भाई दूज पर्व : भाई के स्वस्थ और दीर्घ जीवन के लिए बहनों ने मुसल से कूटा गोधन
– ‘गोधन भइया चलले अहेरिया, खिलिच बहना दे लीं आशिष, जिउसहू मोरा भइया’ जैसे पारम्परिक गीत बहनों ने गाया
– बहनों ने अपनी जीभ पर गोधनचक्र पर रखे गूंग भटकइयां के कांटे को छुआ गोवर्धन भगवान से लगाई गुहार, उल्लासपूर्ण माहौल में दो दिन मना पर्व
वाराणसी (हि.स.)। धर्म नगरी काशी में भाई और बहन के पवित्र रिश्ते को प्रगाढ़ बनाने का पर्व भाई दूज लगातार दो दिन उल्लासपूर्ण माहौल में मनाया गया।
कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि गुरूवार को भाई के स्वस्थ और सुदीर्घ जीवन, श्री समृद्धि के लिए व्रत रख बहनों ने जिले के गांव कस्बे और शहर के मोहल्लों, कालोनियों के गलियों और घर के बाहर समूह में साफ सफाई के बाद गाय के गोबर से गोधन चक्र बनाया। इसके बाद उसमें बने आयु चक्र में गूंग भटकइया और अन्य पूजन सामग्री रख सज धज कर मूसल से गोधन कूटा। इस दौरान मोहल्ले या घर की बुजुर्ग महिला की देखरेख में परम्परानुसार गोधन के ‘गोधन भइया चलले अहेरिया, खिलिच बहिना दे ली आशिष, जिउसहू मोरा भइया, जिय भइया भैया दूज’ आदि पारम्परिक गीत गाया गया । इसके बाद बहनों ने अपनी जीभ पर गोधन चक्र पर रखे गूंग भटकइयां के कांटे को छुआकर भाइयों के सलामती के लिए गोवर्धन भगवान से गुहार लगाई।
इसके बाद घर आकर विवाहित और कुंवारी बहनों ने भाइयों की आरती उतार कर सिर पर तिलक लगाया। उनकी लंबी आयु की कामना कर मिठाष्न और प्रसाद खिलाया। भाइयों ने उनकी रक्षा का संकल्प लेकर अपने सामर्थ्य के अनुसार उपहार दिया। पर्व पर कुंआरी और विवाहित बहनों में के साथ ही नन्हे बच्चों में भी खासा उत्साह दिखा। त्यौहार पर भी बाजारों में रौनक रही। कैंट स्टेशन, रोडवेज बस स्टैंड, निजी बस स्टैंड पर भी विवाहित बहनों की काफी भीड़ मायके आने-जाने के लिए जुटी रही।
उधर, हजारों बहनों ने भाईदूज पर्व बीते बुधवार को भी मनाया। बुधवार को अपरान्ह 3.35 बजे के बाद द्वितीया तिथि लग गई थी। हजारों बहनों ने उसी समय पर्व मनाया तो। ज्यादातर ने उदया तिथि में गुरूवार को भाईदूज पर्व मनाया। गोवर्धन पूजा की बेदी पर बहनें मिठाई, चना और गूंग भटकइया का पौधा रखती हैं तथा इसके पूर्व वह उसको काफी श्राप देती हैं। ऐसी मान्यता है कि पूजा के बाद यह सारा श्राप, वरदान के रूप में बदल जाता है।
भाई दूज का पर्व मनाने के पीछे एक पौराणिक कथा है। छाया भगवान सूर्यदेव की पत्नी हैं। उनकी दो संतान हुई यमराज तथा यमुना। यमुना अपने भाई यमराज से बहुत स्नेह करती थी। वह उनसे सदा यह निवेदन करती थी वे उनके घर आकर भोजन करें, लेकिन यमराज अपने काम में व्यस्त रहने के कारण यमुना की बात को टाल जाते थे। एक बार कार्तिक शुक्ल द्वितीया को यमुना ने अपने भाई यमराज को भोजन करने के लिए बुलाया तो यमराज मना न कर सके और बहन के घर चल पड़े। रास्ते में यमराज ने नरक में रहने वाले जीवों को मुक्त कर दिया। भाई को देखते ही यमुना बहुत हर्षित हुई और भाई का जमकर स्वागत सत्कार किया। यमुना के प्रेम मनुहार और स्वादिष्ट भोजन ग्रहण करने के बाद प्रसन्न होकर यमराज ने बहन से कुछ मांगने को कहा। यमुना ने उनसे मांगा कि आप प्रति वर्ष इस दिन मेरे यहां भोजन करने आएंगे और इस दिन जो भाई अपनी बहन से मिलेगा और बहन अपने भाई को टीका लगाकर भोजन कराएगी उसे आपका डर न रहे। यमराज ने यमुना की बात मानते हुए तथास्तु कहा और यमलोक चले गए। तभी से यह मान्यता चली आ रही है कि कार्तिक शुक्ल द्वितीय को जो भाई अपनी बहन का आतिथ्य स्वीकार करते हैं उन्हें यमराज का भय नहीं रहता।
श्रीधर