर्थव्यवस्था के सर्वथा अनुकूल होम्योपैथी को मुख्यधारा की चिकित्सा पद्धति बनाने पर विचार करना व्यापक देश हित में होगा।

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