बुन्देलखंड क्षेत्र में गाय और सुअर से लड़ाई कराकर खेली जाती है दिवाली
हमीरपुर(हि.स.)। बुन्देलखंड क्षेत्र में दीपावली त्योहार पर गाय से सुअर को लड़ाने की परम्परा कायम है। सुअर को गाय के पैरों तले फेंककर मौनिये दिवाली खेलते हैं। कई घंटे तक होने वाली इस अजीबोगरीब परम्परा में सुअर भी बुरी तरह से घायल हो जाता है। जिसे बाद में मौनिये रोली से तिलक कर छोड़ देते हैं।
बुन्देलखंड के हमीरपुर, महोबा, बांदा, चित्रकूट, ललितपुर, झांसी, जालौन और आसपास के तमाम ग्रामीण इलाकों में दिवाली की अजीबोगरीब परम्पराओं का आज भी निर्वहन होता है। गांवों में सुअर और गाय की लड़ाई कराकर दिवाली खेलते की परम्परा सदियों पुरानी है। यहां के संजय कुमार अर्जुन यादव, सुरेन्द्र, चंदल पाल और महेश कुमार सहित तमाम बुजुर्गों ने बताया कि दीपावली की रात से ही हर जगह त्योहार की धूम मचती है। कहीं परेवा के दिन सुअर और गाय में मुकाबला कराया जाता है तो कहीं भैयादूज के दिन यह रस्म सम्पन्न होती है। बताया कि हमीरपुर शहर के रहुनियां धर्मशाला के मैदान में सैकड़ों सालों से दीपावली के बाद परेवा के दिन अजीबोगरीब दिवाली खेली जाती है।
इस बार भी इसके लिए तैयारी में मौनिये जुटे हैं। बुजुर्गों ने बताया कि पैसे देकर सुअर लाने के बाद उसके माथे पर पहले रोली अक्षत से टीका किया जाता है फिर रस्सी से बांधकर उसे दिवाली खेलने वालों को सौंपा जाता है। दिवाली खेलने वाले मौनिये गाय के आगे सुअर लाते हैं। ढोल नगारे के बीच गाय सुअर को उठाकर जमीन पर कई बार पटकती है, जिससे सुअर घायल हो जाता है। सुअर और गाय के बीच लड़ाई के दौरान लाठियों से लैस मौनिये जमकर दिवाली नृत्य करते हैं। यह कार्यक्रम शाम तक चलता है। जिसे देखने के लिए बड़ी संख्या में लोगों की भीड़ भी जुटती है।
ऐसे पड़ी दिवाली खेलने की यह अनोखी परम्परा
एक इण्टरकालेज के बुजुर्ग शिक्षक बलराम सिंह व खड़ेहीलोधन गांव के पूर्व सरपंच राजाराम तिवारी ने बताया कि पूर्वजों से गाय और सुअर की लड़ाई कराने की परम्परा चली आ रही है। इसे बुराई पर अच्छाई के विजय के रूप में मनाया जाता है। बताया कि भगवान श्रीकृष्ण ने गौ का रूप धारण कर अपने खुरों से सुअर का वध किया था। तभी से इसे निभाने की परम्परा चली आ रही है। इसमें गाय के साथ सुअर की भी पूजा होती है। इसके बाद मौन पूजा की समूचे बुन्देलखंड में धूम मचती है।
पंकज/राजेश