बैगन की खेती: बदलते मौसम में किसान कीटों से रहे सावधान, वरना बर्बाद हो जाएंगे फल
-कृषि विशेषज्ञ के अनुसार, बैगन में अधिक होता है कीड़ों का प्रकोप, सतर्कता जरूरी
लखनऊ (हि.स.)। विटामिन ए व बी के अलावा कैल्शियम, फास्फोरस व लोहे जैसे तत्व से भरपूर बैगन किसानों के लिए भी बहुत फायदे की खेती है। लेकिन, इसमें कीड़ों का भी प्रकोप ज्यादा होता है। थोड़ी असावधानी भी खेती को बर्बाद कर सकती है। शरदकालीन फसलों में फूल और फल का समय आ गया है। इसी में बदलते मौसम के कारण कीड़े भी खूब लग रहे हैं। पत्ते, फूल व फल को ये कीड़े बर्बाद कर देते हैं। ऐसे में जरूरी है कि कीड़ों के निदान के लिए सतर्क रहकर दवा का छिड़काव करते रहें।
कृषि विशेषज्ञ डॉ. एके राय ने बताया कि बैगन में कई तरह के रोग लगते हैं। इसमें तना व फल छेदक कीट अंडे से निकलने के बाद तने के ऊपरी सिरे से तने में घुस जाती है। तने में घुसने पर तना मुरझाकर लटक जाता है। फल में घुसकर अंदर से ही फल को खा जाते हैं और फल सड़ जाता है। इन कीटों के हमले को रोकने के लिए ट्राइजोफास 40 ईसी 750 मिलीलीटर या क्वीनालफास 25 ईसी 1.5 लीटर दवा को 500 से 600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।
जैसिड रोग में कीड़े पत्तियों का रस चूसते हैं, जिससे पत्तियां ऊपर की तरफ मुड़ जाती हैं। बचाव के लिए खेत को खरपतवार मुक्त रखना चाहिए। शुरु की दशा में नीम का तेल व दो मिली चिपचिपे पदार्थ का प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करना चाहिए। डॉ. राय ने हिन्दुस्थान समाचार से बताया कि लाल मकड़ी भी बैगन के लिए घातक है। इससे बढ़वार रुक जाता है। ऐसी स्थिति में सल्फर की दो से ढाई ग्राम या सल्फेक्स नामक दवा की एक मिली लीटर प्रति लीटर पानी में छिड़काव करना चाहिए।
वहीं सफेद मक्खी मुलायम पत्तियों से रस चूसते हैं, जिससे वे पीली पड़ कर सूख जाती हैं। ऐसी दशा में नीम की निबौली के सत के पांच फीसदी के घोल का छिड़काव करना चाहिए। इथोफेनाप्राक्स 10 ईसी या इथियान 50 ईसी का छिड़काव इस रोग को खत्म कर देता है। नेमेटोड सूत्र कृमि की दशा में नीम की खली का प्रयोग करना उपयुक्त होता है।
कृषि विशेषज्ञ ने बताया कि फोमाप्सिस झुलसा रोग पत्ती, फल व तने पर दिखते हैं। पत्ती पर गोल धब्बे, तने का सूखना और फल का सड़ना इसके लक्षण हैं। इस रोग में मेंकोजेब .25 फीसदी ढाई ग्राम प्रति लीटर पानी या कार्बेंडाजिम .1 फीसदी, एक ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल में छिड़काव करें। 10 दिनों के अंतर पर इसका छिड़काव करते रहें।