भारतीय किसान संघ की नई मांग, हर जिला केंद्र पर बनें किसान न्यायालय
– भारतीय किसान संघ ने कहा, हमारे मुद्दों को हाइजैक करके हो रहा आन्दोलन
– किसान आंदोलन का हुआ राजनीतिकरण, विदेशी कंपनियों की भी हुई एंट्री
भोपाल (हि.स.)। भारतीय किसान संघ के प्रांत संगठन मंत्री मनीष शर्मा ने कहा है कि जिन कृषि कानूनों को लेकर किसानों का आन्दोलन चल रहा है, उनके क़ानून बनने से पहले भाकिस ने 05 जून को देशभर के 450 जिलों में 20 हजार ग्रामीण इकाईयों के माध्यम से केंद्र सरकार को ज्ञापन सौंपकर आवश्यक सुधार कर की मांग की थी। सरकार ने सभी मांगों को मानकर सरकार संबंधित बिल में आवश्यक सुधार कर चुकी है। सरकार की ओर से स्पष्ट कर दिया गया है कि नए कानूनों से सरकारी मंडियों पर कोई आंच नहीं आएगी व न्यूनतम समर्थन मूल्य का भी ध्यान रखा जाएगा। सरकार न ही एमएसपी समाप्त करने जा रही है और ना ही सरकारी मंडियां। फिर इस आन्दोलन का क्या मतलब है?
उन्होंने कहा कि कृषि कानून में कई खूबियां हैं तो कुछ खामियां भी हैं। खामियों को दूर करने के लिए सरकार लगातार बात करने के लिए आगे आ रही है। आज वर्तमान व्यवस्था के तहत अधिकांश सहकारी संगठन में फसल खरीद से लेकर उसे सरकारी तंत्र के हवाले करने तक आढ़तियों का कब्जा ही दिखाई देता है। वह बिचौलिए की भूमिका में किसानों का हक मार रहे हैं। केंद्र सरकार इसी बीच वाली व्यवस्था को खत्म कर किसानों को सीधा लाभ पहुंचाने का प्रयास कर रही है।
उन्होंने कहा कि किसानों से जुड़े हजारों मामले कोर्ट में विचाराधीन हैं, जिनके निर्णय आने में वर्षों गुजर जाते हैं। ऐसे में गरीब किसान की बहुत बड़ी पूंजी कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगाने और वकीलों को फीस देने में चली जाती है। इसके लिए सरकार हर तहसील और जिला केंद्रों पर अलग से किसान न्यायालयों की व्यवस्था कराए। सरकार को चाहिए कि वह इस मामले में पहलकर किसान न्यायालय खोले, जहां किसान से जुड़े मसलों का हल एक निश्चित अवधि में किया जा सके।
किसान नेता मनीष शर्मा का यह भी कहना है कि केंद्र सरकार के निजी मंडियां खोलने से हमें दिक्कत नहीं है लेकिन किसान को उसकी फसल के पूरे दाम मिलने चाहिए। इसकी गारंटी के लिए जरूरी है कि मंडी में पंजीयन कराने वाले किसानों की उपज के मूल्य की एफडी कराई जाए, ताकि यदि व्यापारी भाग जाए या दिवालिया हो जाए तो किसान को उसकी फसल की कीमत एफडी के माध्यम से मिल सके।
भारतीय किसान संघ के प्रांतीय अध्यक्ष कैलाश सिंह ठाकुर का कहना है कि नए कृषि कानून छोटी जोत के किसानों के लिए बहुत लाभकारी है। इस कानून के विरोध में आन्दोलन कर रहे लोगों को किसानों की समस्या से कोई लेना-देना नहीं है। अन्दोलन समस्या के समाधान के लिए होते हैं लेकिन यह आन्दोलन समस्या खड़ी कर रहा है। यह आन्दोलन सिर्फ पंजाब और हरियाणा के किसानों तक सीमित है। देश के कई राज्यों में इसका कोई असर नहीं है। उन्होंने कहा कि कुछ लोग किसानों के नाम पर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने में लगे हैं, उन्हें ना किसानों से कोई मतलब है और ना ही किसान कानूनों से।
किसान नेता ने कहा कि जिस आन्दोलन में खालिस्तान जिन्दाबाद के नारे लगें, वह किसानों के हित में चलनेवाला आन्दोलन कैसे हो सकता है? इतना ही नहीं इस आन्दोलन से आनुवंशिक रूप से परिवर्धित (जेनेटिकली मॉडिफाइड) यानी जीएम बीजों से उगाई जाने वाली फसलों को इजाजत देने की मांग उठ रही है, जिस पर भारत में रोक लगी हुई है। इससे साफ हो जाता है कि कुछ विदेशी कंपनियों ने किसानों को अपना मोहरा बनाकर इस आन्दोलन को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। यह आन्दोलन राजनीतिक हो गया है, इसलिए हमारा साफ कहना है कि सभी किसानों और देश के लोगों को इससे दूर ही रहना चाहिए।